Book Title: Agam 08 Ang 08 Antkrut Dashang Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रथम वर्ग
पहले वर्ग के पहले अध्ययन में द्वारकानगरी का वर्णन है । इस नगरी को श्री कृष्ण महाराजने तेले की तपश्चर्या करके कुबेर देवता द्वारा बसवाई थी । द्वारका का नगरकोट सोनेका बना हुवा था तथा उस पर पांच प्रकार के रत्नों से जड़े हुए कंगूरे थे । द्वारका नगर की लम्बाई बारह योजन की, और चौडाई नौ योजन की थी । शहरके अन्दर उत्तुंग भवनों व कतारबंध बाजारों व बाहर बाग बगीचा सरोवर आदि से उसकी अपूर्व शोभा थी । उस शहर में बडे २ राजा; महाराजा योद्धा, साहसिक व माण्डलिक आदि रहते थे । इसके अतिरिक्त बडे २ धनपति सेठ साहुकार भी वहां रहते थे। उस समय वहां विशाल राज्य वैभव युक्त अन्धक वृष्णि राजा और उनकी धारणी नामकी रानी थी। उनके गौतम नामक कुमार थे, जिनका तरुणवय के प्रवेशमें आठ कन्याओं के साथ विवाह हुआ था । वे तरुणवय के मध्य में भोगयुक्त जीवन बिता रहे थे। उसी समय श्री अरिष्टनेमि भगवान पधारे और उनका वैराग्यमय उपदेश सुनकर गौतम कुमार मातापिताकी आज्ञा लेकर दीक्षित हुए। दीक्षा लेने पर गौतम अनगारने सामायिक से ले कर ग्यारह अंगोंका अध्ययन किया, और वे उपवास, बेला, तेल आदि विविध तपश्चर्या द्वारा कर्म निर्जरा करते हुए विचरने लगे । उन गौतम अनगारने 'मासिक भिक्षु प्रतिमा नामक तप' अंगीकार किया, अनन्तर बारह पडिमा तथा गुणरत्न तप मरके आत्म विशुद्धि के साथ संयमाराधन करते हुए अन्तिम समय में एक मासका संथारा करके सर्व कर्म से रहित हो केवलज्ञान केवल - दर्शनयुक्त मोक्षस्थान को प्राप्त हुए ।
इसी प्रकार समुद्रकुमार आदि नव कुमारो ने भी गौतमकुमारके समान ही राज्यवैभव युक्त संसार अवस्थाका त्याग करके दीक्षित बने और उन्हीं के समान संयम तप आराधन करके अन्तिम समय एक मासके संथारेमें केवलज्ञान केवलदर्शनको प्राप्त कर मोक्ष के अधिकारी बने ।
શ્રી અન્તકૃત દશાંગ સૂત્ર