Book Title: Agam 28 Tandulvaicharik Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 20
________________ आगम सूत्र २८, पयन्नासूत्र-५, 'तन्दुलवैचारिक' सूत्र'महिलिका', मर्द को हावभाव से रमण करवाती है इसलिए 'रमा', मर्दो को अपने अंग में राग करवाती है इसलिए 'अंगना', कई तरह के युद्ध-कलह-संग्राम-अटवी में भ्रमण, बिना प्रयोजन कर्ज लेना, शर्दी, गर्मी का दुःख और क्लेश खड़े करने के आदि कार्य में वो मर्द को प्रवृत्त करती है इसलिए ललना', योग-नियोग द्वारा पुरुष को बस में करती है इसलिए योषित्' एवं विविध भाव द्वारा पुरुष की वासना उद्दीप्त करती है इसलिए वनिता कहलाती है। किसी स्त्री प्रमत्तभाव को, किसी प्रणय विभ्रम को और किसी श्वास के रोगी की तरह शब्द-व्यवहार करते हैं । कोई शत्रु जैसी होती है और कोई रो-रो कर पाँव पर प्रणाम करती हैं । कोई स्तुति करती है । कोई आश्चर्य, हास्य और कटाक्ष से देखती है । कोई विलासयुक्त मधुर वचन से, कोई हास्य चेष्टा से, कोई आलिंगन से, कोई सीत्कार के शब्द से, कोई गृहयोग के प्रदर्शन से, कोई भूमि पर लिखकर या चिह्न करके, कोई वांस पर चड़कर नत्य द्वारा, कोई बच्चे के आलिंगन द्वारा, कोई अंगली के टचाके, स्तन मर्दन और कटितट पीडन आदि से पुरुष को आकृष्ट करती है । यह स्त्री विघ्न करने में जाल की तरह, फाँसने में कीचड़ की तरह, मारने में मौत की तरह, जलाने में अग्नि की तरह और छिन्न-भिन्न करने में तलवार जैसी होती है। सूत्र- १४४ स्त्री कटारी जैसी तीक्ष्ण, श्याही जैसी कालिमा, गहन वन जैसी भ्रमित करनेवाली, अलमारी और कारागार जैसी बँधनकारक, प्रवाहशील अगाध जल की तरह भयदायक होती है। सूत्र-१४५ यह स्त्री सेंकड़ों दोष की गगरी, कईं तरह अपयश फैलानेवाली कुटील हृदया, छलपूर्ण सोचवाली होती है सूत्र - १४६ यह स्त्रियाँ एकमें रत होती हैं, अन्य के साथ क्रीड़ा करती हैं, अन्य के साथ नयन लड़ाती हैं और अन्य के पार्श्व में जाकर ठहरती है । उसके स्वभाव को बुद्धिमान भी नहीं जान सकते । सूत्र - १४७, १४८ गंगा के बालुकण, सागर का जल, हिमवत् का परिमाण, उग्रतप का फल, गर्भ से उत्पन्न होनेवाला बच्चा; शेर की पीठ के बाल, पेट में रहा पदार्थ, घोड़े को चलने की आवाज उसे शायद बुद्धिमान मानव जान शके लेकिन स्त्री के दिल को नहीं जान सकता। सूत्र - १४९ इस तरह के गुण से युक्त यह स्त्री बंदर जैसी चंचल मनवाली और संसारमें भरोसा करने के लायक नहीं है। सूत्र - १५० लोक में जैसे धान्य विहिन खल, पुष्परहित बगीचा, दूध रहित गाय, तेल रहित तल निरर्थक हैं वैसे स्त्री भी सुखहीन होने से निरर्थक है। सूत्र-१५१ जितने समयमें आँख बन्द करके खोली जाती है उतने समय में स्त्री का दिल और चित्त हजार बार व्याकुल हो जाता है। सूत्र - १५२ मूरख, बुढे, विशिष्ट ज्ञान से हीन, निर्विशेष संसार में शूकर जैसी नीच प्रवृत्तिवाले को उपदेश निरर्थक है । सूत्र - १५३ पुत्र, पिता और काफी-संग्रह किए गए धन से क्या फायदा? जो मरते समय कुछ भी सहारा न दे सके ? सूत्र - १५४ मौत होने से पुत्र, मित्र, पत्नी भी साथ छोड़ देती हैं मगर सुउपार्जित धर्म ही मरण समय साथ नहीं छोड़ता मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (तंदुलवैचारिक) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 20

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