Book Title: Agam 28 Tandulvaicharik Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, DeepratnasagarPage 17
________________ आगम सूत्र २८, पयन्नासूत्र-५, 'तन्दुलवैचारिक' सूत्रसूत्र - ११५ यह शरीर कौए, कुत्ते, कीड़ी, मकोड़े, मत्स्य और मुर्दाघर में रहते गिधड आदि का भोज्य और व्याधि से ग्रस्त है । उस शरीर से कौन राग करेगा? सूत्र - ११६ अपवित्र विष्ठा पूरित, माँस और हड्डी का घर, मलस्रावि, रज-वीर्य से उत्पन्न नौ छिद्रयुक्त अशाश्वत जानना सूत्र - ११७ तिलकयुक्त, विशेष रक्त होंठवाली लड़की को देखत हो । सूत्र - ११८ बाहरी रूप को देखते हो लेकिन भीतर के दुर्गंधयुक्त मल को नहीं देखते । सूत्र - ११९ मोह से ग्रसित होकर नाच उठते हो और ललाट के अपवित्र रस को (चुंबन से) पीते हो । सूत्र-१२० ललाट से उत्पन्न हुआ रस जिसे स्वयं थूकते हो, घृणा करते हो और उसमें ही अनुरक्त होकर अति आसक्ति से पीते हो। ललाट अपवित्र है, नाक विविध अंग, छिद्र, विछिद्र भी अपवित्र है । शरीर भी अपवित्र चमड़े से ढंका हुआ; सूत्र-१२१ अंजन से निर्मल, स्नान-उद्वर्तन से संस्कारित, सुकुमाल पुष्प से सुशोभित केशराशि युक्त स्त्री का मुख अज्ञानी को राग उत्पन्न करता है। सूत्र-१२२ अज्ञान बुद्धिवाला जो फूलों को मस्तक का आभूषण कहता है वो केवल फूल ही है । मस्तक का आभूषण नहीं । सूनो ! सूत्र - १२३ चरबी, वसा, रसि, कफ, श्लेष्म, मेद यह सब सिर के भूषण हैं यह अपने शरीर के स्वाधीन है। सूत्र - १२४ यह शरीर भूषित होने के लिए उचित नहीं है । विष्ठा का घर है । दो पाँव और नौ छिद्रों से युक्त है । तीव्र बदबू से भरा है। उसमें अज्ञानी मानव अति मूर्छित होता है । सूत्र - १२५ कामराग से रंगे हुए तुम गुप्त अंग को प्रकट करके दाँत के चीकने मल और खोपरी में से नीकलनेवाली कांजी अर्थात् विकृत रस को पीते हो। सूत्र - १२६ हाथी के दन्त मूसल-ससा और मृग का माँस, चमरी गौ के बाल और चित्ते का चमड़ा और नाखून के लिए उनका शरीर ग्रहण किया जाता है। सूत्र-१२७ (मनुष्य शरीर किस काम का है ?) हे मूर्ख ! वह शरीर दुर्गंध युक्त और मरण के स्वभाववाला है । उसमें नित्य भरोसा करके तुम क्यों आसक्त मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (तंदुलवैचारिक) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 17Page Navigation
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