Book Title: Agam 30 2 Chandravejjhaya Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 11
________________ आगम सूत्र ३०/२, पयन्नासूत्र-७/२, चन्द्रवेध्यक' सूत्र-७८ प्रवचन के परमार्थ को अच्छी तरह से ग्रहण करनेवाला पुरुष ही बँध और मोक्ष को अच्छी तरह जानकर वो ही पुरातन-कर्म का क्षय करते हैं। सूत्र - ७९ ज्ञान से सम्यक् क्रिया होती है और क्रिया से ज्ञान-आत्मसात् होता है । इस तरह ज्ञान और सम्यग् क्रिया के योग से भाव चारित्र की विशुद्धि होती है। सूत्र-८० ज्ञान प्रकाश करनेवाला है, तप शुद्धि करनेवाला है और संयम रक्षण करनेवाला है, इस तरह ज्ञान, तप और संयम तीनों के योग से जिनशासन में मोक्ष कहा है। सूत्र - ८१ जगत के लोग चन्द्र की तरह बहुश्रुत-महात्मा पुरुष के मुख को बार-बार देखता है । उससे श्रेष्ठतर, आश्चर्यकारक और अति सुन्दर चीज कौन-सी है? सूत्र-८२ चन्द्र से जिस तरह शीतल-ज्योत्सना नीकलती है, वो सब लोगों को खुश-आह्लादित करती है । उस तरह गीतार्थ ज्ञानीपुरुष के मुख से चन्दन जैसे शीतल जिनवचन नीकलते हैं, जो सुनकर मानव भवाटवी पार पा लेते हैं सूत्र-८३ धागे से पिराई हई सूई जिस तरह कूड़े में गिरने के बाद नहीं गूम होती वैसे आगम का ज्ञानी जीव संसार अटवी में गिरने के बाद भी गम नहीं होता। सूत्र-८४ जिस तरह धागे के बिना सूई नजर में न आने से गूम हो जाती है । वैसे सूत्र-शास्त्र बोध बिना मिथ्यात्व से घिरा जीव भवाटवी में खो जाता है। सूत्र-८५ श्रुतज्ञान द्वारा परमार्थ का यथार्थ दर्शन होने से, तप और संयम गुण को जीवनभर अखंड रखने से मरण के वक्त शरीर संपत्ति नष्ट हो जाने से जीव को विशिष्ट गति-सद्गति और सिद्धगति प्राप्त होती है। सूत्र -८६ जिस तरह वैद्य वैदक शास्त्र के ज्ञान द्वारा बीमारी का निदान जानते हैं, वैसे श्रुतज्ञान द्वारा मुनि चारित्र की शुद्धि कैसे करना, वो अच्छी तरह जानते हैं। सूत्र - ८७ वैदक ग्रंथ के अभ्यास बिना जैसे वैद्य व्याधि का निदान नहीं जानता, वैसे आगमिक ज्ञान से रहित मुनि चारित्र शुद्धि का उपाय नहीं जान सकता । सूत्र -८८ उस कारण से मोक्षाभिलाषी आत्मा ने श्री तीर्थंकर प्ररूपित आगम अर्थ के साथ पढ़ने में सतत उद्यम करना चाहिए। सूत्र-८९ श्री जिनेश्वर परमात्मा के बताए हए बाह्य और अभ्यंतर तप के बारह प्रकारों में स्वाध्याय समान अन्य कोई तप नहीं है और होगा भी नहीं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(चंद्रवेध्यक)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 11

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