Book Title: Agam 27 Bhaktaparigna Sutra Hindi Anuwad Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar Publisher: Dipratnasagar, DeepratnasagarPage 13
________________ सूत्र आगम सूत्र २७, पयन्नासूत्र-४, 'भक्तपरिज्ञा' सूत्र-९५ जो कोई बड़ा सुख, प्रभुता, जो कुछ भी स्वाभाविक तरीके से सुन्दर है, वो, निरोगीपन, सौभाग्यपन, वो सब अहिंसा का फल समझना चाहिए। सूत्र- ९६ सुंसुमार द्रह के लिए फेंका गया लेकीन चंडालने भी एक दिनमें एक जीव बचाने से उत्पन्न होनेवाली अहिंसा व्रत के गुण से देवता का सानिध्य पाया । सूत्र - ९७,९८ सभी चार प्रकार के असत्य वचन को कोशिश द्वारा त्याग कर, जिस के लिए संयमवंत पुरुष भी भाषा दोष द्वारा (असत्यभाषण द्वारा कर्म से) लिप्त होते हैं । वे चार प्रकार के असत्य-असत् वस्तु को प्रकट करना, जिस तरह आत्मा सर्वगत है, दूसरा अर्थ कहना, जैसे गो शब्द से श्वान । सत् को असत् कहना-जैसे आत्मा नहीं है | निंदा करना । जैसे चोर न हो उसे चोर कहना । और फिर हास्य द्वारा, क्रोध द्वारा, लोभ द्वारा और भय द्वारा वह असत्य न बोलना । लेकिन जीव के हित में और सुन्दर सत्य वचन बोलना चाहिए। सूत्र - ९९ सत्यवादी पुरुष माता की तरह भरोसा रखने के लायक, गुरु की तरह लोगों को पूजने लायक और रिश्तेदार की तरह सबको प्यारा लगता है। सूत्र - १०० जटावंत हो या शिखावंत हो, मुंड हो, वल्कल (पेड़ की छाल के कपड़े पहननेवाला हो या नग्न हो तो भी असत्यवादी लोगों के लिए पाखंड़ी और चंडाल कहलाता है। सूत्र-१०१ एक बार भी बोला हुआ झूठ कईं सत्य वचन को नष्ट करता है, क्योंकि एक असत्य वचन द्वारा वसु राजा नरक में गया । सूत्र - १०२ हे धीर ! अल्प या ज्यादा पराया धन (जैसे कि) दाँत खुतरने के लिए एक शलाका भी, अदन्त (दिए बिना) लेने के लिए मत सोचना। सूत्र-१०३ और फिर जो पुरुष (पराया) द्रव्य हरण करता है वो उस का जीवित भी हर लेता है। क्योंकि वो पुरुष पैसे के लिए जीव का त्याग करता है लेकिन पैसे को नहीं छोड़ता। सूत्र-१०४ इसलिए जीवदया समान परम धर्म को ग्रहण कर के अदत्त न ले, क्योंकि जिनेश्वर भगवान और गणधरों ने उसका निषेध किया है, और लोक के विरुद्ध भी है और अधर्म भी है। सूत्र - १०५, १०६ चोर परलोक में भी नरक एवं तिर्यंच गति में बहुत दुःख पाता है; मनुष्यभवमें भी दीन और दरिद्रता से पीड़ता है । चोरी से निवर्तनेवाले श्रावक के लड़के ने जिस तरह से सुख पाया, कीढ़ी नाम की बुढ़िया के घर में चोर आए । उन चोर के पाँव का अंगूठा बुढ़िया ने मोर के पीछे से बनाया तो उस निशानी राजा ने पहचानकर श्रावक के पुत्र को छोड़कर बाकी सब चोर को मारा । मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(भक्तपरिज्ञा)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद" Page 13Page Navigation
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