Book Title: Aagam Manjusha 41B Mulsuttam Mool 02 B PindaNijjutti Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri Publisher: Deepratnasagar View full book textPage 9
________________ 1 कप्पा छिन्नपि अचिन्नकर्ड परिहानि ॥४॥ अमुगाणंति व विजउ अमुकाणं मनि एत्थ उ विभासा। जन्य जईण विसिट्ठा निरसो नं परिहानि (रिजा) ॥५॥ संदिम्सनं जो सुणइ कप्पए नम्स सेसए ठवणा। संकलिय साहर्ण वा करेंनि अमुए इमा मेरा ॥६॥मा एयं देहि दम पुढे सिटुंमि नं परिहरनि। जं दिन्नं नं दिन्नं मा संपड देहि गेष्हति ॥ ७॥ रसभायणहे वा मा कुच्छिहिई मुहं व दाहामि। दहिमाई आयनं करो कुरं कई एयं ॥८॥ मा काहंनि अवणं परिकन्लियं प दिनह सुहं न । वियरेण फाणिएण व निदेण समं नुबईनि ॥९॥ एमेव य कम्मंमिऽवि उल्हवणे नवरि नत्थ नाणनं । नावियविन्लीणएणं मोयगचुनीपुणकरणं ॥२४०॥ अमुगंनि पुणो रदं दाहमकप्पं नारो कप्पा खेने अंनो बाहि कारे मुइई परेवं वा ॥१॥ जं जह व कयं दाहं न कापड आरओ नहा अकये। कयपाकमणिट्ठन्ति ठियपि जावन्नियं मोनुं ॥२॥ उकायनिरणुकंपा जिणपत्यणचाहिरा बहि फोड़ा। एवं वयंनि फोडा लुकविलुका जह कबोडा ॥१०२॥ पूईकम्मं दुविहं दवे भावे य होइ नायव । दश्चमि छगणधम्मिय भामि य वायरं मुहमं ॥३॥ गंधाइगुणसमिदं जं दवं अगुढगघदवज्यं । पूइनि परिहरिजानं जाणसु दशपूइनि॥४॥ गोहिनिउनो धम्मी सहाएं आसन्नगोविमनाए। समियमुरवातमीसं अजिन्न सन्ना महिसिपोहो ॥५॥ संजायन्टिनभने गोट्ठिगगंधोनि व(च)इवणिआयो। उस्खणिय अन्नछगणेण लिंपर्ण दवपूई ऊ ॥६॥ उग्गमकोडीअवयवमिनेणवि मीसियं सुमुदपि। मुदपि यरा य पाइडिया। पई अज्झायरओ उम्गमकोडी भवे एसा ॥८॥वायर मुहर्म भावे उ पृडयं मुहममवरि बोच्छामि। उवगरण भनपाणे दुविहं पुणब बायरं पृई ॥९॥ चुइक्सलिया डोए दबी य मीसग पूई। डाए लोणे हिंगू संकामण फोडणे धूमे ॥२५० ॥ सिझनम्मुवया दिजनम्स व कोड जं दवं । न उवकरणं चुहड़ी उक्खा दशी य डोयाई ॥१॥ चाडक्खा कम्माई आइमभंगेसु तीमुवि अकप्पं । पडिकुटुं नन्थन्थं अन्नन्थगयं अणुनायं ॥२॥ कम्मियकरममिम्सा चूड़ी उक्सा य फड्गजया उ। उवगरणपृइमेयं डोए दंडे व एगयरे ॥३॥ दवीटेनि जं वनं. कम्मदवीएं जं दए। कम्मं घट्टिय सुदं तु, घट्टए (आ) हारपूइयं ॥४॥ अनट्ठिय आयाणे डायं लोणं च कम्म हिगं वा। नं भनपाणपई फोडण अन्नं व जं हइ ॥४॥ संकामेउं कम्मं सिद्ध जंकिंचि नन्ध टूटं वा। अंगारधूमि थाली वेसण हेट्ठा मुणीहि (कम्मियवेसणअंगारथाली हेहामुही)धूमो॥६॥ इंधण. धूमेगंधेअवयवमाईहि सुहमपूई उ। सुंदरमेयं पूई चोयग भणिए गुरू भणइ॥