Book Title: Agam 28 Tandulvaicharik Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, DeepratnasagarPage 21
________________ सूत्र आगम सूत्र २८, पयन्नासूत्र-५, 'तन्दुलवैचारिक' सूत्र - १५५ धर्म रक्षक है। धर्म शरण है, धर्म ही गति और आधार है । धर्म का अच्छी तरह से आचरण करने से अजर अमर स्थान की प्राप्ति होती है। सूत्र-१५६ धर्म प्रीतिकर-कीर्तिकर-दीप्तिकर-यशकर-रतिकर-अभयकर-निवृत्तिकर और मोक्ष प्राप्ति में सहायक है। सूत्र- १५७ सुकृतधर्म से ही मानव को श्रेष्ठ देवता के अनुपम रूप-भोगोपभोग, ऋद्धि और विज्ञान का लाभ प्राप्त होता है। सूत्र - १५८ देवेन्द्र, चक्रीपद, राज्य, ईच्छित भोग से लेकर निर्वाण पर्यन्त यह सब धर्म आचरण का ही फल है । सूत्र-१५९ यहाँ सौ साल के आयुवाले मानव का आहार, उच्छ्वास, संधि, शिरा, रोमफल, लहू, वीर्य की गिनती की दृष्टि से परिगणना की गई है। सूत्र - १६० जिस की गिनती द्वारा अर्थ प्रकट किया गया है ऐसे शरीर के वर्षों को सूनकर तुम मोक्ष समान कमल के लिए कोशिश कर लो जिसके सम्यक्त्व समान हजार पंखड़ियाँ हैं। सूत्र - १६१ यह शरीर जन्म, जरा, मरण, दर्द से भरी गाड़ी जैसा है । उसे पा कर वही करना चाहिए जिस से सब दुःख से छूटकारा पा सकें। | (२८) तंदुलवैचारिक- पयन्नासूत्र-५ हिन्दी अनुवाद | पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (तंदुलवैचारिक) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 21Page Navigation
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