Book Title: Agam 30 2 Chandravejjhaya Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 13
________________ आगम सूत्र ३०/२, पयन्नासूत्र-७/२, चन्द्रवेध्यक' सूत्र - १०३ जो दृढ़ प्रज्ञावाले भाव से एकाग्र चित्तवाले बनकर पारलौकिक हित की गवेषणा करते हैं । वो मानव सर्व दुःख का पार पाते हैं। सूत्र-१०४ संयम में अप्रमत्त होकर जो पुरुष क्रोध, मान, माया, लोभ, अरति और दुगंछा का क्षय कर देता है । वो यकीनन परम सुख पाता है। सूत्र - १०५ अति दुर्लभ मानव जन्म पाकर जो मानव उसकी विराधना करता है, जन्म को सार्थक नहीं करता, वो जहाज तूट जाने से दुःखी होनेवाले जहाजचालक की तरह पीछे से बहुत दुःखी होता है। सूत्र - १०६ दुर्लभतर श्रमणधर्म पाकर जो पुरुष मन, वचन, काया के योग से उसकी विराधना नहीं करते, वो सागर में जहाज पानेवाले नाविक की तरह पीछे शोक नहीं पाते । सूत्र - १०७, १०८ ___ सबसे पहले तो मानव जन्म पाना दुर्लभ, मानव जन्म में बोधि प्राप्ति दुर्लभ है । बोधि मिले तो भी श्रमणत्व अति दुर्लभ है । साधुपन मिलने के बावजूद भी शास्त्र का रहस्यज्ञान पाना अति दुर्लभ है । ज्ञान का रहस्य समझने के बाद चारित्र की शुद्धि होना अति दुर्लभ है । इसलिए ही ज्ञानी पुरुष आलोचनादि के द्वारा चारित्र विशुद्धि के लिए परम उद्यमशील रहते हैं। सूत्र-१०९ कितनेक सम्यक्त्वगुण की नियमा प्रशंसा करते हैं, कितनेक चारित्र की शुद्धि की प्रशंसा करते हैं तो कुछ सम्यग् ज्ञान की प्रशंसा करते हैं। सूत्र - ११०-१११ सम्यक्त्व और चारित्र दोनों गुण एक साथ प्राप्त होते हो तो बुद्धिशाली पुरुष को उसमें से कौन-सा गुण पहले करना चाहिए? चारित्र बिना भी सम्यक्त्व होता है। जिस तरह कृष्ण और श्रेणिक महाराजा को अविरतिपन में भी सम्यक्त्व था । लेकिन जो चारित्रवान हैं, उन्हें सम्यक्त्व नियमा होते हैं। सूत्र - ११२ चारित्र से भ्रष्ट होनेवाले को श्रेष्ठतर सम्यक्त्व यकीनन धारण कर लेना चाहिए। क्योंकि द्रव्य चारित्र को न पाए हए भी सिद्ध हो सकता है, लेकिन दर्शनगुण रहित जीव सिद्ध नहीं हो सकते । सूत्र - ११३ उत्कृष्ट चारित्र पालन करनेवाले भी किसी मिथ्यात्व के योग से संयम श्रेणी से गिर जाते हैं, तो सराग धर्म में रहे-सम्यग्दृष्टि उसमें से पतित हो जाए उसमें क्या ताज्जुब ? सूत्र - ११४ जो मुनि की बुद्धि पाँच समिति और तीन गुप्ति युक्त है। और जो राग-द्वेष नहीं करता, उसका चारित्र शुद्ध बनता है। सूत्र - ११५ उस चारित्र की शुद्धि के लिए समिति और गुप्ति के पालनरूप कार्य में प्रयत्नपूर्वक उद्यम करो। और फिर सम्यग्दर्शन, चारित्र और ज्ञान की साधना में लेशमात्र प्रमाद मत कर । मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(चंद्रवेध्यक)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 13

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