Book Title: Agam 28 Tandulvaicharik Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २८, पयन्नासूत्र-५, 'तन्दुलवैचारिक'
सूत्रसूत्र - २९
उसे विष्ठा, मूत्र, कफ, नाक का मैल नहीं होते । और आहार अस्थि, मज्जा, नाखून, केश, दाढ़ी-मूंछ के रोम के रूप में परिणमित होते हैं। सूत्र - ३०
आहार परिणमन और श्वासोच्छ्वास सब कुछ शरीर प्रदेश से होता है । और वो कवलाहार नहीं करता। सूत्र-३१
इस तरह दुःखी जीव गर्भ में शरीर प्राप्त कर के अशुचि प्रदेश में निवास करता है। सूत्र - ३२
हे आयुष्मान् ! तब नौ महिने में माँ उस के द्वारा उत्पन्न होनेवाले गर्भ को चार में से किसी एक रूप में जन्म देती है । वो इस तरह से स्त्री, पुरुष, नपुंसक या माँसपिंड़। सूत्र - ३३
यदी शुक्र कम और रज ज्यादा हो तो स्त्री, और यदी रज कम और शुक्र ज्यादा हो तो पुरुष, सूत्र - ३४
रज और शुक्र-दोनों समान मात्रा में हो तो नपुंसक उत्पन्न होता है और केवल स्त्री रज की स्थिरता हो तो माँसपिंड उत्पन्न होता है। सूत्र - ३५
प्रसव के समय बच्चा सर या पाँव से नीकलता है। यदि वो सीधा बाहर नीकले तो सकुशल उत्पन्न होता है लेकिन यदि वो तीर्छा हो जाए तो मर जाता है। सूत्र-३६
___ कोई पापात्मा अशुचि प्रसूत और अशुचि रूप गर्भवास में उत्कृष्ट से १२ साल तक रहता है । सूत्र - ३७
जन्म और मौत के समय जीव जो दुःख पाता है उस से विमूढ़ होनेवाला जीव अपने पूर्वजन्म का स्मरण नहीं कर सकता। सूत्र-३८
तब रोते हुए ओर अपनी माता के शरीर को पीड़ा देते हुए योनि मुख से बाहर नीकलता है । सूत्र - ३९
गर्भगृहमें जीव कुंभीपाक नरक की तरह विष्ठा, मल-मूत्र आदि अशुचि स्थान में उत्पन्न होते हैं। सूत्र-४०
__ जिस तरह विष्ठामें कृमि उत्पन्न होते हैं उसी तरह पुरुष का पित्त, कफ, वीर्य, लहू और मूत्र के बीच जीव उत्पन्न होता है। सूत्र-४१
___ उस जीव का शुद्धिकरण किस तरह हो जिस की उत्पत्ति ही शुक्र और लहू के समूह में हुई हो । सूत्र-४२
अशुचि से उत्पन्न और हमेशा दुर्गन्धवाले विष्ठा से भरे, नित्य शुचि की अपेक्षा करनेवाले शरीर पर गर्व कैसा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (तंदुलवैचारिक) आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद
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