________________
३
Į
इस पुस्तक में जैन दृष्टिसे भक्ष्याभक्ष्यका विवेक अच्छी तरहसें समजाया है । जैन दृष्टिका भक्ष्याभक्ष्य विवेकका मुख्य तत्त्व - अहिसा, संयम और तपः यह तिन है । इस हेतुसे - कोइ चीजका अभक्ष्य प अहिंसा दृष्टि है । यह दृष्टि मुख्य है । तथा कई वस्तुओं का अभक्ष्यना संयम और तप त्यागकी दृष्टिसं भी है। गर्भितमें मार्गानुसारी दृष्टिमें आरोग्य, तथा मानसिक और आध्यात्मिक विकास की दृष्टि भी आ जाती है ।
हमको दुःखसे कबुल करना पडता है कि इस ग्रन्थ का भाषान्तर की भाषा संतोषकारक नहीं है । हिंदी भाषा सौन्दर्य की दृष्टि से हमारा भाषान्तर संपूर्ण रीतिसँ अपूर्ण और असंतोषकारक है । यह त्रुटि हमारा ख्यालमें बराबर है । तथाप्रकार के भाषान्तरकार के अभाव में जो साधन मिला, उनका उपयोग कर के हमने यह पुस्तक छिपवाया है । आशा है किइससें कुच्छ लाभ तो अवश्य होगा । भाषा कैसी भी हो, तथापि मतलब समजकर इस माफिक जो कोइ वर्तन करेगा सो अवश्य कुच्छ ने कुच्छ आत्मिक और पारमार्थिक लाभ पावेगा । तथापि बाळजीवो का आकर्षण के लिये भाषा सौन्दर्य अवश्य होना ही चाहिये, और ज्ञानाचार की दृष्टिसें भाषा शुद्धि भी अवश्य होनी चाहिये । परंतु भाषा शुद्धि और सौन्दर्य की राह देखकर कार्य मुल्तवी रखने से आत्मार्थी जीवों को लाभ से वंचित रहने देना उत्तम न समजकर हमने यथाशक्ति भाषा शुद्धि और भाषा सौन्दर्य में संतोष मानकर इस
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org