Book Title: Agam 27 Bhaktaparigna Sutra Hindi Anuwad
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Dipratnasagar, Deepratnasagar

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Page 5
________________ आगम सूत्र २७, पयन्नासूत्र-४, ‘भक्तपरिज्ञा’ सूत्र - १ महाअतिशयवंत और महाप्रभाववाले मुनि महावीरस्वामी की वंदना कर के स्वयं को और पर को स्मरण करने के हेतु से मैं भक्त परिज्ञा कहता हूँ । सूत्र - २ संसार रूपी गहन वन में घूमते हुए पीड़ित जीव जिस के सहारे मोक्ष सुख पाते हैं उस कल्पवृक्ष के उद्यान को देनेवाला जैनशासन जयवंत विद्यमान है । समान सुख सूत्र - ३ सूत्र दुर्लभ मनुष्यत्व और जिनेश्वर भगवान का वचन पा कर सत्पुरुष ने शाश्वत सुख के एक रसीक और ज्ञान को वशवर्ती होना चाहिए । सूत्र - ४ जो सुख आज होना है वो कल याद करने योग्य होनेवाला है, उस के लिए पंड़ित पुरुष उपसर्ग रहित मोक्ष सुख की वांछा करता है । के [२७] भक्तपरिज्ञा पयन्नासूत्र-४- हिन्दी अनुवाद सूत्र - ५ पंड़ित पुरुष मानव और देवताओं का जो सुख है उसे परमार्थ से दुःख ही कहते हैं, क्योंकि वो परिणाम से दारुण और अशाश्वत है । इसलिए उस सुख से क्या लाभ ? (यानि वो सुख का कोई काम नहीं है) । सूत्र सूत्र सूत्र - ६ जिनवचन में निर्मल बुद्धिवाले मानव ने शाश्वत सुख के साधन ऐसे जो जिनेन्द्र की आज्ञा का आराधन है, उन आज्ञा पालने के लिए उद्यम करना चाहिए । - ७ - ८ जिनेश्वर ने कहा हुआ ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप उन का जो आराधन है वही आज्ञा का आराधन कहा है दिक्षा पालन में तत्पर (अप्रमत्त) आत्मा भी मरण के अवसर पर सूत्र में कहे अनुसार आराधना करते हुए पूरी तरह आराधकपन पाता है । सूत्र - ९ मरण समान धर्म नहीं ऐसे धैर्यवंतने ( वीतरागने) उस उद्यमवंत का मरण भक्तपरिज्ञा मरण, इगिनी मरण और पादपोपगम मरण ऐसे तीन प्रकार से कहा है । सूत्र - १० भक्त परिज्ञा मरण दो प्रकार का है - सविचार और अविचार | संलेखना द्वारा दुर्बल शरीरवाले उद्यमवंत साधु का सविचार मरण होता है । सूत्र - ११ भक्त परिज्ञा मरण और पराक्रम रहित साधु को संलेखना किए बिना जो मरण होता है वो अविचार भक्त मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (भक्तपरिज्ञा)” आगम सूत्र - हिन्दी अनुवाद " Page 5

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