Book Title: Agam 27 Bhaktaparigna Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 16
________________ सूत्र आगम सूत्र २७, पयन्नासूत्र-४, 'भक्तपरिज्ञा' सूत्र-१३१ करने, करवाने दन रूप तीन कारण द्वारा और मन, वचन और काया के योग से अभ्यंतर और बाहरी ऐसे सर्व संग का तुम त्याग करो। सूत्र - १३२ संग के (परिग्रह के) आशय से जीव हत्या करता है, झूठ बोलता है, चोरी करता है, मैथुन का सेवन करता है, और परिमाण रहित मूर्छा करता है । (परिग्रह का परिमाण नहीं करता)। सूत्र-१३३ परिग्रह बड़े भय का कारण है, क्योंकि पुत्र ने द्रव्य चोरने के बावजूद भी श्रावक कुंचिक शेठ ने मुनिपति मुनि को शंका से पीडित किया। सूत्र - १३४ सर्व (बाह्य और अभ्यंतर) परिग्रह से मुक्त, शीतल परिणामवाला और उपशांत चित्तवाला पुरुष निर्लोभता का (संतोष का) जो सुख पाता है वो सुख चक्रवर्ती भी नहीं पाते । सूत्र-१३५ शल्य रहित मुनि के महाव्रत, अखंड और अतिचार रहित हो उस मुनि के भी महाव्रत, नियाण शल्य द्वारा नष्ट होते हैं। सूत्र - १३६ वो (नियाण शल्य) रागगर्भित, द्वेषगर्भित और मोहगर्भित, तीन प्रकार से होता है; धर्म के लिए हीन कुलादिक की प्रार्थना करे उसे मोहगर्भित निदान समझना, राग के लिए जो निदान किया जाए वो राग गर्भित और द्वेष के लिए जो निदान किया जाए उसे द्वेषगर्भित समझना चाहिए । सूत्र-१३७ राग गर्भित निदान के लिए गंगदत्त का, द्वेषगर्भित निदान के लिए विश्वभूति आदि का (महावीर स्वामी के जीव) और मोह गर्भित निदान के लिए चंडपिंगल आदि के दृष्टांत प्रसिद्ध हैं। सूत्र - १३८ जो मोक्ष के सुख की अवगणना करके असार सुख के कारण रूप निदान करता है वो पुरुष काचमणि के लिए वैडूर्य रत्न को नष्ट करता है। सूत्र - १३९ दुःखक्षय, कर्मक्षय, समाधि मरण और बोधि बीज का लाभ, इतनी चीज की प्रार्थना करनी, उसके अलावा दूसरा कुछ भी माँगने के लिए उचित नहीं है। सूत्र-१४० नियाण शल्य का त्याग करके, रात्रि भोजन की निवृत्ति करके, पाँच समिति तीन गुप्ति द्वारा पाँच महाव्रत की रक्षा करते हुए मोक्ष सुख की साधना करता है। सूत्र - १४१ इन्द्रिय के विषय में आसक्त जीव सुशील गुणरूप पीछे बिना और छेदन हुए पंखवाले पंछी की तरह संसार सागर में गिरता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(भक्तपरिज्ञा)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 16

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