Book Title: Agam 30 2 Chandravejjhaya Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, DeepratnasagarPage 15
________________ आगम सूत्र ३०/२, पयन्नासूत्र-७/२, ‘चन्द्रवेध्यक' सूत्र - १२८ धनुष ग्रहण करके, उसके ऊपर खींचकर तीर चड़ाकर लक्ष्य के प्रति-स्थिर मतिवाला पुरुष अपनी शिक्षा के बारे में सोचता हुआ-राधा वेध को बाँध लेता है । सूत्र - १२९ लेकिन वो धनुर्धर अपने चित्त को लक्ष्य से अन्यत्र ले जाने की गलती कर बैठे तो प्रतिज्ञाबद्ध होने के बावजूद राधा के चन्द्रक रूप वेध्य को बींध नहीं सकता। सूत्र - १३० चन्द्रवेध्य की तरह मरण के वक्त समाधि प्राप्त करने के लिए अपने आत्मा को मोक्ष मार्ग में अविराधि गुणवाला अर्थात् आराधक बनाना चाहिए। सूत्र-१३१ सम्यग्दर्शन की दृढ़ता से निर्मल बुद्धिवाला और स्वकृत पाप की आलोचना निंदा-गर्दा करनेवाले अन्तिम वक्त पर मुनि का मरण शुद्ध होता है । सूत्र - १३२ ज्ञान, दर्शन और चारित्र के विषय में मुझसे जो अपराध हुए हैं, श्री जिनेश्वर भगवंत साक्षात् जानते हैं, उन सर्व अपराध की सर्व भाव से आलोचना करने के लिए मैं उपस्थित हुआ हूँ। सूत्र - १३३ संसार का बंध करनेवाले, जीव सम्बन्धी राग और द्वेष दो पाप को जो पुरुष रोक ले-दूर करे वो मरण के वक्त यकीनन अप्रमत्त-समाधियुक्त बनता है। सूत्र - १३४ जो पुरुष जीव के साथ तीन दंड़ का ज्ञानांकुश द्वारा गुप्ति रखने के द्वारा निग्रह करते हैं, वो मरण के वक्त कृतयोगी-यानि अप्रमत्त रहकर समाधि रख सकता है। सूत्र-१३५ जिनेश्वर भगवंत से गर्हित, स्वशरीर में पैदा होनेवाले, भयानक क्रोध आदि कषाय को जो पुरुष हमेशा निग्रह करता है, वो मरण में समतायोग को सिद्ध करता है। सूत्र - १३६ जो ज्ञानी पुरुष विषय में अति लिप्त इन्द्रिय के ज्ञान रूप अंकुश द्वारा निग्रह करता है, वो मरण के वक्त समाधि साधनेवाला बनता है। सूत्र - १३७ छ जीव निकाय का हितस्वी, इहलोकादि सात भय रहित, अति मृदु-नम्र स्वभाववाला मुनि नित्य सहज समता का अहसास करते हुए मरण के वक्त परम समाधि को सिद्ध करनेवाला बनता है। सूत्र - १३८ जिन्होंने आठ मद जीत लिए हैं, जो ब्रह्मचर्य की नव-गुप्ति से गुप्त-सुरक्षित है, क्षमा आदि दस यति धर्म के पालन में उद्यत है, वो मरण के वक्त भी यकीनन समता-समाधिभाव पाता है। सूत्र - १३९ जो अतिदुर्लभ ऐसे मोक्षमार्ग की आराधना ईच्छता हो, देव, गुरु, आदि आशातना का वर्जन करता हो या धर्मध्यान के सतत अभ्यास द्वारा शुक्लध्यान सन्मुख हआ हो, वो मरण में यकीनन समाधि प्राप्त करता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(चंद्रवेध्यक)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 15Page Navigation
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