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69 श्रावस्ती पर बौद्ध धर्म का स्वर्णिम प्रभाव
अमरेश कुमार यादव एवं रीतेश यादव
भगवान बुद्ध की जन्मस्थली (लुम्बिनी) परिनिर्वाण स्थली (कुशीनगर) एवं कर्मस्थली के केन्द्र बिंदु में अवस्थित स्थल श्रावस्ती महान कोशल राजवंश की राजधानी थी। अंगुत्तर निकाय में कौशल की गणना छठी सदी ई० पू० के सोलह महाजनपदों में की गयी है। सरयू-अचिरावती सरिता की अंतर्वेदी में अवस्थित श्रावस्ती के पुरावशेष सहेत (जेतवन) तथा महेत (श्रावस्ती नगर) स्थलों से प्राप्त हुये हैं। श्रावस्ती मुख्य भूमि उत्तर-पूर्वी गोलार्द्ध में 27° 31' उत्तरी अक्षांश और 82° 1' पूर्वी देशांतर पर स्थित है। बौद्ध स्रोतों में श्रावस्ती का नामकरण मुनि श्रावस्ता के नाम पर माना जाता है। श्रावस्ती के नामकरण सम्बन्धी और भी प्रसंग प्राप्त होते हैं, जिन्हें लेकर विद्वानों में मतभिन्नता है। श्रावस्ती के चहुंमुखी उन्नयन में जिस एक तत्त्व का सर्वाधिक योगदान था वह था बौद्ध धर्म।
बौद्ध साहित्य के अनुशीलन से ज्ञात होता है कि श्रावस्ती भगवान बुद्ध की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था। महात्मा बुद्ध ने 21वें से 45वां वर्षावास श्रावस्ती में ही व्यतीत किया था। बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से भी श्रावस्ती का महत्वपूर्ण स्थान था। भगवान बुद्ध ने प्रथम निकायों के 871 सुत्तों का उपदेश श्रावस्ती में दिया था, जिनमें 844 जेतवन में, 23 पुब्बारा में और 4 श्रावस्ती के आस-पास के अन्य स्थलों पर उपदिष्ट किये गये थे। श्रावस्ती में महात्मा बुद्ध के रहने के लिए जेतवन, पुब्बाराम विहार बनवाये गये। इन विहारों की तर्ज पर पूरे भारतवर्ष में विहार निर्माण किये जाने लगे जो स्थापत्यकला के स्तरोन्नयन और श्रावस्ती के विहारों के प्रभाव को स्थापित करते हैं। श्रावस्ती