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बौद्ध विश्वविद्यालय नालन्दा का
व्यवस्थापन
शैलजा सिंह एवं जय प्रकाश मणि
भारत के सभी शिक्षा केन्द्रों का सबसे बड़ा केन्द्र नालन्दा महाविहार था जो उस युग का विश्व का सर्वश्रेष्ठ अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विश्वविद्यालय था।' प्राचीन भारत के ज्ञान-विज्ञान का यह केन्द्र भारत ही नहीं वरन् उसकी प्रसिद्धि का विस्तार विदेशों में भी हुआ था । दूर-दूर देशों के विद्वान एवं जिज्ञासु अपनी ज्ञान पिपासा शान्त करने के लिये शिक्षा के इस महान केन्द्र में उपस्थित होने के लिए उत्सुक रहते थे और विभिन्न क्रियाओं में पारंगत होकर
थे । आधुनिक बिहार राज्य में पाटलीपुत्र (पटना) से 55 मील दक्षिण - पूर्व तथा राजगृह से 7 मील उत्तर की ओर प्राचीन नालन्दा अपने विगत वैभव के खण्डहरों के रूप में प्रकृतिस्थ हैं । प्रारम्भ में नालन्दा एक छोटे से गांव पुष्कर्णी के तट पर स्थित था। डॉ० अल्तेकर का अनुमान है कि गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने इस विश्वविद्यालय की आधारशिला रखी थी।
नालन्दा विश्वविद्यालय का प्रबन्ध एवं व्यवस्थापन संघ द्वारा नियुक्त दो सभाओं के परामर्श से कुलपति अथवा अध्यक्ष द्वारा किया जाता था । अध्यक्ष और कुलपति समस्त भिक्षुओं द्वारा निर्वाचित किये जाते थे । इस पद के लिये वही भिक्षु योग्य समझे जाते थे, जिनका आचरण, विद्वता और अनुभव को संघ के सभी भिक्षु स्वीकार करते हों । व्यवस्था की दोनों परामर्शदात्री समितियों की कार्यप्रणाली अनुलिखित प्रकार की थी
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पहली समिति शिक्षा सम्बन्धी समस्त कार्यों में अध्यक्ष को उचित सलाह