Book Title: Agam 30 2 Chandravejjhaya Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 5
________________ आगम सूत्र ३०/२, पयन्नासूत्र-७/२, ‘चन्द्रवेध्यक' [३०/२] चन्द्रवेध्यक पयन्नासूत्र-७/२- हिन्दी अनुवाद सूत्र - १ लोक पुरुष के मस्तक (सिद्धशीला) पर सदा विराजमान विकसित पूर्ण, श्रेष्ठ ज्ञान और दर्शन गुण के धारक ऐसे श्री सिद्ध भगवन्त और लोक में ज्ञान को उद्योत करनेवाले श्री अरिहंत परमात्मा को नमस्कार हो। सूत्र - २ यह प्रकरण मोक्षमार्गदर्शक शास्त्र-जिन आगम के सारभूत और महान गम्भीर अर्थवाला है। उसे चार तरह की विकथा से रहित एकाग्र चित्त से सुनो और सुनकर तद् अनुसार आचरण करने में पलभर का भी प्रमाद मत कर। सूत्र-३ विनय, आचार्य के गुण, शिष्य के गुण, विनयनिग्रह के गुण, ज्ञानगुण, चारित्रगुण और मरणगुण में कहूँगा। सूत्र-४ जिनके पास से विद्या-शिक्षा पाई है, वो आचार्य-गुरु का जो मानव पराभव तिरस्कार करता है, उसकी विद्या कैसे भी कष्ट से प्राप्त की हो तो भी निष्फल होती है। सूत्र-५ कर्म की प्रबलता को लेकर जो जीव गुरु का पराभव करता है, वो अक्कड-अभिमानी और विनयहीन जीव जगत में कहीं भी यश या कीर्ति नहीं पा सकता । लेकिन सर्वत्र पराभव पाता है। सूत्र-६ गुरुजनने उपदेशी हुई विद्या को जो मानव विनयपूर्वक ग्रहण करता है, वो सर्वत्र आश्रय, विश्वास और यश-कीर्ति प्राप्त करता है। सूत्र -७ अविनीत शिष्य की श्रमपूर्वक शीखी हई विद्या गुरुजन के पराभव करने की बुद्धि के दोष से अवश्य नष्ट होती है, शायद सर्वथा नष्ट न हो तो भी अपने वास्तविक लाभ फल को देनेवाली नहीं होती। सूत्र-८ विद्या बार-बार स्मरण करने के योग्य है, संभालने योग्य है । दुर्विनीत-अपात्र को देने के लिए योग्य नहीं है । क्योंकि दुर्विनीत विद्या और विद्या दाता गुरु दोनो पराभव करते हैं। सूत्र -९ विद्या का पराभव करनेवाला और विद्यादाता आचार्य के गुण को प्रकट नहीं करनेवाला प्रबल मिथ्यात्व पानेवाला दुर्विनीत जीव ऋषिघातक की गति यानि नरकादि दुर्गति का भोग बनता है। सूत्र - १० विनय आदि गुण से युक्त पुन्यशाली पुरुष द्वारा ग्रहण की गई विद्या भी बलवती बनती है । जैसे उत्तम कुल में पैदा होनेवाली लड़की मामूली पुरुष को पति के रूप में पाकर महान बनती है । सूत्र-११ हे वत्स ! तब तक तू विनय का ही अभ्यास कर, क्योंकि विनय विना-दुर्विनीत ऐसे तुझे विद्या द्वारा क्या प्रयोजन है ? सचमुच विनय शीखना दुष्कर है। विद्या तो विनीत को अति सुलभ होती है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(चंद्रवेध्यक)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 5

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