Book Title: Aagam Manjusha 41B Mulsuttam Mool 02 B PindaNijjutti
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar

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Page 11
________________ 1 य तम्हा उ न त कह वा जे ओसमेहिंति ? ॥ ६ ॥ ऊणहिय दुब्बलं वा खर गुरु छिन्नं महल असीयसहं दुवन्नं वा नाउं विपरिणमे अन्नभणिओ वा ॥ ७ ॥ एगस्स माणजुत्तं न उ बिए एवमाइकजेसु । गुरुपामूले ठेवणं सो दलयह अग्रहा कलहो ॥ ८॥ आइनमणाइनं निसिहाभिहडं च नोनिसीहं च निसिहाभिहडं ठप्पं वोच्छामी नोनिसीहं तु ॥ ९ ॥ सग्गाम परम्गामे सदेस परदेसमेव बोद्धवं दुविहं तु परग्गामे जलथल नावोडुजंघाए ॥ ३३० ॥ जंघा बाह तरीइ व जले थले खंधआरसुरनिबद्धा संजम आयविराण तहियं पुण संजमे काया ॥ १ ॥ अत्थाहगाह (पं) कामगरोहारा जले अवाया उ कंटाहितेणसावय थलंमि एए भवे दोसा ॥ २ ॥ सग्गामेऽविय दुविहं घरंतरं नोघरंतरं चैव तिघरंतरा परेण घरंतरं तं तु नाय ॥ ३ ॥ नोघरंतरऽणेगविहं वा (पा) डगसाहीनिवेसण गिहेसु काये खंधे मिम्मय कंसेण व तं तु आणेजा ॥ ४॥ सुनं व असइ कालो पगयं व पहेणगंव पासुत्ता। इस एड काइ घेत्तुं दीवेइ य कारणं तं तु ॥ ५ ॥ एसेब कमो नियमा निसिहाभिहडेऽवि होइ नायो। अविइअदायगभावं निसीहिअं तं तु नाययं ॥ ६ ॥ अइदूरजलंतरिया कम्मासंकाएं मा न घेच्छति । आणेति संखडीओ सड्ढो सड्डी व पच्छनं ॥ ७॥ निग्गम देउल दाणं दियाइ सन्नाइ निग्गए दाणं सिमि सेसगमणं दितऽन्ने वारयंतेऽन्ने ॥ ८ ॥ भुंजण अजीर पुरिमड्ढगाइ अच्छेति भुत्तसेस वा आगमनिसीहिगाई न भुंजई सावगासंका ॥ ९॥ उक्खितं निक्खिप्पर आसमयं महगंमि पासगए। खामितु गया सड्ढा तेऽवि य सुद्धा असदभावा ॥ ३४० ॥ लद्धं (नीयं ) पण मे अमुगत्थगयाएं संखडीए वा बंदणगट्टपविट्टा देइ तयं पट्टिय नियत्ता ॥ १ ॥ नीयं पहेणगं मे नियगाणं निच्छियं वतं तेहिं सागरि सयज्झियं वा पडिकुडा संखडे रुट्ठा ॥ २ ॥ एवं तु अणाइनं दुविहंपिय आहढं समक्खायं आइनंपिय दुविहं देसे तह देसदेसे य ॥ ३ ॥ हत्थसयं खलु देसो आरेणं होइ देसदेसो य आइन्नमिविति (ण्णे तिन्नि) गिहा तं चिय उवओगपुजागा (काऊणं ॥ ४ ॥ परिवेसणपतीए दूरपवेसे य घसालगिहे हत्थसया आइनं गहणं परओ उ पडिकुद्धं ॥ ५ ॥ होइ पुण देसदेसो अंतो गिह सा न दीसए जत्थ उक्खेवाई तत्थ उ सोयाई देइ उपओगं ॥ ३५० ॥ उक्कोर्स मज्झिम जहन्नगं च तिविहं तु होइ आइन्नं करपरियत जहन्नं सयमुकस मज्झिमं सेसं ॥६॥ पिहिउभिन्नकवाडे फाय अल्फाए य बोद्ध अफासुय पुढविमाई फासूय लगणाइदद्दरए ॥ ७ ॥ उच्मिन्ने छक्काया दाणे कयविकए य अहिगरणं ते चैव कवाडंमिवि सविसेसा जंतमाईसु ॥ ८ ॥ सचित्तपु· ढविलितं लेल सिलं वाऽवि दाउमीलितं । सञ्चित्तपुढविलेवो चिरंपि उदगं अचिरलित्ते ॥ ९ ॥ एवं तु पुत्र ( णो ) लित्ते काया उलिंपणेऽवि ते चेव (माणओ हुज्जा) । तिम्मेउं उचलिंपड जउमुदं वाबि तावेउं ॥ ३५० ॥ जह चैव पुलित्ते काया दाउं पुणोऽवि तह चेव उवलिप्यंते काया मुइअंगाई नवरि छट्ठे ॥ १ ॥ परस्स तं देइ सए व गेहे, ते व लोणं व घयं गुलं वा उग्घाडिए तंमि करे अवस्सं स विकयं तेण किणाइ अन्नं ॥ २ ॥ दाणकयविक्रया चेव होइ अहिगरणमजयभावस्स निवयंति जे य तहियं जीवा मुइयंगमूसाई ॥ ३ ॥ जहेब कुंभाइसु पुचलिते, उग्भिजमाणे य हवंति काया ओलिंपमाणेवि तहा तहेव, काया कवाडंमि विभासिया ॥ ४ ॥ घरकोइलसंचारा आवतण पीढगाइ हेतुवरिं निंवे ठिए य अंतो डिंभाईपेलणे दोसा ॥ ५ ॥ घेप्पर अकुंचियागंमि कवाडे पइदिणे परिवहते। अजऊमुद्दिय गंठी परिभुज्जइ दद्दरो जो य ॥ ६ ॥ मालोहडेपि दुविहं जहन्नमुकोसगं च बोद अग्गतले (पए) हि जहां तचिवरीयं तु उक्कोसं ॥ ७॥ भिक्खु जनगंमी गेरुय उक्कोसगंमि दितो अडिसनमालपडणे य एवमाई भवे दोसा ॥ ८ ॥ मालाभिमुहं दद्रूण अगारिं निग्गओ तओ साहू । तचत्रिय आगमणं पुच्छा य अदिन्नदाणन्ति ॥ ९ ॥ मालंमि कुट्ठ मोयग सुगंध अहि पविसणं करे ढक्का। अन्नदिण साहु आगम निद्दय कहणा य संवोही ॥ ६ ॥ आसंदिपीडमंचकजंतोडूखल पडत उभयवहे। वोच्छेयपओसाई उड्डाहमनाणिवाओ य ॥ १ ॥ एमेव य उकोसे वारण निस्सेणि गुत्रिणीपडणं । गम्भित्थिकुच्छिफोडण पुरओ मरणं कण बोही ॥ २ ॥ उढमहे तिरियंपिय अहवा मालोह भवे तिविहं । उड्ढमहे ओयरणं भणियं कुंभाइसू उभयं ॥ ३ ॥ दद्दरसिलसोवाणे पुत्रारूढे अणुचमुक्खित्ते। मालोहढं न होइ सेसं मालोहर्ड होइ ॥ ४ ॥ तिरियायय उज्जुगएण गिण्हई जं करेण पासंतो एयमणुचुक्खितं उच्चुक्खित्तं भवे सेसं ॥ ५॥ अच्छिपिय तिविहं पभू य सामी य तेणए चैव। अच्छिजं पडिकुडं समणाण न कप्पए घेत्तुं ॥ ६ ॥ गोवालए य भयए खरए पुत्ते य धूय सुहाए। अचियत्तसंखडाई केइ पओसं जहा गोवो ॥ ७ ॥ गोवपओ अच्छेतुं दिनं तु जइस्स भइदिणे पहुणा पयभाणूर्ण द सिह भोई रुवे चेडा ॥ ८ ॥ पडियरण पओसेणं भावं नाउं जइस्स आलावो। तन्निब्वंधा गहियं हंदि स ( उ ) मुको सि मा बीयं ॥ ९ ॥ नानिषिद्धं लम्भइ दासीवि न भुजए रिते भत्ता । दोन्नेगयरपओसं जं काही अंतराय च ॥ ३७० ॥ सामी चारभडा वा संजय दठूण तेसि अट्ठाए। कलुणार्ण अच्छेजं (तु) साहूण न कप्पए घेत्तुं ॥ १ ॥ आहारोवहिमाई जइ अट्ठाए उ कोइ अच्छिदे । संखडि असंखडीए तं गिण्हंते इमे दोसा ॥ २ ॥ अचियत्तमंतरायं तेनाइड एगऽणेगवोच्छेओ। निच्छुभणाई दोसा तस्स अ (विद्याल) लंभे य जं पावे ॥ ३ ॥ १२६३ पिंडनिर्युक्तिः मुनि दीपरत्नसागर ד दिल

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