________________
सूत्र
आगम सूत्र २७, पयन्नासूत्र-४, 'भक्तपरिज्ञा' निर्मल भाववाला वह शिष्य फिर से कहता है। सूत्र-२४
दारूण दुःख समान जलचर जीव के समूह से भयानक संसार समान समुद्र में से तारने के लिए समर्थ गुरु महाराज निर्विघ्न जहाज समान महाव्रत में आप हमारी स्थापना करे । (अर्थात् व्रत आरोपण करे) सूत्र-२५
जिसने कोप खंडन किया है वैसा अखंड महाव्रतवाला वह यति है, तो भी प्रव्रज्या व्रत की उपस्थापना के लिए वह योग्य है। सूत्र - २६
स्वामी की अच्छे तरीके से पालन की गई आज्ञा को जैसे चाकर विधिवत् पूरा कर के लौटाते हैं, वैसे जीवन भर चारित्र पालन कर के वो भी गुरु को उसी प्रकार से यह कहते हैं। सूत्र-२७
जिसने अतिचार सहित व्रत का पालन किया है और आकुट्टी (छल) दंड से व्रत खंडित किया है वैसे भी सम्यक उपस्थित होनेवाले को उसे (शिष्य को) उपस्थापना योग्य कहा है। सूत्र - २८
उस के बाद महाव्रत समान पर्वत के बोज से नमित हुए मस्तकवाले उस शिष्य को सगुरु विधि द्वारा महाव्रत की आरोपणा करते हैं। सूत्र-२९
अब देशविरति श्रावक समकित के लिए रक्त और जिनवचन के लिए तत्पर हो उसे भी शुद्ध अणुव्रत मरण के समय आरोपण किये जाते हैं। सूत्र-३०
नियाणा रहित और उदार चित्तवाला, हर्ष से जिन की रोमराजी विकस्वर हई हो ऐसा वो गुरु की, संघ की और साधर्मिक की निष्कपट भक्ति द्वारा पूजा करे । सूत्र-३१
प्रधान जिनेन्द्र प्रसाद, जिनबिम्ब और उत्तम प्रतिष्ठा के लिए तथा प्रशस्त ग्रन्थ लिखवाने में, सुतीर्थ में और तीर्थंकर की पूजा के लिए श्रावक अपने द्रव्य का उपयोग करे । सूत्र - ३२
यदि वो श्रावक सर्व विरति संयम के लिए प्रीतिवाला, विरुद्ध मन, (वचन) और कायावाला, स्वजन परिवार के अनुराग रहित, विषम पर खेदवाला और वैराग्यवाला होसूत्र - ३३
___वो श्रावक संथारा समान दीक्षा को अंगीकार करे और नियम द्वारा दोष रहित सर्व विरति रूप पाँच महाव्रत से प्रधान सामायिक चारित्र अंगीकार करे । सूत्र-३४,३५
जब वो सामायिक चारित्र धारण करनेवाला और महाव्रत को अंगीकार करनेवाला साधु और अंतिम पच्चक्खाण करूँ वैसे निश्चयवाला देशविरति श्रावक
विशिष्ट गुण द्वारा महान गुरु के चरणकमल में मस्तक द्वारा नमस्कार कर के कहता है कि हे भगवन् !
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(भक्तपरिज्ञा)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
Page 7