Book Title: Agam 27 Bhaktaparigna Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 12
________________ सूत्र A आगम सूत्र २७, पयन्नासूत्र-४, 'भक्तपरिज्ञा' सूत्र-८३ जिस तरह विधिवत् आराधन किए हुए मंत्र द्वारा कृष्ण सर्प का उपशमन होता है, उसी तरह अच्छे तरीके से आराधन किए हुए ज्ञान द्वारा मन समान कृष्ण सर्प वश होता है। सूत्र-८४ जिस तरह बन्दर एक पल भी निश्चल नहीं रह सकता, उसी तरह विषय के आनन्द बिना मन एक पल भी मध्यस्थ (निश्चल) नहीं रह सकता। सूत्र-८५ उस के लिए वो उठनेवाले मन समान बन्दर को जिनेश्वर के उपदेश द्वारा दोर से बाँधकर शुभ ध्यान के लिए रमण करना चाहिए। सूत्र-८६ जिस तरह दोर के साथ सूई भी कूड़े में गिर गई हो तो भी वो गुम नहीं होती, उसी तरह (शुभ ध्यान रूपी) दोर सहित जीव भी संसार में गिर गया हो तो भी नष्ट नहीं होता। सूत्र-८७ यदि लौकिक श्लोक द्वारा यव राजर्षि ने मरण से बचाया और (राजा) उसने साधुपन पाया, तो जिनेश्वर भगवान के बताए हुए सूत्र द्वारा जीव मरण के दुःख से छूटकारा पाए उसमें क्या कहना? सूत्र - ८८ या उपशम, विवेक, संवर उन पद को केवल सूनने को (स्मरण मात्र से) (उतने ही) श्रुतज्ञानवाले चिलातीपुत्र ने ज्ञान और देवत्व पाया। सूत्र-८९,९० जीव के भेद को जानकर, जावज्जीव प्रयत्न द्वारा सम्यक् मन, वचन, काया के योग से छ: काय के जीव के वध का तू त्याग कर । जिस तरह तुम्हें दःख अच्छा नहीं लगता, उसी तरह सर्व जीव को भी दुःख अच्छा नहीं लगता ऐसा जानकर, सर्व आदर से उपयुक्त (सावध) होकर आत्मवत् हर एक जीव को मानकर दया का पालन कर । सूत्र-९१ जिस तरह जगत के लिए मेरु पर्वत से ज्यादा कोई ऊंचा नहीं है और आकाश से कोई बड़ा नहीं है, उसी तरह अहिंसा समान धर्म नहीं है ऐसा तू मान ले। सूत्र - ९२ यह जीवने सभी जीव के साथ समी तरीके से सम्बन्ध पाया है । इसलिए जीव को मारता हुआ तू सर्व सम्बन्धी को मारता है। सूत्र - ९३ जीव का वध अपना ही वध मानना चाहिए और जीव की दया अपनी ही दया है, इसलिए आत्मा के सुख की ईच्छा रखनेवाले जीव ने सर्व जीव हत्या का त्याग किया हआ है। सूत्र - ९४ चार गति में भटकते हुए जीव को जितने दुःख पड़ते हैं वो सब हत्या का फल है ऐसा सूक्ष्म बुद्धि से मानना चाहिए। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(भक्तपरिज्ञा)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 12

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