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श्रमण-संस्कृति घड़ा रखे हुये नारी, चित्रलता आदि), चतुष्पद पंक्ति (सिंह, वृषभ, गज, अश्व, चतुप्पद पंती), हंस पंक्ति (हंस पन्ती), मोती और छोटी घंटियों के बने हुये जालक (मुत्ताकिंकिणिक जालक), सुवर्ण निर्मित घंटियों की पंक्ति (सुवण्णघण्टा पन्ती), मालाएँ (दामानि), मोतियों की मालाओं के लटके (मुत्तादामकलापक), सूर्य, चन्द्रमा और तारों की आकृति के फुल्ले (रविचन्दतार रूप पदुमक), वस्त्रों की ध्वजाएँ, नाना प्रकार के रत्नों की वेदिका (नानारतनवेदिका), पूर्णघट या मंगल-कलशों की पंक्तियाँ (पुण्णधट पंती), हाथ जोड़े हुये अंजलि मुद्रा में देवता (अंजलिपग्गहा देवा), जलपूर्ण घट लिये हुये देवता (पुप्फपुण्णघटा), नाचते-गाते नर्तक देवता (नचक्का देवता), तूर्यवादक देवता (तुरियवादक देवता), दर्पण हाथ में लिये देवता (आदासगाहका देवा), पुष्पशाखाधारी देवता (पुष्फसाखाधरा देवा), कमलपुष्प हाथ में लिये देवता (पदुमादिक गाहका देवा), रत्न-मालाओं की पंक्तियाँ (रतनग्घिय पंती), धर्मचक्रों की पंक्तियाँ (धम्मचक्क पंती), खड्गधारी देव पंक्ति (खग्गधरा देव पंती), पात्रधारी देवताओं की पंक्ति (पातिधरा देव पंती) और भी अनेक प्रकार के दिव्य अभिप्राय और देवता (अंजे देवा च नेकधा) अनेक जातक कथाएँ और बुद्ध के जीवन-दृश्य भी स्तूपों पर अंकित कये जाते थे। महाब्रह्मा, शक्र, वीणाधारी पंचशिख, अप्सराओं के साथ सहस्त्रभुजी देवकुमारियाँ या देवकन्याएँ (द्वातिंसा च कुमारियों), अष्टाविशति यक्षराज (यक्ख सेनापति अट्ठवीसति) आदि की आकृतियों का उत्कीर्णन किया जाता था। महावंस में बुद्ध के जीवन-लीला की घटनाओं के उत्कीर्णन का भी उल्लेख प्राप्त होता है। वेस्संतर जातक की कथा का सविस्तार अंकन मिलता है। वेदिका और स्तूप के शिल्प पर अन्य जातक कथाओं को भी स्थान दिया गया था। वासुदेव शरण अग्रवाल का मानना है कि कुषाण युग के बाद के स्तूपों में बुद्ध के अनेक जीवन-दृश्य भी उत्कीर्ण किये गये जब उन्होंने तुषित देवों के स्वर्ग में रहते हुए पृथ्वी पर जन्म लेने का निश्चय किया और जब बोधिमण्ड पर विराजमान होकर मारघर्षण किया और तद्नन्तर धर्मचक्रप्रवर्तन कर वे निर्वाण को प्राप्त हुये।
इन विवरणों से स्पष्ट है कि बौद्ध धर्मानुयायियों के लिये महास्तूप का निर्माण एक महत्वपूर्ण धार्मिक कर्म था। वासुदेव शरण अग्रवाल ने यह