Book Title: Agam 27 Bhaktaparigna Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 19
________________ सूत्र आगम सूत्र २७, पयन्नासूत्र-४, 'भक्तपरिज्ञा' सूत्र - १६७ एक बार प्रयत्न कर के पालन किये जानेवाले इस के प्रभाव द्वारा, जीव जन्मांतर के लिए भी दुःख और दारिद्रय नहीं पाते। सूत्र - १६८ ___ यह धर्म अपूर्व चिन्तामणि रत्न है, और अपूर्व कल्पवृक्ष है, यह परम मंत्र है, और फिर यह परम अमृत समान है। सूत्र - १६९ अब (गुरु के उपदेश से) मणिमय मंदिर के लिए सुन्दर तरीके से स्फुरायमान जिन गुण रूप अंजन रहित उद्योतवाले विनयवंत (आराधक) पंच नमस्कार के स्मरण सहित प्राण का त्याग कर दे। सूत्र - १७० वो (श्रावक) भक्त परिज्ञा को जघन्य से आराधना कर के परिणाम की विशुद्धि द्वारा सौधर्म देवलोकमें महर्द्धिक देवता होते हैं। सूत्र-१७१ उत्कृष्टरूप से भक्तपरिज्ञा का आराधन कर के गृहस्थ अच्युत नाम के बारहवे देवलोक में देवता होते हैं, और यदि साधु हो तो उत्कृष्टरूप से मोक्ष के सुख पाते हैं या तो सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पन्न होते हैं। सूत्र-१७२ इस तरह से योगेश्वर जिन महावीरस्वामी ने कहे हुए कल्याणकारी वचन अनुसार प्ररूपित यह भक्त परिज्ञा पयन्ना को धन्यपुरुष पढ़ते हैं, आवर्तन करते हैं, सेवन करते हैं । (वे क्या पाते हैं यह आगे की गाथा में बताते हैं) सूत्र-१७३ मानव क्षेत्र के लिए उत्कृष्टरूप से विचरने और सिद्धांत के लिए कहे गए एक सौ सत्तर तीर्थंकर की तरह एक सौ सत्तर गाथा की विधिवत् आराधना करनेवाली आत्मा शाश्वत सुखवाला मोक्ष पाती है। (२७)-भक्तपरिज्ञा-प्रकीर्णकसूत्र-४ का मुनि दीपरत्नसागरकृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(भक्तपरिज्ञा)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 19

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