Book Title: Aagam Manjusha 41B Mulsuttam Mool 02 B PindaNijjutti
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 10
________________ वावि ॥ २८० ॥ उग्भट्ट परिन्नायं अन्नं लद्धं पओयणे घेच्छी रिणभीया व अगारी दहित्ति दाहं सुए ठवणा ॥ १॥ नवणीय मंथुतर्क व जाव अत्तट्टिया व गिव्हंति देसृणा जाब पर्य कुसणंपिय जत्तियं कालं ॥ २ ॥ रसककवपिंडगुलामच्छंडियखंडसकराणं च होइ परंपरठवणा अन्नत्थ व जुजए जत्थ ॥ ३ ॥ भिक्खग्गाही एगत्थ कुणइ बिइओ उ दोसु उवओगं । तेण पर उक्खिता पाहुडिया होइ ठवणा उ ॥ ४ ॥ पाहुडियावि हु दुविहा बायरं सुदुमा य होइ नायवा ओसकणमुस्सकण कब्बडीए समोसरणे ॥ ५॥ कन्तामि ताव पेलूं तो ते दाहामि पुत ! मा रोव तं जइ मुणेइ साहू न गच्छए तत्थ आरंभो ॥ २६ ॥ भा० । अन्नट्ट उट्टिया वा तुम्भवि देमित्ति (दाहामि) किंपि परिहरति । किह दाणि न उडिहिसी ? साहुपभावेण लब्भामो ॥ २७॥ भा० । मा ताव झंख पुत्तय परिवाडीए इहेहि सो साहू एयस्स उट्टिया ते दाहं सोउं विवज्जेइ ॥६॥ अंगुलियाए धेनुं कढइ कप्पट्टओ घरं जत्तो (तेणं)। किंति क. हिए न गच्छइ पाहुडिया एस सुहुमा उ ॥ ७ ॥ पुत्तस्स विवाहदिणं ओसरणे अइच्छिए मुणिय सड्ढा ओसकंतोसरणे संखडिपाहेणगदबट्टा ॥८॥ अप्पत्तंमि य ठवियं ओसरणे होहिइति उस्सकणं तं पागडमियरं वा करेह उज्जू अणुज्जू वा ॥ ९ ॥ मंगलहेडं पुन्नट्टया व ओसकियं दुहा पगयं उस्सकियंपि किंति य पुढे सिद्धे विवति ॥ २९०॥ पाहुडिभत्तं मुंजइ न पडिकमए य तस्स ठाणस्स । एमेव अडइ बोडो लुकविलको जह कवोडो ॥ १ ॥ लोयविरलुत्तमं तवोकिसं जडखउरियसरीरं जुगमेत्तंतरदिहिं अतुरियचवलं समिहमितं ॥ २ ॥ दद्रूण य अ (तम)णगार सड्ढी संवेगमागया काई विपुलऽन्नपाण घेत्तूण निम्गया निम्मओ सोऽवि ॥ ३ ॥ नीयदुवारंमि घरे न सुज्झई एसणत्तिकाऊणं । नीहंमिए अगारी अच्छ विलिया वऽगहिएणं ॥ ४ ॥ चरणकरणालसंमी अन्नंमि य आगए गहिय पुच्छा। इहलोगं परलोग कहेइ चइउं इमं लोगं ॥ ५ ॥ नीयदुवारंमि घरे भिक्खं निच्छंति एसणासमिया । जं पुच्छसि मज्झ कहं कप्पइ? लिंगोवजीवी ऽहं ॥ ६ ॥ साहुगुणेसण कहणं आउट्टा तंमि (तस्स) तिप्पड़ तहेब । कुक्कुडि चरंति एए वयं तु चिन्नङ्गया बीओ ॥ ७ ॥ पाओकरणं दुविहं पागडकरणं पगासकरणं च। पागड संकामण कुड्डदारपाए य छिन्ने व ॥ ८ ॥ रयणपईवे जोई न कप्पइ पगासणा सुविहियाणं । अत्तट्ठिय परिभोत्तुं कप्पइ कप्पे अकाऊणं ॥ ९ ॥ संचारिमा य चुली बहिं व चुली पुरा कया तेसिं । तहि रंधति कयाई उवही पूई य पाओ य ॥ ३०० ॥ नेच्छह तमिसंमि तओ बाहिरचुलीऍ साहु सिद्ध (दृ) ण्णे इय सोउं परिहरए पुढे सिद्धमिवि तब ॥ १ ॥ मच्छिम्मा अंतो याहि पचायं पगासमासनं इय अत्तट्ठिय गहणं पागडकरणे विभासेयं ( सा उ ) ॥ २॥ कुइडस्स कुणइ छिड्डं दारं वड्डे (हे) इ कुणइ अन्नं वा । अवणेइ छायणं वा ठावइ रयणं व दिव्यंतं ॥ ३ ॥ जोइ पइवं कुणइ व तहेव कहणं तु पुढे दु (sy) द्वे वा अन्तट्टिए उ गहणं जोइ पईवे उ वजित्ता (जेई) ॥ ४ ॥ पागडपयासकरणे कयंमि सहसा व अवऽणाभोगा। गहियं विगिंचिऊणं गेण्ड्इ अन्नं अकयकप्पे ॥ ५॥ कीयगर्डपिय दुविहं दधे भावे य दुविहमेकेकं । आयकियं च परकियं परदद्वं तिविहऽचित्ताइ ॥ ६ ॥ आयकिय पुण दुविहं दधे भावे य दश चुन्नाई। भावंमि परस्सऽट्टा अहवावी अप्पणा चैव ॥ ७ ॥ निम्मलगंधगुलियावन्नयपोत्ताइ आ (या) यकय दवे गेलने उड्डाहो पउणे चडुगारि अहिगरणं ॥ ८ ॥ वइयाइ मखमाई परभावकर्यं तु संजयद्वाए। उप्पायणा निमंतण कीडगड अभिहडे ठविए ॥ ९ ॥ सागारि मंख छंदण पडिसेहो पुच्छ बहु गए वासे कयरिं दिसिं गमिस्सह ? अमुई तहिं संथवं कुणइ ॥ ३१० ॥ दिजंते पडिसेहो कजे घेच्छं निमंतणं जइणं पुत्रगय आगए संछुहई एगगेहंमि ॥ १ ॥ धम्मक वाय खमणं निमित्त आयावणे सुयट्टाणं जाई कुल गण कम्मे सिप्पम्मिय भावकीयं तु ॥ २ ॥ धम्मकहाअक्खित्ते धम्मकहाउडियाण वा गिव्हे। क (हयं ) ति साहवो चिय तुमं व कहि ? पुच्छिए तुसिणी ॥ ३ ॥ किं वा कहिज छारा दगसोयरिया व अहवऽगारत्था। किं छगलगगलवलया मुंडकुटुंबी व किं कहए ? ॥ ४ ॥ एमेव बाइ खमए निमित्तमायावगम्मि य विभासा सुयठाणं गणिमाई अह्वा वाणायरियमाई ॥ ५ ॥ पामिपि दुविहं लोइय लोगुत्तरं समासेण । लोइय सज्झिलगाई लोगुत्तर वत्थमाईसु ॥ ६ ॥ सुयअभिगमनाय विही बहि पुच्छा एग जीवइ ससा ते पविसण पाग निवारण उच्छिदण ते जइदाणं ॥ ७ ॥ अपरिमियनेहबुड्ढी दासत्तं सो य आगओ पुच्छा दासत्तकहण मा रुप अचिरा मोएमि एत्ताहे (अप्पा भे) ॥ ८ ॥ भिक्ख दगसमारंभे कह कहिं भिवसहित संवेया आहरणं विसज कहणा कइवया उ ॥ ९ ॥ एए चैव य दोसा सविसेसयरा उ वत्थपाएसुं। लोइयपामिच्चेसुं लोगुत्तरिया इमे अन्ने ॥ ३२० ॥ मइलिय कालिय खोसि(मि)य हिय नट्टे वावि अन्न मग्गते । अवि सुंदरेवि दिण्णे दुक्कररोई कलहमाई ॥ १ ॥ उच्चताए दाणं दुलभ खग्गूढ अलस पामिचे तंपिय गुरुस्स पागा ) से ठवेइ सो देइ मा कलहो ॥ २ ॥ परियट्टियंपि दुविहं लोइय लोगुत्तरं समासेणं एक्केक्कंपिय दुविहं तदवे अन्नदधे य ॥ ३ ॥ अवरोप्परसज्झिलगा संजुत्ता दोषि अन्नमन्नेणं पोरगलिय संजयट्ठा परियट्टण संखडे बोही ॥ ४ ॥ अणुकंप भगिणिगेहे दरिद्द परियट्टणा य कूरस्स । पुच्छा कोहवकूरे मच्छर णाइक्ख पंतावे ॥ ५ ॥ इयरोऽविय पंतावे निसि ओसवियाण तेसि दिक्खा १२६२ पिंडनिर्युक्तिः मुनि दीपरत्नसागर

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