________________
परमात्मतत्व [ २ ]
परमात्मा, परमपुरुष, पुरुषविशेष, पुरुषोत्तम, ईश्वर, ब्रह्मये सब प्रायः पर्यायवाची शब्द हैं और जीव, आत्मा या चेतन जैसे शब्दोंसे प्रतिपादित तत्त्वके स्वरूपकी अपेक्षा कोई उच्च या श्रेष्ठ और भव्य ऐसे अनुपम स्वरूपका ख्याल इनसे आता है । जड़ जगत्की अपेक्षा चेतन जगत्की भिन्नताका विचार जैसे - जैसे स्पष्ट होता गया वैसे-वैसे चेतन जगत् में भी सामान्य चेतनकी अपेक्षा उच्च प्रकारका परम चेतनतत्त्व है अथवा होना चाहिये ऐसा विचार जोर पकड़ता गया ।
परमात्मा, परमेश्वर, परमब्रह्म या परमदेव शब्द से पहचाने और समझे जानेवाले तथा पूजे और ध्यान किये जानेवाले परमतत्त्वकी आज जो जीवित कल्पनाएँ और मान्यताएँ हमारे समक्ष हैं वहाँतक पहुँचनेकी विचारयात्रा करनेमें मानव-मानसको हज़ारों वर्ष लगे हैं । इस लम्बी और जटिल यात्रामें उसने अनेक पड़ाव किये हैं और अनेक स्थानोंपर विश्राम लिया है । यह सही है कि इस समय यात्राका ब्योरेसे लिखा हुआ इतिहास उपलब्ध नहीं है, किन्तु आज हमारे पास जितना साहित्य है उसमें भी इस विचारयात्राका क्रमविकास जाननेकी सामग्री प्रचुर मात्रा में बिखरी पड़ी है और वह स्पष्ट भी है । इसके अतिरिक्त इस विचारयात्रा के किसी-किसी पहलुका उल्लेख साहित्य में यदि उपलब्ध नहीं होता तो वह जीवित लोकधर्ममेंसे अथवा विश्वके किसी अपरिचित या अल्पपरिचित कोनेमें सुरक्षित धार्मिक मान्यता एवं आचारमेंसे भी प्राप्त हो सकता है ।