Book Title: Aacharya Premsagar Chaturvedi Abhinandan Granth
Author(s): Ajaykumar Pandey
Publisher: Pratibha Prakashan

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Page 430
________________ 398 श्रमण-संस्कृति के नये भवनों को बनवाना, छात्रावासों में छात्रों के निवास को उचित व्यवस्था करना, प्राचीन भवनों की देख-रेख करना तथा भिक्षुओं के वस्त्र और पाठ्यसामग्री के व्यवस्था का भार इस समिति पर ही था। विश्वविद्यालयों में संघ द्वारा निर्वाचित भिक्षु भिन्न-भिन्न विभागों के अध्यक्ष होते थे और विश्वविद्यालय के समस्त कार्य इन्हीं विभागाध्यक्षों के संरक्षण में ही सम्पन्न होते थे। छात्रों के भी अपने संघ थे। अपराधी छात्रों के दण्ड की व्यवस्था विद्यार्थियों के संघ द्वारा ही होती थी। छात्रावास में भी अपने विभागाध्यक्ष के द्वारा निर्देशित छात्र ही स्वयं सब प्रबन्ध करते थे जिनके सम्पादन द्वारा छात्रों में स्वावलम्बन की वृद्धि हो। इस प्रकार विश्वविद्यालय का सारा प्रबन्ध, जनतंत्रात्मक प्रणाली के अन्तर्गत होता था। नालंदा विश्वविद्यालय लगभग 1200 ई० तक विद्यमान रहा। आठवीं शताब्दी के एक अभिलेख प्रमाण से यह ज्ञात होता है कि विश्वविद्यालय अपने शिक्षा व्यवस्था के अध्ययन-अध्यापन में श्रेष्ठ था।' जावा एवं सुमात्रा के नरेश बलपुत्र देव ने इसकी प्रसिद्धि से आकर्षित होकर यहाँ एक मठ का निर्माण कराया और अपने मित्र बंगाल के राजा देवपाल से निवेदन किया कि मेरी ओर से नालंदा विश्वविद्यालय को आर्थिक सहायता के रूप में पांच गांव दान में दे दिये जायें। इस अनुदान का एक अंग विश्वविद्यालय पुस्तकालय से पुस्तकों की प्रतिलिपि करने के प्रयोजन से सुरक्षित कर दी गयी थी।" इस विश्वविख्यात विश्वविद्यालय का विध्वंस मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी द्वारा तेरहवीं शताब्दी में किया गया। सभी विद्यार्थियों एवं भिक्षुओं की हत्या कर सम्पूर्ण विश्वविद्यालय को अग्नि लपटों में विध्वंस किया गया।2 ___ संदर्भ 1. वी० एन० पुनिया, भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का विकास, पृ० 472। 2. तक्कुसु, इत्सिंग्स रेकार्ड ऑफ द बुद्धिस्ट रेलीजन, पृ० 14। 3. डॉ० सरयुप्रसाद चौबे - भारत में शिक्षा पृ० 124। 4. डॉ० ए० एस० अल्तेकर - एजूकेशन इन एन्सिएन्ट इण्डिया, नंद किशोर एवं ब्रदर्श वाराणसी - 19571 5. एस० के० मुखर्जी - लाइब्रेरियनशिप - इंदस फिलासिफी एण्ड हिस्ट्री, पृ० 94 । 6. डॉ० ए० एस० अल्तेकर, एजूकेशन इन एन्सिएन्ट इण्डिया, पृ० 123 ।

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