Book Title: Agam 27 Bhaktaparigna Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 10
________________ आगम सूत्र २७, पयन्नासूत्र-४, 'भक्तपरिज्ञा' सूत्रऔर लकड़ी समान हित शिक्षा को तू सून । सूत्र- ५९ संसार की जड-बीज समान मिथ्यात्व का सर्व प्रकार से त्याग कर, सम्यक्त्व के लिए दृढ़ चित्तवाला हो कर नमस्कार के ध्यान के लिए कुशल बन जा । सूत्र-६० जिस तरह लोग अपनी तृष्णा द्वारा मृगतृष्णा को (मृगजल में) पानी मानते हैं, वैसे मिथ्यात्व से मूढ़ मनवाला कुधर्म से सुख की ईच्छा रखता है। सूत्र - ६१ तीव्र मिथ्यात्व जीव को जो महादोष देते हैं, वे दोष अग्नि विष या कृष्ण सर्प भी नहीं पहुँचाते । सूत्र-६२ __ मिथ्यात्व से मूढ़ चित्तवाले साधु प्रति द्वेष रखने समान पाप से तुरुमणि नगरी के दत्तराजा की तरह तीव्र दुःख इस लोक में ही पाते हैं। सूत्र - ६३ सर्व दुःख को नष्ट करनेवाले सम्यक्त्व के लिए तुम प्रमाद मत करना, क्योंकि सम्यक्त्व के सहारे ज्ञान, तप, वीर्य और चारित्र रहे हैं। सूत्र - ६४ जैसे तू पदार्थ पर अनुराग करता है, प्रेम का अनुराग करता है और सद्गुण के अनुराग के लिए रक्त होता है वैसे ही जिनशासन के लिए हमेशा धर्म के अनुराग द्वारा अनुरागी बन । सूत्र-६५ सम्यक्त्व से भ्रष्ट वो सर्व से भ्रष्ट जानना चाहिए, लेकिन चारित्र से भ्रष्ट होनेवाला सबसे भ्रष्ट नहीं होता क्योंकि सम्यक्त्व पाए हुए जीव को संसार के लिए ज्यादा परिभ्रमण नहीं होता। सूत्र - ६६ दर्शन द्वारा भ्रष्ट होनेवाले को भ्रष्ट मानना चाहिए, क्योंकि सम्यक्त्व से गिरे हए को मोक्ष नहीं मिलता । चारित्र रहित जीव मुक्ति पाता है, लेकिन समकित रहित जीव मोक्ष नहीं पाता। सूत्र - ६७, ६८ शुद्ध समकित होते हुए अविरति जीव भी तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन करता है । जैसे आगामी काल में कल्याण होनेवाला है जिनका वैसे हरिवंश के प्रभु यानि कृष्ण और श्रेणिक आदि राजा ने तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन किया है वैसे निर्मल सम्यक्त्ववाले जीव कल्याण की परम्परा पाते हैं । (क्योंकि) सम्यग्दर्शन समान रत्न सुर और असुर लोक के लिए अनमोल है। सूत्र - ६९ तीन लोक की प्रभुता पाकर काल से जीव मरता है । लेकिन सम्यक्त्व पाने के बाद जीव अक्षय सुखवाला मोक्ष पाता है। सूत्र-७० अरिहंत सिद्ध, चैत्य (जिन प्रतिमा) प्रवचन-सिद्धांत, आचार्य और सर्व साधु के लिए मन, वचन और काया मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(भक्तपरिज्ञा)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद” Page 10

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