७॥ इंधणधुमेगंधेअवयवमाई न पुइयं होइ। जेसि तु एस पूई सोही नवि विजए नेसिं ॥८॥इंधणगणीअवयव धूमो वष्फो य अवगंधो या सर्व फुसंनि लोयं भन्नइ सनओ पूई ॥ ५॥ नणु मुहमपूइयम्सा पृवृहिदुम्सऽसंभवो एवं । इंधणधूमाईहिं नम्हा पृढनि सिद्धमिणं ॥२६॥ चोयग! इंधणमाइहिं चउहिवि मुहमपूइयं होइ। पन्नवणामिनमियं परिहरणा नन्थि एयस्स ॥१॥ सज्झमसज्झं कर्ज सज्झं साहिजएन उ असझं। जो 3 असज्झ साहइ किलिस्सइन नं च साहेई ॥२॥ आहाकम्मियभायणपष्फोहण काउ अकयए कप्पे। गहियं तु(नि) सुहमपई धोवणमाईहिं परिहरणा ॥३॥ धोयंपि निराचय न होइ जाह्न कम्मगहणमि। न य अहव्वा उ गुणा भन्नई मुद्दा कओ एवं? ॥४॥लोएवि अमुइगंधा विपरिणया दूरओ न दृसंनि।न य मारंनि परिणया दूरगया अवि विसावयवा ॥५॥ सेसेहि उ दवेहि जावइयं फुसइ ननियं पूई । लेवेहि निहि उ पूर्व कप्पड़ कप्पे कए तिगुणे ॥६॥ इंधणमाई मोनुं चउरो सेसाणि होनि दवाई। नेसि पुण परिमाणं नयप्पमाणाउ आरम्भ ॥ ७॥ पढमदिवसंमि कम्मं तिमि उ दिवसाणि पृडयं होइ । पूईमु निमुन कप्पड़ कप्पड़ नइओ जया कप्पो॥८॥ समणकडाहाकम्म समणाणे जंकडेण मीसं तु। आहार उवहि वसही सर्व नं पृश्यं होह ॥॥ सइढम्स थेवदिवसेमु संखडी आसि संघभत्तं वा। पुच्छिनु निउणपुच्छं संलावाओ पऽगारीणं ॥२७० ॥ मीसजायं जावंनियं च पासंडिसाहमीसं च। सहसंतरं न कप्पड़ कप्पइ कप्पे कए तिगुणे ॥१॥ दुग्गासे तं समइच्छिउँ व अदाणसीसए जना।सड्ढी बहुभिक्खयरे मीसजाय कर कोई ॥२४॥भा०ा जावंता सिद्ध नेय(न एइ) नं देह कामियं जर्ण बहुसु व अपहुपते भणाइ अपि हि ॥२॥ अनट्ठा रचते पासंडीणपि विइयओ भणइ। निग्गंथट्ठा नहओ अत्नट्ठाएऽपि रचने (सों होइ)॥३॥ विसपाइयपिसियासी मरह तमनोवि खाइउं मरइ । इय पारंपरमरणे अणुमरद सहस्ससो जाच ॥४॥ एवं मीसज्जार्य चरणप्पं हणइ साहु मुविमुदं। नम्हा नं नो कप्पड़ पुरिससहसंतरगयपि ॥५॥ निच्छोडिए करीसेण वावि उच्चहिए नो कप्पा। सुक्खावित्ता गिरोहह अन्न चउत्थे अमुकेऽपि ॥६॥ सट्टाणपरहाणे दुविहं ठवियं नु होइनाया। खीराइ परंपरए हत्यगय परंतरं जाव ॥७॥ चाडी उवाली वा ठाणसठाणं तु भायणं पिढरे। सहाणवाणमि य भायणठाणे य चउभंगो ॥२५॥ भा०। लम्बगवारगमाई होइ परहाणमो पडणेगविहं । सट्ठाणे पिढरे उबगे य एमेव दूरे य ॥८॥ एकेक तं दुविहं अणंतर परंपरे य नायत्रं । अविकारि कयं दव्वं तं चैव अणंतर होइ ॥९॥ उचक्खीराईयं विगारि अविगारि घयगुलाईयं । परियावजणदोसा ओयणदहिमाईय १२६१ पिंडनियुतिः - मुनि दीपरत्नसागरPage Navigation
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