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श्रमण-संस्कृति करना निश्चित रूप से एक क्रान्तिकारी कदम था। धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियों में उच्च वर्गों के समान सहभागिता की व्यवस्था ने सामाजार्थिक जड़ता को तोड़ते हुए एक नवीन गतिशीलता की स्थिति को उत्पन्न किया। ऐसी स्थिति में समाज का दलित वर्ग यदि अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुआ तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं।
संदर्भ
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कृते यः प्रतिकुर्वीत सोऽपि तावत् प्रशस्यते।
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