Book Title: Acharanga Stram Part 02 Author(s): Shilankacharya Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥२२४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवो) नो विजय थाय छे. अर्थात् जे साधु रागद्वेष, तथा इन्द्रियोनी रमणातामां रागी न थाय. तेणे लोक जीत्यो कहेवाय; ते आ अध्ययनमां बतान्युं छे. टीकाकार कहे छे केः जेतुं हुं कहुं हुं, तेज प्रमाणे नियुक्तिकारे पण अध्ययननो अर्थाधिकार शस्त्रपरिज्ञामां पूर्वे कहेलो छे, ते सूत्र आहे. "लोओ जह बज्झइ जह य तं विजाहियव्वं " आ पदवडे सूचव्युं छे के, “लोक ( संसारी-जीवो ) जेम बंधाय छे, तेम साधुए न बंधातां ते बधानां कारणने छोडवां जो इए" तेथी पूर्वे पहेला अध्ययनमां बंध बताव्यो; तेम आ वीजा अध्ययनमां बंधने छोडावानुं सूचन्युः एटले शस्त्रपरिज्ञामां बंध, अने लोकविजयमां बंधथी छुटवानुं बतान्युं छे ते संबंध छे. तेना चार अनुयोगद्वार छे. तेमां सूत्र अने अर्थनुं कहेनुं, ते अनुयोग छे, तेमां चार द्वार ( उपायो, व्याख्यांग ) कहेवां ते उपक्रम, निक्षेप, अनुगम, नय छे. उपक्रम वे प्रकारे छे. शास्त्र संबंधी, शास्त्रीय अने लोक संबंधी ते लौकिक छे. निक्षेपण कारना छे. ओघ, नाम अने सूत्रालापक निष्पन्ननिक्षेप एम त्रण भेद छे, अनुगमसूत्र, अने निर्युक्ति एम वे प्रकारे छे, नयोनैगम विगेरे छे. शास्त्रीय उपक्रम, आ उपक्रममा अर्थ अधिकार वे प्रकारे छे. अध्ययन अने उद्देशानो अर्थ अधिकार छे, तेमां अध्ययननो अर्थ अधिकारशस्त्र For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥२२४॥Page Navigation
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