Book Title: Adhyatma Vicharna
Author(s): Sukhlal Sanghvi, Shantilal Manilal Shastracharya
Publisher: Gujarat Vidyasabha

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Page 141
________________ १३२ अध्यात्मविचारणा लोकसंग्राही कर्ममार्गका ही निरूपण करते हैं। इससे एक बात स्पष्ट है कि प्राचीन कालमें वैयक्तिक मोक्षके लिए साधना करनेवाले साधकोंके आसपासके जिज्ञासुमण्डलमें मुख्यतया जो आत्मश्रेयलक्षी दृष्टि थी वह धीरे-धीरे ऐतिहासिक परिबलोंके कारणं बदली तथा उसका भिन्न-भिन्न परम्पराओंमें भिन्न-भिन्न ढंगसे विकास हुआ । यह विकास गीतामें एक ढंगसे हुआ है तो महायानमें दूसरे ढंगसे हुआ है। यहाँतक कि इस लोकसंग्राही कर्ममार्गकी दुन्दुभि अद्वैतवादी विवेकानन्द, परमवैष्णव गाँधीजी तथा योगी श्रीअरविन्दने भी बजाई और चारों ओर इसकी प्रतिष्ठा स्थापित हुई। मुच्यमानेषु सर्वेषु ये ते प्रामोद्यसागराः। तैरेव ननु पर्याप्तं मोक्षेणारसि केन किम् ॥ ८. १०८ -बोधिचर्यावतार न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्ग नाऽपुनर्भवम् । कामये दुःखतप्तानां प्राणिनामातिनाशनम् ॥

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