Book Title: Adhyatma Vicharna
Author(s): Sukhlal Sanghvi, Shantilal Manilal Shastracharya
Publisher: Gujarat Vidyasabha

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Page 148
________________ अनुक्रमणिका जैन-बौद्ध परंपराओं में देवोंका स्थान । तमस् १६, ३५ ५६-७-में परमारमा या तारापोरवाला है पुरुषोत्तमका अर्थ ५७ तीर्थकर ६३ ज्ञानमार्ग १२७, १२६-३१; तृष्णा ६७-८ भक्तिमार्ग और कर्ममार्गकी तेरापंथ ७६ चर्चा १२७;-श्रादिकी दार्श तैत्तिरीय संहिता ७ (पा० टि०) निक भूमिका का विस्तृत त्रिगुणात्मक प्रकृति ३५ निरूपण १२७-३२ ज्ञयावरण दर्शनमोह ६७ १२७ तत्त्वज्ञान | दि कन्सेप्शन ऑफ़ बुद्धिस्ट तत्त्वद्वैत १७, २१;-का निरूपण निर्वाण ७५ दिगम्बर ७६ १७-२१-वाद ३४,-वादी दि ग्रेट एपिक ऑफ इण्डिया तत्त्वसंग्रह १२४ (पा. टि.) १२ पा० टि० तत्त्वसंग्रहपंजिका १२४ दि सिक्रेट ऑफ दि वेदाज़ ८ तत्त्वाद्वैत १७-१६, २१;-का, दीघनिकाय ११ (पा० टि०), ५९ निरूपण १८-२१;-मेंसे (पा० टि०), ६५ (पा० टि०) तत्त्वद्वैत भूमिकाका विकास २३; दुःख ६२-३;-हेय ६५ - वाद ३२;-वादी २१;- देव ५१, ५२, ५५-६;- सृष्टिके सांख्यकी तीन भूमिकाएँ ३२ कर्ता, नीति नियामक, साक्षी तत्त्वार्थसूत्र १७ (पा. टि.), १०५, एवं आत्मासे अभिन्न स्वरूपमें १०६-१३, ११६; भाष्य १२७ ५२, ५३ तत्त्वोपप्लवसिंह १३ (पा. टि.) देव ऋण ७ (पा० टि) तन्मात्रा ३५ देहविलय ४० तप १०२, १०५-६;-बौद्ध परं- देहात्मवाद १२, १३ (पा० टि०) परामे 'धुतांग' रूपसे १०६; दैवी सम्पत् १०४ -योगसम्मत नियम १०५, द्रव्य ४७,;-बौद्धसम्मत सन्तान और -संवरका अंग १११ जैनसम्मत अर्थकी तुलना ४७

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