Book Title: Agam 27 Bhaktaparigna Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar
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आगम सूत्र २७, पयन्नासूत्र-४, 'भक्तपरिज्ञा'
सूत्रउन तीनों कारण से शुद्ध भाव से तीव्र भक्ति कर । सूत्र - ७१
अकेली जिनभक्ति भी दुर्गति का निवारण करने को समर्थ होती है और सिद्धि पाने तक दुर्लभ ऐसे सुख की परम्परा होती है। सूत्र-७२
विद्या भी भक्तिवान् को सिद्ध और फल देनेवाली होती है तो क्या मोक्षविद्या अभक्तिवंत को सिद्ध होगी? सूत्र - ७३
उन आराधना के नायक वीतराग भगवान की जो मनुष्य भक्ति नहीं करता वो मनुष्य काफी उद्यम कर के डाँगर को ऊखर भूमि में बोता है । सूत्र-७४
आराधक की भक्ति न करने के बावजूद भी आराधना की ईच्छा रखनेवाला मानव बीज के बिना धान्य की और बादल बिना बारीस की ईच्छा रखता है। सूत्र-७५
राजगृह नगर में मणिआर शेठ का जीव जो मेंढ़क हुआ था उस की तरह श्री जिनेश्वर महाराज की भक्ति उत्तम कल में उत्पत्ति और सख की निष्पत्ति कराती है। सूत्र-७६
आराधनापूर्वक, दूसरी किसी ओर चित्त लगाए बिना, विशुद्ध लेश्या से संसार के क्षय को करनेवाले नवकार को मत छोड़ना। सूत्र-७७
यदि मौत के समय अरिहंत को एक भी नमस्कार हो तो वो संसार को नष्ट करने के लिए समर्थ हैं ऐसा जिनेश्वर भगवान ने कहा है। सूत्र - ७८
बूरे कर्म करनेवाला महावत, जिसे चोर कहकर शूली पर चड़ाया था वो भी 'नमो जिणाणम्' कहकर शुभ ध्यान में कमलपत्र जैसे आँखवाला यक्ष हुआ था। सूत्र - ७९
भाव नमस्कार सहित, निरर्थक द्रव्यलिंग को जीवने अनन्ती बार ग्रहण किए और छोड दिए हैं। सूत्र-८०
आराधना समान पताका लेने के लिए नमस्कार हाथरूप होता है, और फिर सद्गति के मार्ग में जाने के लिए वो जीव को अप्रतिहत रथ समान है। सूत्र-८१
अज्ञानी गोवाल भी नवकार की आराधना कर के मर गया और वह चंपानगरी के लिए श्रेष्ठी पुत्र सुदर्शन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सूत्र-८२
जिस तरह अच्छे तरीके से आराधन की हुई विद्या द्वारा पुरुष, पिशाच को वश में करता है, वैसे अच्छी तरह से आराधन किया हुआ ज्ञान मन समान पिशाच को वश में करता है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(भक्तपरिज्ञा)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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