Book Title: Aagam Manjusha 41B Mulsuttam Mool 02 B PindaNijjutti Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 5
________________ ****St 1 इंदियाण उद्देहिगादिजं वा वए वेज्जो ॥ ८ ॥ चउरिंदियाण मच्छियपरिहारो चेव आसमक्खिया चैव पंचेंदियपिंडंमि उ अश्ववहारी उ नेरइया ॥ ९ ॥ चम्मद्विदंतनहरोमसिंगअविलाइ गणगोमुत्ते। खीरदधिमाइयाण व पंचिदियतिरियपरिभोगो ॥ ५० ॥ सम्चिने पञ्चावण पंथुवएसे य भिक्खदाणाई सीसट्टिग अच्चिते मीसद्विसरक्स पहपुच्छा ॥ १ ॥ खमगाइ कालकाइए पुच्छि देवयं कंचि पंथे सुभासुभे वा पुच्छेई (च्छाए) दिन उवओोगो ॥२॥ अह मीसओ य पिंडो एएसिं चिय नवह पिंडाणं दुगसंजोगाईओ नायशो जाव चरमोति ॥ ३ ॥ सोवीरगोरसासववेसण भेसजनेहसागफले। पोग्गललोणगुलोयण णेगा पिंडा उ संजोगे ॥ ४॥ तिन्नि उ पएससमया ठाणडिइउ दबिए तयाएसा चउपंचमपिंडाणं जत्थ जया तप्परूवणया ॥ ५ ॥ मुत्तदविएस जुजइ जइ अन्नोन्नाणुवेहओ पिंडो मुत्तिविमुत्तेसुवि सो जुज्जइ नणु संखबाहुला ॥ ६ ॥ जह तिपएसो खंधो तिमुबि पएसेस जो स(सोज) मोगाढो । अविभागिण संबद्धो कहन्नु नेवं तदाधारो ? ॥ ७ ॥ अहवा चउन्ह नियमा जोगविभागेण जुज्जए पिंडो दोसु जहियं तु पिण्डो वणिजड़ कीरए बावि ॥ ८ ॥ दुविहो उ भावपिण्डो पत्थओ चैव अप्पसत्यो य एएसि दोहंपिय पत्तेय परूवणं वोच्छं ॥९॥ एगविहाइदसविहो पसत्थओ चैव अप्पसत्थो य संजम विजाचरणे नाणादितिगं च तिविहो उ ॥ ६० ॥ नाणं दंसण तब संजमो य वय पंच उच्च जाणेजा। पिंडेसण पाणेसण उग्गहपडिमा य पिंडम्मि ॥ १ ॥ पवयणमाया नव भगुत्तिओ तह य समणधम्मो य एस पसत्यो पिंडो भणिओ कम्मद्रुमहोहिं ॥२॥ अपसत्थो य असंजम अन्नार्ण अविरई य मिच्छतं। कोहायासवकाया कम्मेऽगुत्ती अ ( भयकम्मागुतीs) हम्मो य ॥३॥ बज्झइ य जेण कम्मं सो सवो होइ अप्पसत्थो । मुच्चइ जय जेण सो उण पसत्थओ नवरि बिन्नेओ ॥ ४ ॥ दंसणनाणचरिताण पज्जवा जे उ जत्तिया वावि। सो सो होइ तयक्खो पज्जवपेयाला पिंडो ॥ ५ ॥ कम्माण जेण भावेण अप्पगं (पं) चिणइ चिकणं पिंडं । सो होइ भावपिंडो पिंडयए पिंडणं (ओ) जम्हा ॥ ६ ॥ दवे अच्चित्तेणं भावंमि (वे य) पसस्थाएहिं पगयं उच्चारित्थसरिसा सीसमइ (सेसा उ) विकोणट्टाए ॥ ७ ॥ आहारउवहिसेज्जा पसत्थपिंडस्वग्गहं कुणइ आहारे अहिगारो अहिं ठाणेहिं सो सुद्धो ॥ ८ ॥ निष्वाणं खलु कर्ज नाणाइतिगं च कारणं तस्स निवाणकारणाणं च कारणं होइ आहारी ॥ ९ ॥ जह कारणं तु तंतू पडस्स तेसिं च हाँति पम्हाई । नाणाइतिगस्सेवं आहारो मोक्खनेम (मि) स्स ॥७०॥ जह कारणमणुवह कर्ज साहेइ अविकलं नियमा मोक्खक्खमाणि एवं नाणाईणि उ अविगलाई ॥ १ ॥ संखेवपिंडियत्थो एवं पिंडो मए समक्खाओ फुडवियडपायडत्थं वोच्छामी एसणं एत्तो ॥ २ ॥ एसण गवेसण मम्गणा य उम्मीवणा य बोदवा एए उ एसणाए नामा एगडिया हाँति ॥ ३ ॥ नामंठवणा दविए भावंमि य एसणा मुणेयवा दवे भावे एकेकया उ तिविहा मुणेया ॥ ४॥ जम्मं एसइ एगो मुयस्स अनो तमेसए नई सन्तुं एसइ अन्नो पण अन्नो य से मधुं ॥ ५ ॥ एमेव सेसएसुवि चउप्पयापयअचित्तमीसेसु जा जत्थ जुज्जए एसणा उ तं तत्थ जोएजा ॥ ६ ॥ भावेसणा उ तिविहा गवेसगणेसणा उ बोद्धवा गासेसणा उ कमसो पत्ता वीयरागेहिं ॥ ७॥ अगविटुस्स उ गहणं न होइ न य अगहियस्स परिभोगो एसणतिगस्स एसा नायवा आणुपुत्री उ ॥ ८ ॥ नाम ठपणा दविए भावमि (वेय) गवसणा मुणेरा दर्शमि कुरंगगया उम्गमउपायणा भावे ॥ ९ ॥ जियसत्तुदेविचित्तसमपविसणं कणगपिपासणया । दोहलदुम्बलपुच्छा कहणं आणा य पुरिसाणं ॥ ८० ॥ सीवनिसरिसमोयगकर (ब) णं सीवनिरुक्खहेद्वेसु आगमण कुरंगाणं पसत्थ अपसत्थ उवमा उ ॥ १ ॥ विइअमेयं कुरंगाणं, जया सीवन्नि सीयइ पुरावि वाया वार्यता, न उणं पुंजकपुंजका ॥ २ ॥ हत्थिमाहणं गिम्हे अरहट्टेहिं भरणं च सरसीणं अचुदएण नलवणा आ (अहि) रूढा गयकुलागमणं ॥ ३ ॥ विइयमेयं गजकुलाणं, जया रोहंति नलवणा अन्नयावि झरंति हदा (झरा), न य एवं बहुओदगा ॥ ४ ॥ उग्गम उग्गोवण मग्गणा य एगडियाणि एयाणि नामं ठवणा दविए भावंमि य उम्गमो होइ ॥ ५ ॥ दमि लड्डुगाई भावे तिविहोग्गागमो मुणेयत्रो दंसणनाणचरिते चरिउग्गमेणेत्थ अहिगारो ॥ ६ ॥ जोइसतणीसहीणं मेहरिणकराणमुग्गमो दधे । सो पुण जत्तो य जया जहा यदनुग्गमो बच्चो ॥ ७ ॥ वासहरा अणुजत्ता अत्थाणी जोग्ग किड्डकाले य घडगसरावेसु कया उ मोयगा लड्डुगपियस्स ॥ ८ ॥ जोग्गा अजिण मारुय निसग्ग तिसमुत्थ तो सुइसमुत्थो । आहारुग्गमचिंता असुइत्ति दहा मलप्पभवो ॥ ९ ॥ तस्सेवं वेरग्गुग्गमेण सम्मत्तनाणचरणाणं जुगवं कमुग्गमो वा केवलनाणुग्गमो जाओ ॥ ९०॥ दंसणनाणप्यभवं चरणं सुसु तेसु तस्युद्धी चरणेण कम्मसुद्धी उग्गमसुदीइ चरणसुदी ॥ १ ॥ आहाकम्मुद्देसिय पूईकम्मे य मीसजाए य ठवणा पाहुडियाए पाओअर कीय पामिच्चे ॥ २ ॥ परियट्टिए अभिहडे, उ भिन्ने मालोहडे इय। अच्छिज्जे अनिसिडे, अज्झोयरए य सोलसमे ॥३॥ आहाकम्मियनामा एगट्ठा कस्स वावि किं वावि ? परपक्खे य सपक्खे चउरो गहणे य आणाई ॥ ४ ॥ आहा अहे य कम्मे आयाहम्मे य अत्तकम्मे य। पडिसेवण पडिसुणणा संवासऽणुमोयणा चैव ॥ ५ ॥ धणुजुयकाय भराणं कुटुंबरजधुरमाइयाणं च खंधाई हिययं चि (मि)य दवाहा अंतए १२५७ पिंडनिर्युक्तिः 1 मुनि दीपरत्नसागरPage Navigation
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