Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 10
________________ स्वाध्याय के प्रमुख नियम (१) (३) इस सूत्र के मूल पाठ का स्वाध्याय दिन और रात्री के प्रथम प्रहर तथा चौथे प्रहर में किया जाता है। प्रात: ऊषा-काल, सन्ध्याकाल, मध्याह्न और मध्य रात्री में दो-दो घडी (४८ मिनिट) स्वाध्याय नहीं करना चाहिए, सूर्योदय से पहले २४ मिनिट और सूर्योदय के बाद २४ मिनिट, इस प्रकार दो घड़ी सभी जगह समझना चाहिए। मासिक धर्मवाली स्त्रियों को स्वाध्याय नहीं करना चाहिए, इसी प्रकार उनके सामने बैठकर भी स्वाध्याय नहीं करना चाहिए, जहाँ ये स्त्रियाँ न हों उस स्थान या कक्ष में बैठकर स्वाध्याय किया जा सकता है। नीचे लिखे हुए ३२ अस्वाध्याय-प्रसंगो में वाँचना नहीं चाहिए(१) आकाश सम्बन्धी १० अस्वाध्यायकाल (१) उल्कापात-बड़ा तारा टूटे उस समय १ प्रहर (तीन घण्टे) तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । (२) दिग्दाह—किसी दिशा में अधिक लाल रंग हो अथवा किसी दिशा में आग लगी हो तो स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । गर्जारव-बादलों की भयंकर गडगडाहट की आवाज सुनाई देती हो, बिजली अधिक होती हो तो २ प्रहर (छ घण्टे) तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। निर्घात–आकाश में कोई व्यन्तरादि देवकृत घोर गर्जना हुई हो अथवा बादलों के साथ बिजली के कडाके की आवाज हो तब आठ प्रहर तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । विद्युत—बिजली चमकने पर एक प्रहर तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए यूपक-शुक्ल पक्ष की प्रथमा, द्वितीया और तृतीया के दिनो में सन्ध्या की प्रभा और चन्द्रप्रभा का मिलान हो तो उसे यूपक कहा जाता है। इस प्रकार यूपक हो उस समय रात्री में प्रथमा १ प्रहर स्वाध्याय नहीं करना चाहिए (८) यक्षादीप्त—यदि किसी दिशा में बिजली चमकने जैसा प्रकाश हो तो उसे यक्षादीप्त कहते हैं, उस समय स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । धूमिका कृष्ण-कार्तिक से माघ मास तक धुंए के रंग की तरह सूक्ष्म जल के जैसी धूमस (कोहरा) पड़ता है उसे धूमिका कृष्ण कहा जाता है इस प्रकार की धूमस हो उस समय स्वाध्याय नहीं करना चाहिए ।

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