Book Title: Aagam Manjusha 41B Mulsuttam Mool 02 B PindaNijjutti
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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जदिच्छाएँ व तर(चल)ई वालेण सूएमो ॥७॥ पेरी दुबलवीरा चिमि(विवि)दो पेल्लियमहो अइयणीए। तणुई उ मंदखीरा कुष्परथणियाएँ सूइमुहो ॥८॥ जा जेण होइ बन्नेण उकडा गरहए यत तर्ण गरहह समाण ति पसत्यमियरंचबन्न ॥९॥ उहिया पओसं छोभग उम्भामओय से जंता होजा मज्झवि विग्यो विसाहइयरी परमेव ॥४२०॥ एमेव सेसियासवि सुयमाइसु करणकारणं सगिहे। इइडीसुय घाईसु य तहेव उबहियाण गमो ॥१॥ लोलइ महीएं धूलीएं गुंडिओ व्हाणि अहवर्ण मजे। जलभीरु अपलनयणो अइउप्पिलणे अ रत्तच्छो ॥२॥ अभंगिय संवाहिय उपष्ट्रिय मजियं च तो बालं। उवणेइ मजधाई मंडणधाईएं सुइदेहं ॥३॥ उसुआइएहि मंडेहि ताव णं अहवर्ण चिमूसेमि। हत्थिचगा व पाए कया गलिच्चा व पाए वा ॥४॥ दइढरसर छुन्नमहो मउयगिरो मउयमम्मणुखावो। डाडावणगाईहिब करेइ कारेइ वा किड्ढं ॥५॥ धुडीएं वियहपाओ भग्नकडी सुकडाए दुक्खं च। निम्मंसकक्खडकरहिं भीरुओ होइ पेप्पते ॥६॥ कोठहरे वस्थाको दत्तो आहिंडओ भवे सीसो। अवहरर धाइपिंड अंगुलिजलणे य साविश्वं ॥७॥ ओमे संगमरा गच्छ विसर्जति जंघवलहीणा। नवभागखेत्तवसही दत्तस्स य आगमो ताहे ॥३१॥ भा०। उपसयचाहिं ठाणं अनाउंडेण संकिलेसो या पूयणचेडे मा रुय पडिलाभण वियहणासम्म ॥२॥ भा०ा सग्गाम परग्गामे दुविहा दुई उ होइ नायगा। सा वा सो वा भणई भणइ यतै उन्नवयणेणं ॥८॥ एकेकाविय दुविहा पागड़ छन्ना व उन्न दुविहा उ। लोगुनरि तत्थेगा बीया पुण उभयपक्सेवि(सु)॥९॥ भिक्खाइएँ वर्धते अप्पाहणि नेइ खंतियाईणं ।सा ते अमुर्ग माया सो व पिया ते इमं भणइ ॥४३०॥ दूइत्तं सुगरहियं अपाहिउँ बिइयपचया भणति। अविकोचिया सुया ते जा आह मई भणसु खंतिं ॥१॥ उभयेऽविय पच्छन्ना खंत ! कहि जाहि खंतियाए तुम। तं तह संजायंतिय तहेव अह तं करेजासि(हि)॥२॥ गामाण दोण्ह वेर सेजायरि धूय तत्थ खंतस्स (गमो)। वहपरिणय खंतऽज्झत्थ(प्पाह) णं व णाए कए जुदं ॥३॥ जामाइपुत्तपइमारणं च केण कहियंति जणवाओ। जामाइपुत्तपइमारएण खंतेण मे सिटुं ॥४॥ नियमा निकालविसएऽवि निमित्ते छबिहे भवे दोसा। सजं तु वट्ठमाणे आउभए तत्थिमं नायं ॥५॥ लाभालाभं सुहं दुक्खं, जीवियं मरणं तहा। छविहेऽवि निमित्ते उ, दोसा होंति इमे सुण ॥५०॥ | आकंपिया निमित्तेण भोइणी भोइए चिरगयमि। पुवमणिए कहं ते आगउ ? रुट्ठो य बड(ल)वाए ॥६॥ दूराभोयण एगागि आगओ परिणयस्स पञ्चोणी। पुच्छा समणे कहणं साइयं
