Book Title: Adhyatma Darshan
Author(s): Anandghan, Nemichandmuni
Publisher: Vishva Vatsalya Prakashan Samiti

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Page 4
________________ ही नही रह गए, उसे जीवन में उतारने का भी प्रयल करते रहे। दमी का परिणाम है, कि आपको मागारिक भागो एव भोगजन्य साधनों में विरक्ति हो गई। आपने अपनी भावना को अपनी ममतानु मा एव ज्येष्ठ भाई तथा परिजनो के मामने रखी। माता एव वटे भाई ने बापमो विभिन्न प्रकार से ममझाया, परिजनों ने भी आपको गृहस्थजीवन में गेफ रखने के लिए मब तरह मे प्रयत्न किए । परन्तु वे मफन नहीं हो सके। जिनके जीवन में मच्चा वैराग्य उद्बुद्ध हो जाता है, आत्मा मे त्याग की ज्योति प्रचलित हो उठती है, उसे कोई भी शक्ति ममार मे रोक कर नहीं रख मफती। सौभाग्य से आपको योग्यतम गुरु मिन गए। स्थानफ्यासी ममाज में आचार्यप्रवर श्रीहुकमीचन्दजी महाराज के पप्ठम पट्टधर युग-पुरुष, युग-द्रप्टा, क्रान्तिकारी विचारक, ज्योतिधर आचार्य श्रीजवाहरलालजी महाराज के सुयोग्य उत्तराधिकारी सरलस्वभावी, पण्डितप्रवर तत्कालीन युवाचार्य गणेशीलालजी महाराज के सानिध्य मे दि० म० १६६६ माघ शुक्मा एकादशी के दिन जावद शहर मे वोराजी की बगीची में मापने भागवती जैनदीक्षा स्वीकार की। दीक्षा के १५ दिन पहले अजमेरनिवासी एका ज्योतिषी ने इस दिन दीक्षा का विघ्नकारक बताया था, परन्तु दीक्षार्थी मगनलालजी ने इसकी परवाह न करके उसी दिन दीक्षा ग्रहण की। चबूतरे के फटड़े पर लगी शिनाएं टूट कर गिर पड़ी, किन्तु शासनदेव की कृपा से किमी के जरा भी चोट न आई । यह अद्भुत चमत्कार घा। आपने पूज्य गुरदेव की सेवा में में रह कर आगमो का अध्ययन किया; और यहनिश सन्तो की सेवा-श्रपा मे सलग्न रहे। अस्वस्थ माधु की परिचर्या करने का आपको अच्छा अनुभव है । आपको नाडी का ज्ञान बहुत अच्छा है। इसलिए रोगो का निदान करने और उसके अनुरूप यायुर्वेदिक औषध बताने मे आप बहुत निपुण हैं। भीनासर (बीकानेर) मे जब ज्योतिर्धर आचार्यप्रवर श्रीजवाहरलालजी महाराज अस्वस्थ थे. तव आपने अस्वस्थ-अवस्था से ले कर मन्तिम सास तक बड़ी लगन, श्रद्धा एव भक्ति से सेवा को। उनके अन्तिम समय से कुछ घंटे पहले उनकी वाणी वद हो गई थी, तब आप उन्हे दवा दे कर होश मे लाए। उन्होंने आपके द्वारा प्रेरणा करने पर सयारा ग्रहण किया, जो ५ घटे तक का आया। रुग्ण, ग्लान, वृद्ध एवं बाल साधुओ की सेवा-वयावृत्य करने में आप सिद्धहस्त हैं और सेवा के

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