Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 16
________________ फफफफफफफफफफफ 卐 फ (२) व्याख्या + प्रज्ञ + आप्ति - व्याख्या करने की प्रज्ञा (बुद्धिकुशलता) से प्राप्त होने वाला अथवा 5 व्याख्या करने में प्रज्ञ (पटु) भगवान से गणधर को जिस ग्रन्थ ज्ञान की प्राप्ति हो, वह श्रुतविशेष है। (३) व्याख्या + प्रज्ञा + आप्ति-व्याख्या करने की प्रज्ञापटुता से ग्रहण किया जाने वाला अथवा व्याख्या करने में प्रज्ञ भगवान से कुछ ग्रहण करना व्याख्याप्रज्ञप्ति है। 卐 卐 इसी प्रकार विवाहप्रज्ञप्ति और विबाधप्रज्ञप्ति इन दोनों संस्कृत रूपान्तरों का अर्थ भी निम्नोक्त प्रकार से मिलता है (१) वि + वाह + प्रज्ञप्ति - जिसमें विविध या विशिष्ट प्रवाहों-अर्थप्रवाहों का प्रज्ञापन प्ररूपण किया गया हो, उस श्रुत का नाम विवाहप्रज्ञप्ति है। (२) वि + बाध + प्रज्ञप्ति - जिस ग्रन्थ में बाधारहित -प्रमाण से अबाधित तत्त्वों का प्ररूपण हो, वह श्रुतविशेष विबाधप्रज्ञप्ति है। विषय-वस्तु की विविधता व्याख्याप्रज्ञहि सूत्र में विषयों की विविधता है। ज्ञान - रत्नाकर शब्द से यदि किसी शास्त्र को सम्बोधित किया जा सकता है तो यही एक महान् शास्त्रराज है। इसमें जैनदर्शन के ही नहीं, दार्शनिक जगत् के प्रायः सभी मूलभूत तत्त्वों का विवेचन तो है ही, इसके अतिरिक्त विश्वविद्या की कोई भी ऐसी विधा नहीं है, जिसकी प्रस्तुत शास्त्र में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चर्चा न की गई हो। प्राचीन और वर्तमान ज्ञान विज्ञान की अनेक शाखाओं का रहस्योद्घाटन तथा बीज रूप में उनका संकेत इस शास्त्र में उपलब्ध है। जैसे कहा जाता है - 'वेद' समस्त ज्ञान-विज्ञान का मूल है। उसी प्रकार भगवती सूत्र भी समस्त तत्व विद्या का आधार ग्रन्थ है। इसके विषय में अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने यह माना है कि इस शास्त्र में, जीवन विज्ञान, पदार्थ विज्ञान, परमाणु विज्ञान आदि सैकड़ों विषयों का पहली बार निरूपण हुआ है, जो उस समय के अन्य शास्त्रों में उपलब्ध नहीं हैं। इसमें भूगोल, खगोल, इहलोक - परलोक, स्वर्ग नरक, प्राणिशास्त्र, रसायनशास्त्र, गर्भशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, भूगर्भशास्त्र, गणितशास्त्र, ज्योतिष, इतिहास, मनोविज्ञान, अध्यात्मविज्ञान आदि कोई भी विषय अछूता नहीं रहा है। 卐 卐 5 सकता है 卐 इसमें प्रतिपादित विषयों के समस्त सूत्रों का वर्गीकरण मुख्यतया निम्नोक्त १० खण्डों में किया जा (१) आचारखण्ड - साध्वाचार के नियम, आहार, विहार एवं पाँच समिति, तीन गुप्ति, क्रिया, कर्म, 5 पंचमहाव्रत आदि से सम्बन्धित विवेक सूत्र, सुसाधु, असाधु, सुसंयत, असंयत, संयतासंयत आदि के आचार के विषय में निरूपण आदि । (२) द्रव्यखण्ड - षड्द्रव्यों का वर्णन-पदार्थवाद, परमाणुवाद, मन, इन्द्रियाँ, बुद्धि, गति, शरीर आदि का निरूपण । 卐 卐 5 विकसित एवं शुद्ध रूप, जीव, अजीव पुण्य-पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, कर्मवाद, सम्यक्त्व, 卐 मिथ्यात्व, क्रिया, कर्मबन्ध एवं कर्म से विमुक्त होने के उपाय आदि । 卐 (३) सिद्धान्तखण्ड - आत्मा, परमात्मा (सिद्ध-बुद्ध - मुक्त), केवलज्ञान आदि ज्ञान, आत्मा का (8) Jain Education International 2 95 95 5 5 5 5 5 5 5 5 595959595955555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 55595555 2 திமிதித்தபூமிமிததமி***********************5 For Private & Personal Use Only 卐 www.jainelibrary.org

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