Book Title: Agam 27 Bhaktaparigna Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २७, पयन्नासूत्र ४, 'भक्तपरिज्ञा'
सूत्र - १०७
नव ब्रह्मचर्य की गुप्ति द्वारा शुद्ध ब्रह्मचर्य की तुम रक्षा करो और काम को बहुत दोष से युक्त मानकर हमेशा जीत लो।
सूत्र
सूत्र १०८
वाकई में जितने भी दोष इस लोक और परलोक के लिए दुःखी करवानेवाले हैं, उन सभी दोष को मानव की मैथुनसंज्ञा लाती है।
सूत्र - १०९, ११०
रति और अरति समान चंचल दो जीह्वावाले, संकल्प रूप प्रचंड फणावाले, विषय रूप बिल में बसनेवाले, मदरूप मुखवाले और गर्व से अनादर रूप रोषवाले
लज्जा समान कांचलीवाले, अहंकार रूप दाढ़ वाल और दुःसह दुःख देनेवाले विषवाले, कामरूपी सर्प द्वारा डँसे गए मानव परवश दिखाई देते हैं ।
सूत्र १११
रौद्र नरक के दर्द और घोर संसार सागर का वहन करना, उस को जीव पाता है, लेकिन कामित सुख का तुच्छपन नहीं देखता ।
सूत्र - ११२
जैसे काम के सेंकड़ों तीर द्वारा विंधे गए और गृद्ध हुए बनीयें को राजा की स्त्री ने पायखाने की खाल में डाल दिया और वो कईं दुर्गंध को सहन करते हुए वहाँ रहा ।
सूत्र - ११३
कामासक्त मानव वैश्यायन तापस की तरह गम्य और अगम्य नहीं जानता । जिस तरह कुबेरदत्त शेठ तुरन्त ही बच्चे को जन्म देनेवाली अपनी माता के सुरत सुख से रक्त रहा ।
सूत्र- ११४
कंदर्प से व्याप्त और दोष रूप विष की वेलड़ी समान स्त्रियों के लिए जिसने काम कलह प्रेरित किया है। ऐसे प्रतिबंध के स्वभाव से देखते हुए तुम उसे छोड़ दो ।
सूत्र- ११५
विषयांध होनेवाली स्त्री कुल, वंश, पति, पुत्र, माता, पिता को कद्र न करते हुए दुःख सम सागरमें गिरती है सूत्र ११६
स्त्रियों की नदियों के साथ तुलना करने से स्त्री नीचगामीनी (नदी पक्ष में झुकाव रखनेवाली भूमिमें जानेवाली), अच्छे स्तनवाली ( नदी के लिए सुन्दर पानी धारण करनेवाली), देखने लायक, खूबसूरत और मंद गतिवाली नदियों की तरह मेरु पर्वत जैसे बोझ (पुरुष) को भी भेदती है।
सूत्र- ११७
अति पहचानवाली, अति प्रिय और फिर अति प्रेमवंत ऐसी भी स्त्री के रूप नागिन पर वाकई में कौन भरोसा रखेगा ?
सूत्र- ११८
नष्ट हुई आशावाली (स्त्री) अति भरोसेमंद, अहेसान के लिए तत्पर और गहरे प्रेमवाले लेकिन एक बार अप्रिय करनेवाले पति को जल्द ही मरण की ओर ले जाती है ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (भक्तपरिज्ञा)" आगम सूत्र - हिन्दी अनुवाद"
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