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मिथ्यादर्शन ११० मिलिन्द पञ्हो ८७ (पा. टि. ) मुक्ति ६७
मुदिता भावना १११
मूढ़ १०८, ११६
मेक्डूगल ७ (पा. टि. ) मेक्समूलर ६ ( पाटि . ) मैत्री १११, ११७–९
मोक्ष
अध्यात्म विचारणा
में मतभेदका कारण ८०;
-- शंका, रामानुज वल्लभमें ७४ - सांख्य योग में ७० - ३ मोह ६६
यज्ञ १०२
यम १०३ -४; - अहिंसा, सत्य श्रादि महाव्रत १०३-४;—– आध्यात्मिक साधना की पूर्व - भूमिका १०४, १०५-६;प्रथम योगांग १०४ यशोविजयजी ११३, १२६ ( पा. टि. ) याज्ञवल्क्य १२ योग ६०, ६७,७०, १०१, १०३; -यम आदि आठ अंग १०३; - चित्तवृत्तिनिरोध १०६;जैनसम्सत १० ६ ; - - निरोध जैन में ११२ -- की जैनसम्मत 'संवर' के साथ तुलना ११०; — की बौद्धसम्मत 'समाधि' के साथ तुलना ११२; - सिद्ध करने के अभ्यास, वैराग्य श्रादि उपायोंकी जैनसम्मत गुप्ति, समिति आदिके साथ तुलना १११ ; - संप्रज्ञात और असं प्रज्ञात ११०-२
२४, २७, ३२, ३४, ७०, ६५, १३१ - की कल्पनाका उद्भव २४ -७; - पुरुषार्थ १७, २४, ३३; -- मार्ग या हानोपाय नामक तीसरा सत्य १०२; - या विदेहमुक्ति के पश्चात् जीवामाके रहनेका स्थान ८३-८८; - विषयक सर्वसामान्य मान्यताका गीता एवं महायान में विकास १३१; - सांख्य मत में २८; - के स्वरूप के बारेमें दार्शनिक मान्यताएँ ६२८२; - जैनमें ८० - २ ; - के स्वरूपके बारेमें जैन परंपराओंमें मतभेदका प्रभाव ७६ ;न्याय-वैशेषिकमें ६६-७०; सांख्ययोग के साथ तुलना ७० - ३, -- बौद्ध परंपरामें ७४
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८; -- के विषय में बौद्ध शाखा - | योगदर्शन ७०, ३३ (पा. टि.), ६४