Book Title: Aagam Manjusha 41B Mulsuttam Mool 02 B PindaNijjutti Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 8
________________ व AKASH सजियंपि भिन्नदाढो न मुयह निबंधसो पच्छा ॥७॥ खड़े निडे य रुया सुत्ते हाणी तिगिच्छणे काया। पडियरगाणवि हाणी कुणइ किलेसं किलिस्संतो ॥ ८॥ जह कम्मं तु अकप्पं नच्छिकं वाऽवि भायणठियं वा। परिहरणं नस्सेव य गहियमदोसं च तह भणइ ॥९॥ अम्भोजे गमणाइ य पुच्छा दबकुलदेस(खित्तभावे य। एव जयंते छलणा दिटुंता नत्यिमे दोन्नि ॥१९०॥ जह वंतं तु अभोज भत्तं जइविय सुसक्यं आसि। एवमसंजमवमणे अणेसणिजं अभोज तु॥१॥ मजारखइयमंसा मंसासिस्थि कुणिमं सुणयवत । वन्नाइ अन्नमप्पाइयंति कि तं भवे भोजं? ॥२॥ केई भणंति पहिए अट्ठा(द्धा)णे मंसपेसिवोसिरणं । संभारिय परिवेस(वह)ण वारेइ सुओ करे घेर्नु॥३॥ अपिलाकरहीखीरं ल्हसुण पलंडू सुरा य गोमंसं। चेयसमएवि अमयं किंचि अभोज अपेज्जं च ॥४॥ वनाइजुयावि बली सपललफलसेहरा असुइनत्था। असुइस्स विप्पुसेणवि जह छिकाओ अभोज्जा(हुति भिक्खा)ओ ॥५॥ एमेव उज्झियंमिवि आहाकम्ममि अकयए कप्पे। होइ अभोज भाणे जत्य व सुदपि तं पडियं ॥६॥वंतुचारसरिच्छे कम्मं सोउमवि कोविओ भीओ । परिहरइ सावि य दहा विहिजविहीए य परिहरणा ॥७॥ सालीओअणहत्थं दठं भणइ अविकोविओ देति। कत्तोच उत्ति साली ? वणि जाणइ पुच्छ तं गंतुं ॥८॥ गंतूण आवणं सो वाणियगं पुच्छए कओ साली?। पञ्चंते मगहाए गोबरगामो तहिं वयह ॥९॥ कम्मासंकाएं पहं मोत्तुं कंटाहिसावया अदिसिं। छायपि विवर्जतो डझइ उण्हेण मुच्छाई ॥२०॥ इय अविहीपरिहारी नाणाईणं न होइ आभागी। दबकुलदेसभावे विहिपरिहरणा इमा तत्थ ॥१॥ ओयणसमिइमसत्तुगकुम्मासाई उ होति दवाई। बहुजणमप्पजणं वा कुलं तु देसो सुरहाई ॥२॥ आयरऽणायर भावे सयं व अन्नेण वाऽवि दावणया। एएसि तु पयाणं चउपय तिपया व भयणा उ॥३॥ अणुचियदेसं द(स)वं कुलमप्पं आयरो य तो पुच्छा। बहुएवि नत्थि पुच्छा सदेसदविए अभावेऽवि॥४॥ तुज्झट्ठाए कयमिणमन्नोन्नमवेक्खए य सविलक्खं । व(त)जति गाढरट्ठा का भे तत्तित्ति वा गिण्हे ॥ ५॥ गूढायारा न करेंति आयरं पुच्छियावि न कहेंति। थोवंति व नो पुट्टा तं च असुद्धं कहं तत्थ ? ॥६॥ आहाकम्मपरिणओ फासुयभोईवि बंधओ होइ। सुद्धं गवेसमाणो आहाकम्मेवि सो सुद्धो॥७॥ संघुदिढं सोउं एइ दुयं कोइ भोइए पनो। दिअंति देहि मज्झतिगाउ सोउं तओ लम्गो ॥८॥मासियपारणगट्ठा गमणं आसनगामगं खमगे। सड्ढी पायसकरणं कयाइ अज्जे जिही खमओ ॥९॥ खेङ्गमङगलेच्छारियाणि डिंभग निभच्छ रुंटणया। हंदि समणत्ति पायस घयगुलजुय जावणट्टाए ॥२१०॥ एगतमवकमणं जइ साहू इज्ज होज तिन्नो मि। तणुकोट्टमि अमुच्छा भुत्तमि य केवलं नाणं ॥१॥ चंदोदयं च सूरोदयं च रनो उ दोनि उज्जाणा। तेसि विवरियगमणे आणाकोवो तओ दंडो ॥२॥ सूरोदयं गच्छमहं पभाए, चंदोदयं जंतु तणाइहारा। दुहा खी पञ्चुरसंतिकाउं, रायावि चंदोदयमेव गच्छे ॥३॥ पत्तलदुमसालगया इच्छामु निबंगणत्ति दुश्चित्ता। उजाणपालएहिं गहिया य हया य बद्धाय ॥४॥ सहस पइट्ठा दिवा इयरेहि निवंगणत्ति तो बदा। नितस्स य अवरण्हे दंसणमुभओ वहविसम्मा ॥५॥ जह ते दसणकखी अपूरिइच्छा विणासिया रण्णा। दिद्वेऽवियरे मुक्का एमेव इहं समोयारो॥६॥ आहाकम्मं भुंजइ न पडिकमए य तम्स ठाणस्स। एमेव अडइ बोडो लुक्कविलुको जह कवोडो॥७॥ आहाकम्मदारं भणियमियाणि पुरा समुहिट्ठ। उद्देसियंति वोच्छ समासओ तं दुहा होइ ॥ ८॥ ओहेण विभागेण य ओहे ठप्पं तु बारस विभागे। उहिट्ठ कडे कम्मे एकेकि चउकओ भेओ ॥९॥ जीवामु कहरि ओमे निययं भिक्खावि कइयई देमी। हंदि हुनस्थि अदिन्नं भुज्जइ अकयं न य फलेइ ॥२२०॥ | सा उ अविसेसियं चिय मियंमि भत्तमि तंदु(चाउ)ले एहह। पासंडीण गिहीण व जो एहिइ तस्स भिक्खट्ठा ॥१॥ छउमत्योघुदेस कहं वियाणाइ? चोइए भणइ । उवउत्तो गुरु एवं गिहत्यसदाइचिट्ठाए।श दिन्ना उ ताउ पंचवि रेहाउ करेइ देइ(न्त) व गणंति। देह इओ मा य इओ अवणेह य एत्तिया भिक्खा ॥३॥ सहा(ड्ढा)इएसु साह मुच्छ न करेज गोयरगओ य। एसणजुत्तो होजा गोणीवच्छो गवत्तिय ॥४॥ ऊसवमंडणवम्गा न पाणियं वच्छए नविय चारिं। वणियागम अवरण्हे बच्छगरखणं खरंटणया ॥ ५॥ पंचविहबिसयसोक्सक्खणी बहू समहियं गिहं तं तु।न गणेइ गोणिवच्छो मुच्छिय गढिओ गवतंमि ॥६॥गमणागमणुक्खेवे भासिय सोयाइइंदियाउत्तो। एसणमणेसणं वा तह जाणइतम्मणो समणो ॥७॥ महईएं संखडीए उबरियं कुरवंजणाईयं । पउरं दळूण गिही भणइ इमं देहि पुषणट्ठा ॥८॥ तत्थ विभागुद्देसियमेवं संभवइ पुवमुद्दिट्ठ। सीसगणहियट्ठाए तं चेव विभागओ भणइ ॥२३॥ भाका उद्देसियं समुद्देसियं च आएसियं समाएसं। एवं कडे य कम्मे एकेकि चउक्कओ भेओ॥९॥ जावंतियमुद्देसं पासंडीणं भवे समुद्देसं । समणाणं आएसं निगंथाणं समाएसं ॥२३॥ छिन्नमछिन्नं दुविहं दवे खेत्ते य काल भावे य । निष्फाइयनिष्फन्नं नायवं जं जहिं कमइ ॥१॥ भत्तुवरियं खलु संखडीएं तदिवसमन्नदिवसे या । अंतो बहिं च सर्व सवदिणं देहि अच्छिन्नं ॥२॥ देहि इमं मा सेसं अंतो वाहिरगयं व एगयरं । जाव अमुगत्ति बेला अमुगं वेलं च आरम्भ ॥३॥ दवाईछिन्नपि हु जद भणई आरओऽवि मा देह । तो (३१५) १२६० पिंडनियुक्तिः - मुनि दीपरनसागर *24 कप 44Page Navigation
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