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आगम सूत्र २७, पयन्नासूत्र-४, 'भक्तपरिज्ञा'
सूत्रतुम्हारी अनुमति से भक्त परिज्ञा अनशन मैं अंगीकार करता हूँ । सूत्र-३६
आराधना द्वारा उस का (अनशन लेनेवाले का) और खुद का कल्याण हो ऐसे दिव्य निमित्त जान कर, आचार्य अनशन दिलाए; नहीं तो (निमित्त देखे बिना अनशन लिया जाए तो) दोष लगता है। सूत्र-३७
उस के बाद वो गुरु उत्कृष्ट सर्व द्रव्य अपने शिष्य को दिखाकर तीन प्रकार के आहार के जावज्जीव तक पच्चक्खाण करवाए। सूत्र-३८
(उत्कृष्ट द्रव्य को) देखकर भवसागर के तट पर पहुँचे हुए मुझे इस के द्वारा क्या काम है ऐसे कोई जीव चिन्तवन करे; कोई जीव द्रव्य की ईच्छा हो वो भुगत कर संवेग पाने के बावजूद भी उस मुताबिक चिन्तवन करे । क्या मैंने भुगत कर त्याग नहीं किया; सूत्र - ३९
जो पवित्र पदार्थ हो वो अन्त में तो अशुचि है ऐसे ज्ञान में तत्पर होकर शुभ ध्यान करे; जो विषाद पाए उसे ऐसी चोयणा (प्रेरणा) देनी चाहिए। सूत्र - ४०
___ उदरमल की शुद्धि के लिए समाधिपान (शर्करा आदि का पानी) उसे अच्छा हो तो वो मधुर पानी भी उसे पीलाना चाहिए और थोड़ा-थोड़ा विरेचन करवाना चाहिए। सूत्र - ४१, ४२
इलायची, दालचीनी, नागकेसर और तमालपात्र, शक्करवाला दूध उबाल कर, ठंड़ा कर के पिलाए उसे समाधि पानी कहते हैं । (उसे पीने से ताप उपशमन होता है ।)
उसके बाद फोफलादिक द्रव्य से मधुर औषध से विरेचन करवाना चाहिए । क्योंकि उससे उदर का अग्नि बूझने से यह (अनशन को करनेवाला) सुख से समाधि प्राप्त करता है। सूत्र-४३
अनशन करनेवाला तपस्वी, जावज्जीव तक तीन प्रकार के आहार (अशन, खादिम और स्वादिम) को यहाँ वोसिराता है, इस तरह से निर्यामणा करवानेवाले आचार्य संघ को निवेदन करे । सूत्र-४४
(तपस्वी) उसको आराधना सम्बन्धी सर्व बात निरुपसर्ग रूप से प्रवर्ते उस के लिए सर्व संघ को दो सौ छप्पन श्वासोश्वास का कायोत्सर्ग करना चाहिए। सूत्र-४५
उस के बाद उस आचार्य संघ के समुदाय में चैत्यवन्दन विधि द्वारा उस क्षपक (तपस्वी) को चतुर्विध आहार का पच्चक्खाण करवाए। सूत्र - ४६
या फिर समाधि के लिए तीन प्रकार के आहार को आगार सहित पच्चक्खाण कराए । उस के बाद पानी भी अवसर देखकर त्याग करावें ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् “(भक्तपरिज्ञा)” आगम सूत्र-हिन्दी अनुवाद”
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