Book Title: Abhakshya Anantkay Vichar
Author(s): Pranlal Mangalji
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 3
________________ प्रस्तावना जगत् में जैनधर्म का दया, संयम और तप रूप सर्व प्रकार का आचार सब आचार में श्रेष्ठ है । व्रतधारि श्रावक बंधुओ बाइस अभक्ष्य और बत्तीश अनंतकाय का त्याग रखते है । उनको और जो व्रतधारी नहीं भी होगा उन सब को जैन दृष्टि से भक्ष्याभक्ष्य की माहिती के लिये लेखकने यह सुंदर पुस्तक लिखा है । प्राणलालभाई पीच्छे से आईती दीक्षा लेकर, पुण्यविजयजी नामसें अपना जन्म सफळ कर आज वर्षोंसे स्वर्गवासी हुए है । किंतु उनका यह पुस्तक खूब उपकारक हो रहा है । यह पुस्तक गुजराती भाषा में लिखा गया है । जिसकी आजतक छ आवृत्ति हमारी संस्था तर्फ से छप चुकी है । इस पुस्तक की उपयोगीता जगजाहिर है । क्या खाना ? क्या न खाना ? इत्यादि बातों की आवश्यकता सबको ही रहती है, और क्या खाने में क्या दोष है ? यह भी जानना आवश्यक होता है । इससे यह पुस्तक की आवश्यकता प्रत्येक जैन गृहमें रहती है । इस अत्यन्त उपयोगी ग्रंथ की आवश्यकता सब जैन भाइयों और बहिनों के लिये एक सरखी होने से गुजराती भाषा और लिपि को न समजने वाले साधार्मिक भाइयों के लाभ के लिये हमने हिंदी भाषान्तर करवा कर यह पुस्तक छिपवाया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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