Book Title: Agam 38 Chhed 05 Jitkalpa Sutra
Author(s): Jinbhadragani Kshamashraman, Punyavijay
Publisher: Babalchand Keshavlal Modi

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Page 5
________________ संग्रहरूप ग्रन्थ छे । कारण के आ ग्रन्थमां पवी ढगलाबंध गाथाओ छे जेने उपरोक्त ग्रन्थोमांनी गाथाओ साथे अक्षरशः सरखावी शकाय । ग्रन्थकार- आ पुस्तकमां जीतकल्पसूत्र अने तेना भाष्यनो समावेश करवामां आव्यो छे । जीतकल्पसूचना प्रणेता भगवानू जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण छे ए निर्विवाद हकीकत छे । आ संबंधमां तेम ज भगवान् जिनभद्रगणिना समय निर्णय विषे विद्वद्वर्य श्रीमान् जिनविजयजीए पोते संपादन करेल चूर्णि सहित जीतकल्पसूत्रनी प्रस्तावनामां सविस्तर आलोचना करी छे । एटले आ विषयना जिज्ञासुओने ते प्रस्तावना जोवा भलामण छे । अहीं मारे मात्र एटलुं ज कहेवानुं छे के जीतकल्पभाष्यना कर्त्ता कोण छे ? । प्रस्तुत भाष्यमां कोई पण ठेकाणे भाष्यकारे पोताना नामनो उल्लेख कर्यो नथी, नथी चूर्णिकारे प्रस्तुत भाष्यनो पोताना ग्रन्थमां क्यांय उल्लेख कर्यो, तेम तेषो बीजो कोई एवो स्पष्ट उल्लेख पण मळतो नथी जेना आधारे भाष्यकारना नामनो चोक्कस निर्णय करी शकाय । तेम छतां प्रस्तुत जीतकल्पभाष्यनी - तिसमयहारादीणं, गाहाणऽट्ठण्ह वी सरूवं तु । बित्थरयो वण्णेज्जा, जह डेट्ठाऽऽवस्सए भणियं ॥ ६१॥ आ गाथामांना " जह हैट्ठाऽऽवस्लप भणियं ए पाठ तरफ ध्यान आपतां आपणने सहेजे एम थाय छे के -अहीं " स्सए भणियं " पटलो ज पाठ बस छतां भाष्यकारे वधारानो जह आव 66 33 । हेट्ठा शब्द शामाटे मूक्यो ? पूरणार्थक शब्द नथी के आपणे खरु जोतां ग्रन्थकारो 66 हेट्ठा 66 66 अनुक्रमे पूर्व " अने " अग्रे " अर्थमां ज वापरे छे । दा. त. " हेट्ठा भणियं " अर्थात् पूर्वं भणितम्; " उवरिं वोच्छं " अर्थात् अग्रे वक्ष्ये । आ उपरथी ए फलित थाय छे के-" प्रस्तुत जीतकल्प " ग्रंथना भाष्यकारे " तिसमयहार " अर्थात् जावइया तिसमया - " ( आव० निर्युक्ति गाथा ३० ) इत्यादि आठ गाथाओनुं स्वरूप पूर्वे आवश्यकमां विस्तारथी वर्णव्युं छे " आवइया तिसमया० आदि गाथाओं । आध श्यक निर्युक्त्तयन्तर्गत Jain Education International 66 " हेट्ठा शब्द ए कोई पाद चलावी लईए । ए बे शब्दोने در तेम मानीने " अने " उबरिं ' "" For Private Personal Use Only 33 P„ www.jainelibrary.org

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