कालण दिडे जा नेव तो तुहं अवितह कइ वा ॥३४॥भा० जाई कल गण कम्मे सिप्पे आजीवणा उ पंचविहा। सूयाएँ असूयाएँ व अप्पाण कहेहि एकेके ॥७॥ जाईकुले विभासा गणो उमल्लाइ कम्म किसिमाई। तुण्णाइ सिप्पऽणावज्जगं च कम्मेयराऽऽवजं ॥८॥ होमायवितहकरणे नजइ जह सोत्तियस्स पुत्तोत्ति। वसिओ वेस गुरुकुले आयरियगुणे व सूएइ ॥९॥ सम्ममसम्मा किरिया अणेण ऊणाऽहिया व विवरीया। समिहामंताहुइठाण जागकाले य घोसाई ॥४४०॥ उम्गाइकुलेसुवि एवमेव गणमंडलप्पवेसाई । देउलदरिसणभासाउवणयणे दंडमाईया ॥१॥ कत्तरिपओअणावेक्खवत्थुबहुवित्थरेसु एमेव। कम्मेसु व सिप्पेसुय सम्ममसम्मे सूईयरा ॥२॥ समणे माहणि किवणे अतिही साणे य होइ पंचमए। वणि जायणत्ति वणिओ पायप्पाणं वणेइति ॥३॥ मयमाइवच्छगंपिव वणेइ आहारमाइलोभेणं । समणेसु माहणेसु य किविणाऽतिहिसाणभत्तेसु ॥४॥ निग्गंध सक तावस गेरुय आजीव पंचहा समणा । तेसि परिवेसणाए लोभेण वणिज को अप्प ? ॥५॥ भुंजंति चित्तकम्मट्ठिया व कारुणिय दाणरुइणो य । अवि कामगद्दभेसुवि न नस्सई किं पुण जईसु?॥६॥ मिच्छत्तथिरीकरणं उग्गमदोसा य तेसु वा गच्छे। चडुकारऽदिन्नदाणा पचत्थिग मा पुणो इंतु ॥७॥ लोयाणुग्गहकारिसु भूमीदेवेसु बहुफलं दाणं । अवि नाम बंभचंधुसु किं पुण छक्कम्मनिरएसु ? ॥८॥ किवणेसु दुम्मणे(न्चले)सु य अचंधवायंकजुंगियंगसुं। पूयाहिज्जे लोए दाणपड़ागं हरह दितो ॥९॥ पाएण देइ लोगो उवगारिसु परिचिएसु मुसिएसु । जो पुण अदाखिन्नं अतिहिं पूएइ तं दाणं ॥ ४५०॥ अवि नाम होज सुलभो गोणाईणं तणाइ आहारो। छिच्छिक्कारयाणं न हु सुलहो होइ सुणहा(गाणं ॥१॥ केलासभवणा एए, आगया गुज्झगा महिं । चरंति जक्वरूवेणं, पुयाऽपूया हियाऽहिया ॥२॥ एएण मज्झ भावो दिट्ठो लोए पणामहे - जंमि। एकेके पुजुत्ता भदगपंताइणो दोसा ॥३॥ एमेव कागमाई साणग्गहणेण सूइया होति। जो वा जमि पसत्तो वणइ तहिं पुट्टपुट्ठो वा ॥४॥ दाणं न होइ अफलं पत्तमपत्तेसु सन्निजुर्जतं । इय विभणिएऽवि दोसा पसंसओ किं पुण अपत्ते? ॥५॥ भणइ य नाहं वेजो अहवाऽवि कहेड अप्पणो किरिय। अहवापि विजयाए तिविह तिगिच्छा मुणेयवा ॥६॥ भिक्खाइ गओ रोगी किं विजोऽहंति पुच्छिओ भणइ। अस्थावत्तीएँ कया अबुहार्ण बोहणा एवं ॥७॥ एरिसयं चिय (वा) दुक्खं भेसजेण अमुगेण पउणं मे। सहसुप्पन्न व रुयं वारेमो अट्ठमाईहिं ॥८॥ संसोधण संसमणं नियाणपरिवजणं च जं तत्थ। आगंतु घाउखोभे य आमए कुणइ किरियं तु ॥९॥ अस्संजमजोगाणं पसंपूर्ण कायपाय अयगोलो। दुबलवण्या१२६५ पिंडनियुक्तिः -
मुनि दीपरत्नसागर
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