Book Title: Agam 28 Tandulvaicharik Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 12
________________ आगम सूत्र २८, पयन्नासूत्र-५, 'तन्दुलवैचारिक' सूत्रकुब्ज, वामन और हुंडक । हे आयुष्मान् ! वर्तमानकाल में केवल हुंडक संस्थान ही होता है । सूत्र-६६ मानव के संहनन, संस्थान, ऊंचाई, आयु अवसर्पिणी कालदोष की वजह से धीरे-धीरे क्षीण होते जाते हैं सूत्र-६७ क्रोध, मान, माया, लोभ और झूठे तोल-नाप की क्रिया आदि सब अवगुण बढ़ते हैं । सूत्र-६८ तराजु और जनपद में नाप तोल विषम होते हैं । राजकुल और वर्ष विषम होते हैं । सूत्र-६९ विषम वर्ष में औषधि की ताकत कम हो जाती है । इस समय में औषधि की कमजोरी की वजह से आयु भी कम होता है। सूत्र-७० इस तरह कृष्ण पक्ष के चन्द्रमा की तरह ह्रासमान लोग में जो धर्म में अनुरक्त मानव है वो अच्छी तरह से जीवन जीता है। सूत्र-७१ हे आयुष्मान् ! जो किसी भी नाम का पुरुष स्नान कर के, देवपूजा कर के, कौतुक मंगल और प्रायश्चित्त करके, सिर पर स्नान कर के, गलेमें माला पहनकर, मणी और सोने के आभूषण धारण करके, नए और कीमती वस्त्र पहनकर, चन्दन के लेपवाले शरीर से, शुद्ध माला और विलेपन युक्त, सुन्दर हार, अर्द्धहार-त्रिसरोहार, कन्दोरे से शोभायमान होकर, वक्षस्थल पर ग्रैवेयक, अंगुली में खूबसूरन अंगुठी, बाहु पर कई तरह के मणी और रत्नजड़ित बाजुबन्ध से विभूषित, अत्यधिक शोभायुक्त, कुंडल से प्रकाशित मुखवाले, मुगट से दीपे हुए मस्तक वाले, विस्तृत हार से शोभित वक्षस्थल, लम्बे सुन्दर वस्त्र के उत्तरीय को धारण करके, अंगुठी से पीले वर्ण की अंगुलीवाले, तरह-तरह के मणी-सुवर्ण विशुद्ध रत्नयुक्त, अनमोल प्रकाशयुक्त, सुश्लिष्ट, विशिष्ट, मनोहर, रमणीय और वीरत्व के सूचक कड़े धारण कर ले । ज्यादा कितना कहना ? कल्पवृक्ष जैसे, अलंकृत विभूषित और पवित्र होकर अपने माँ-बाप को प्रणाम करे तब वो इस प्रकार कहेंगे, हे पुत्र ! सौ साल का बन । लेकिन उसका आयु १०० साल हो तो जीव अन्यथा ज्यादा कितना जीएगा? सौ साल जीनेवाला वो बीस युग जीता है । अर्थात् वो २०० अयन या ६०० ऋतु या १२०० महिने या २४०० पक्ष या ३६००० रात-दिन या १०८०००० मुहूर्त या ४०७४८४०००० साँसे जीतना जी लेता है । हे भगवन् ! वो साड़े बाईस 'तंदुलवाह' किस तरह खाता है ? हे गौतम ! कमजोर स्त्री द्वारा सूपड़े से छड़े गए, खरमूसल से कूटे गए, भूसे और रहित करके अखंडित और परिपूर्ण चावल के साड़े बारह पल' का एक प्रस्थ होता है । उस प्रस्थ को 'मागध' भी (सामान्यतः) प्रतिदिन सुबह एक प्रस्थ और शाम को एक प्रस्थ ऐसे दो समय चावल खाते हैं । एक प्रस्थक में ६४००० चावल होते हैं । २००० चावल के दाने का एक कवल से पुरुष का आहार ३२ कवल स्त्री का आहार २८ कवल और नपुंसक के २४ कवल होते हैं । यह गिनती इस तरह है । दो असती की प्रसृति, दो प्रसृति का एक सेतिका, चार सेतिका का एक कुडव, चार कुडव का एक प्रस्थक, चार प्रस्थक का एक आढक, साठ आढक का एक जघन्य कुम्भ, अस्सी आढक का एक मध्यमकुम्भ, सौ आढक का एक उत्कृष्ट कुम्भ और ५०० आढक का एक वाह होता है । इस वाह के मुताबिक साड़े बाईस वाह तांदुल खाते हैं । उस गिनती के मुताबिकसूत्र - ७२ ४६० करोड़, ८० लाख चावल के दाने होते हैं वैसा कहा है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (तंदुलवैचारिक) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 12

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