Book Title: Agam 27 Bhaktaparigna Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, DeepratnasagarPage 18
________________ आगम सूत्र २७, पयन्नासूत्र-४, 'भक्तपरिज्ञा' सूत्रसूत्र-१५४ __इस तरह के उपदेश समान अमृत पान द्वारा भीगे हुए चित्त के लिए, जिस तरह प्यासा पुरुष पानी पीकर शान्त होता है वैसे वो शिष्य अतिशय स्वस्थ होकर कहता हैसूत्र-१५५ हे भगवान ! मैं भवरूपी कीचड़ को पार करने को दृढ़ लकड़ी समान आप की हितशिक्षा की ईच्छा रखता हूँ, आपने जो जैसे कहा है मैं वैसे करता हूँ। ऐसे विनय से अवनत हुआ वो कहता है । सूत्र-१५६ यदि किसी दिन (इस अवसर में) अशुभ कर्म के उदय से शरीर में वेदना या तृषा आदि परिषह उसे उत्पन्न हो । सूत्र-१५७ तो निर्यामक, क्षपक (अनशन करनेवाले) को स्निग्ध, मधुर, हर्षदायी, हृदय को भानेवाला, और सच्चा वचन कहते हुए शीख देते हैं। सूत्र-१५८ हे सत् पुरुष ! तुमने चतुर्विध संघ के बीच बड़ी प्रतिज्ञा की थी, कि मैं अच्छी तरह से आराधना करूँगा अब उस का स्मरण कर | सूत्र-१५९ अरिहंत, सिद्ध, केवली और सर्व संघ की साक्षीमें प्रत्यक्ष किए गए पच्चक्खाण का भंग कौन करेगा? सूत्र-१६० ___शियालणी से अति खवाये गए, घोर वेदना पानेवाले भी अवन्तिसुकुमाल ध्यान द्वारा आराधना प्राप्त हुए । सूत्र - १६१ जिन्हें सिद्धार्थ (मोक्ष) प्यारा है ऐसे भगवान सुकोसल भी चित्रकूट पर्वत के लिए वाघण द्वारा खाए जाने पर भी मोक्ष को प्राप्त हुए। सूत्र-१६२ गोकुल में पादपोपगम अनशन करनेवाले चाणक्य मंत्री ने सुबन्धु मंत्री द्वारा जलाए हए गोबर से जलाने के बाद भी उत्तमार्थ को प्राप्त किया। सूत्र - १६३ रोहीतक में कुंच राजा द्वारा शक्ति को जलाया गया उस वेदना को याद कर के भी उत्तमार्थ (आराधकपन को) प्राप्त हुए। सूत्र-१६४,१६५ उस कारण से हे धीर पुरुष ! तुम भी सत्त्व का अवलम्बन करके धीरता धारण कर और संसार समान महान सागर का निर्गुणपन सोच । जन्म, जरा और मरण समान पानीवाला, अनादि, दुःख समान श्वापद (जलचर जीव) द्वारा व्याप्त और जीव को दुःख का हेतुरूप ऐसा भव समुद्र काफी कष्टदायी और रौद्र है । सूत्र - १६६ मैं धन्य हूँ क्योंकि मैंने अपार भव सागर के लिए लाखों भव में पाने के दुर्लभ यह सद्धर्म रूपी नाव पाई है मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(भक्तपरिज्ञा)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 18Page Navigation
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