Book Title: Aagam Manjusha 41B Mulsuttam Mool 02 B PindaNijjutti
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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नेणो व संजयट्ठा करणाणं अप्पणो व अट्ठाए। वोच्छेय पओसं वान कप्पई कप्पऽणुन्नायं ॥४॥ संजयभद्दा नेणा आयंती वा असंथरे जइण। जइ देति न घेत निच्छम वोच्छेउ मा होजा ॥५॥ घयसनुयदिटुंतो (नेणगएण घेनुं) समणुन्नाया व घेनुर्ण (गिहीवि) पच्छा। दें(वें)ति तयं तेसि चिय समणुन्नाया व मुंजंनि ॥६॥ धयसनगदिटुंनो अंबापाए य नपिया पियरो। काममकामे धम्मो णिओइए अम्हवि कयाई ॥ ४५०॥ अणिसिद्धं पडिकुटुं अणुनायं कप्पए सुविहियाणं। लड्डुग चोलग जंते संखडि खीरावणाईस ॥ ७॥ बत्तीसा सामन्ने ने कहि हाउं गयति इअ युने। परसंनिएण पुन्नं न नरसि काउंति पचाह ॥८॥ अविय हु बत्तीसाए दिन्नेहि नबेग मोयगो न भवे । अप्पवयं वहुआयं जइ जाणसि देहि नो मज्झं ॥९॥ लाभिय नेतो पुट्टो किं लदं ? नस्थि पच्छिमो दाए। इयरोऽवि आह नाहं देमित्ति सहोद चोरनि ॥३८॥ गिरोहण कढण यबहार पच्छकटाह पूच्छ (नहय) निविसए। अपहुंमि हुंनि दोसा पहुंमि दिन्ने तओ गहणं ॥१॥ एमेव य जंतंमिवि (नचलग) संखडि खीरे य आवणाईसुं। सामन्नं पटिकुटुं कप्पद घेत्तुं अन्नायं ॥२॥ नि दारमहुणा बहुवनवंति नं कयं पच्छा । वन्नेइ गुरू सो पुण सामियहत्यीण विन्नेओ ॥३॥ छिन्नमछिन्नो दुविहो होइ अछिन्नो निसिट्ट अणिसिहो । छिन्नंमि चुड़गंमी कणइ घेत निसिमि॥४॥ छिन्नो दिट्ठमदिट्ठो जो य निसिट्ठो भवे अछिन्नो य। सो कप्पइ इयरो उण अदिदिट्ठो वऽणुन्नाओ ॥५॥ अणिसिटुमणुन्नायं कप्पद घेनुं नहेब अदिष्टं। जड्डस्स
य अनिसिटुं न कप्पई कप्पइ अदिटुं॥६॥ निवपिंडो गयभनं गहणाई अंतराइयमदिन्नं। डॉबस्स संतिएविहअभिक्ख यसहीय फेडणया॥७॥ अज्झायरओ निविही जानिय सघ| स्मीसपासंडे। मूलंमि य पुवकये ओयरई तिण्ह अट्ठाए॥८॥ तंडुलजलआयाणे पुष्फफले सागवेसणे लोणे। परिमाण नाणनं अज्झोयरमीस
संडिमीसए पूई। छिन्ने विसोहि दिन्नंमि कप्पई न कप्पई सेसं ॥३९॥ छिन्नंमि तओ उक्कढियंमि कप्पड़ पिहीकए सेसं। आहावणाए दिन्नं च तनियं कप्पए सेसं ॥१॥ एसो सोलसभेओ, दुहा कीरई उग्गमो। एगो विसोहिकोडी, अविसोही उ चावरा ॥२॥ आहाकम्मुदसिय चरमनिगं पूइ मीसजाए य। वायरपाडियाविय अज्झोयरए य चरिमदुगं ॥३॥ उम्गमकोडी अवयव लेवालेवे य अकयए कप्पे। कंजियायामगचाउलोयसंसट्टपूईओ॥४॥ मुक्केणऽविजं छिकं नु अमुहणा धोबए जहा लोए। इह मुकेणऽवि छिकं धोवह कम्मेण भाणं तु? ॥२८॥ भा०। लेवालेवत्ति जं बुत्तं, जंपि दवमलेवर्ड। तपि घेनुं ण कप्पंति, नकाइ किमु देवडं? ॥९॥ आहाय जं कीरड नं तु कम्म. बजेहिही ओयणमेगमेव । साबीर आ यामग चाउलो वा (दगं), कम्मति तो तम्गहणं करेंति ॥३०॥ भा० सेसा विसोहिकोडी मनं पाणं विगिच जहसत्ति। अणलक्विय मीसदबे सबविवेगेऽवयव सुदो ॥५॥ दवाइओ विवेगो दवे जं दब जं जहिं खेले। काले अकालहीणं असढो जं पस्सई भावे ॥६॥ सुक्कोङसरिसपाए असरिसपाए य एत्य चउभंगो। तुड़े तुनिवाए नन्थ दुवे दोन्नताहा उ ॥ ७॥ सुक्के सुकं पडियं विगिचिउं होइ तं सुहं पढमो। वीयंमि दवं छोढुं गालंति दवं करं दाउं॥८॥ तइयंमि कर छोईं उल्डिंचइ ओयणाइ जं नरउ । दुलहदवं चरिमे ननियमिनं विगिचंति ॥९॥ संथर सबमुज्झति. चउभंगो असंथरे। असढा सुज्झई जे(त)मुं, मायावी जसु बज्झई॥४०॥ काडीकरणं दुविहं उरगमकोडी विसोहिकोडी य। उम्गमकोडी छकं विसोहिकोडी अणेगविहा ॥१॥ नव चेव अढारसगं सत्तावीसा तहेव चउपना । नउई दो चेव सया उ सत्तरी होइ कोडीणं ॥२॥ सोलस उपगमदोसे गिहिणो उ समुट्टिए वियाणाहि। उप्पायणाएँ दोसे साहूउ समुट्ठिए जाण ॥३॥णामं ठवणा दविए भावे उप्पायणा मुणेयवा। दवंमि होइ तिविहा भावंमि उ सोलसपया उ॥४॥ आसूयमाइएहिं वारचियनुरंगचीयमाइहिं । सुयआसदुमाईर्ण उप्पायणया उ सचित्ता ॥५॥ कणगरययाइयाणं जहेट्ठधाउविहिया उ (ही य) अचिना। मीसा उ सभंडाणं दुपयाइकया उ उप्पनी॥६॥ भावे पसन्थ इयरों कोहाउपायणा उ अपसत्थो। कोहाइजुया धायाइणं च नाणाइ उ पसत्था ॥ ७॥ धाई दुइ निमित्ते आजीव वणीमगे तिगिच्छा य। कोहे माणे माया लोभे य हवंनि दस एए॥८॥ पुविपन्छासंथव विजा मंते य चुन्न जोगे य। उप्पायणाइ दोसा सोलसमे मुलकम्म य॥९॥खीरे य मजणे मंडणे य कीलावर्णकधाई या एककाविय दविहा करणे कारावणे चेत्र
धाई उ। जहविहवं आसि पुरा खीराई पंच धाओ॥१॥ खीराहारो रोबर मज्झ कयासाय देहि णं पिजे। पच्छा व मज्झ दाहिसि अलं व भुजो व एहामि ॥२॥ मइमं अरोगि दीहाउओ य होइ अविमाणिओ वालो। दुलभयं खु सुयमुहं पिजाहि अहं व से देमि ॥३॥ अहिगरण भदपंना कम्मुदय गिलाणए य उड्डाहो । चहुकारी य अवन्नो नियगो अन्नं च जं संके॥४॥ अयमवरो उ विकप्पो भिक्खायरि सढि अद्विई पुच्छा। दुक्खसहाय विभासा हियं च धाइतणं अनो! ॥५॥ वयगं
डतणुयथूलत्तणेहि तं पुच्छिउँ अयाणतो। तत्थ गओ तस्समक्खं भणाइ तं पासिउँ बालं ॥६॥ अहुणुट्टियं व अणविक्खियं व इणमं कुलं तु मन्नामि । पुन्नेहि जहिताए (३१६) | १२६४ पिंडनियुक्तिः -
मुनि दीपरत्नसागर
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