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आगम सूत्र २८, पयन्नासूत्र-५, 'तन्दुलवैचारिक'
सूत्र
[२८] तन्दुलवैचारिक पयन्नासूत्र-५-हिन्दी अनुवाद
सूत्र-१
जरा-मरण से मुक्त हुए ऐसे जिनेश्वर महावीर को प्रणाम कर के यह 'तन्दुल वेयालिय' पयन्ना को मैं कहूँगा। सूत्र-२
गिनने में मानव का आयु सौ साल मानकर उसे दस-दस में विभाजित किया जाता है । उन सौ साल के आयु के अलावा जो काल है उसे गर्भावास कहते हैं। सूत्र-३
उस गर्भकाल और जितने दिन, रात, मुहूर्त और श्वासोच्छ्वास-जीव गर्भावासमें रहे उस की आहार विधि कहते हैं। सूत्र-४
जीव २७० पूर्ण रात-दिन और आधा दिन गर्भ में रहता है । नियम से जीव को इतने दिन-रात गर्भवासमें लगता है।
सूत्र-५
लेकिन उपघात की वजह से उस से कम या ज्यादा दिन में भी जन्म ले सकता है। सूत्र-६
नियम से जीव ८३२५ मुहूर्त तक गर्भ में रहता है, फिर भी उसमें हानि-वृद्धि भी हो सकती है। सूत्र-७
जीव को गर्भ में-३१४१०२२५ श्वास-उच्छ्वास होते हैं । लेकिन उस से कम-ज्यादा भी हो सकते हैं। सूत्र -९
हे आयुष्मान् ! स्त्री की नाभि के नीचे पुष्पडंठल जैसी दो सिरा होती है। सूत्र-१०
उस के नीचे उलटे किए हए कमल के आकार की योनि होती है । जो तलवार की म्यान जैसी होती है। सूत्र-११
उसे योनि के भीतर में आम की पेशी जैसी मांसपिंड़ होती है वो ऋतुकाल में फूटकर लहू के कण छोड़ती है । उलटे किए हुए कमल के आकार की वो योनि जब शुक्र मिश्रित होती है, तब वो जीव उत्पन्न करने लायक होती है । ऐसा जिनेन्द्र ने कहा है। सूत्र - १२
गर्भ उत्पत्ति के लायक योनिमें १२ मुहूर्त तक लाख पृथक्त्व से अधिक जीव रहता है । बाद वे नष्ट होते हैं सूत्र-१३
५५ साल के बाद स्त्री की योनि गर्भधारण के लायक नहीं रहती और ७५ साल बाद पुरुष प्रायः शुक्राणु रहित हो जाता है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (तंदुलवैचारिक) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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