Book Title: Agam 28 Tandulvaicharik Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, DeepratnasagarPage 10
________________ आगम सूत्र २८, पयन्नासूत्र-५, 'तन्दुलवैचारिक' सूत्रसूत्र-५७ नब्बे की उम्र तक शरीर झुक जाता है और सौ तक जीवन पूर्ण होता है । इसमें सुख कितना और दुःख कितना? सूत्र-५८ जो सुख से १०० साल जीता है और भोग को भुगतता है । उनके लिए भी जिनभाषित धर्म का सेवन श्रेयस्कर है। सूत्र- ५९ जो हमेशा दुःखी और कष्टदायक हालात में ही जीवन जीता है उन के लिए क्या उत्तम ? उस के लिए जिनेन्द्र द्वारा उपदेशित श्रेष्ठतर धर्म का पालन करना ही कर्तव्य है। सूत्र-६० सांसारिक सुख भुगतता हुआ वो ऐसे सोचते हुए धर्म आचरण करता रहता है कि मुझे भवान्तर में उत्तम सुख प्राप्त होगा । दुःखी ऐसे सोचकर धर्म आचरण करता है कि मुझे भवान्तर में दुःख प्राप्त न हो। सूत्र - ६१ नर या नारी को जाति, फल, विद्या और सुशिक्षा भी संसार से पार नहीं उतारती । यह सब तो शुभ कर्म से ही वृद्धि पाता है। सूत्र-६२ शुभ कर्म (पुण्य) कमजोर होते ही पौरुष भी कमजोर होता है । शुभ कर्म की वृद्धि होने से पौरुष भी वृद्धि पाता है। सूत्र - ६३ हे आयुष्मान् ! पुण्य कृत्य करने से प्रीति में वृद्धि होती है । प्रशंसा, धन और यश में वृद्धि होती है । इसलिए हे आयुष्मान् ! ऐसा कभी नहीं सोचना चाहिए कि यहाँ काफी समय, आवलिका, क्षण, श्वासोच्छ्वास, स्तोक, लव, मुहूर्त, दिन, आहोरात्र, पक्ष, मास, अयन, संवत्सर, युग, शतवर्ष, सहस्र वर्ष, लाख करोड़ या क्रोड़ा क्रोड़ साल जीना है । जहाँ हमने कईं शील, व्रत, गुणविरमण, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास, अपना कर स्थिर रहेंगे। हे आयुष्मान् ! तब ऐसा चिन्तन क्यों नहीं करता कि निश्चय से यह जीवन कईं बाधा से युक्त है। उसमें कईं वात, पित्त, श्लेष्म, सन्निपात आदि तरह-तरह के रोगांतक जीवन को छती है ? सूत्र-६४ हे आयुष्मान् ! पूर्वकाल में युगलिक, अरिहंत चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव चारण और विद्याधर आदि मानव रोग रहित होने से लाखों साल तक जीवन जीते थे । वो काफी सौम्य, सुन्दर रूपवाले, उत्तम भोग-भुगतनेवाला, उत्तम लक्षणवाले, सर्वांग सुन्दर शरीरवाले थे । उन के हाथ और पाँव के तालवे लाल कमल पत्र जैसे और कोमल थे। अंगुलीयाँ भी कोमल थी । पर्वत, नगर, मगरमच्छ, सागर एवम् चक्र आदि उत्तम और मंगल चिन्हों से युक्त थे । पाँव कछुए की तरह-सुप्रतिष्ठित और सुस्थित, जाँघ हीरनी और कुरुविन्द नाम के तृण की तरह वृत्ताकार गोढ़ण डिब्बे और उसके ढक्कन की सन्धि जैसे, साँथल हाथी की सोंढ़ की जैसी, गति उत्तम मदोन्मत्त हाथी जैसी विक्रम और विलास युक्त, गुह्य प्रदेश उत्तम जात के श्रेष्ठ घोड़े जैसा, कमर शेर की कमर से भी ज्यादा गोल, शरीर का मध्य हिस्सा समेटी हुई तीन-पाई, मूसल, दर्पण और शुद्ध किए गए उत्तम सोने के बने हुए खड्ग की मूढ़ और वज्र जैसे वलयाकार, नाभि गंगा के आवर्त्त और प्रदक्षिणावर्त्त, तरंग समूह जैसी, सूरज की किरणों से फैली हुई कमल जैसी गम्भीर और गूढ, रोमराजी रमणीय, सुन्दर स्वाभाविक पतली, काली, स्निग्ध, प्रशस्त, लावण्ययुक्त अति मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (तंदुलवैचारिक) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद Page 10Page Navigation
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