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महिलाओं के प्रति बुद्ध का दृष्टिकोण
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ऐसा प्रतीत होता है प्रारम्भ में बुद्ध बौद्ध संघ में महिलाओं के प्रवेश के प्रति उदासीन थे। इनकी विमाता महाप्रजापति गौतमी ने कपिलवस्तु में आकर एक भिक्षुणी के रूप में बौद्ध संघ में प्रवेश करने की अनुमति बुद्ध से मांगी तो बुद्ध ने इस माँग को अस्वीकार कर दिया । लेकिन कालान्तर में उन्हें अपने इस नियम में संशोधन करना पड़ा । वैशाली में जब बुद्ध रुके थे, तो महाप्रजापति गौतमी ने पुरुष वेष धारण करके, अपने साथ अनेक शाक्य स्त्रियों को लेकर रोती हुई, भगवान बुद्ध से संघ में प्रवेश की अनुमति मांगी। बुद्ध ने अपनी प्रिय शिष्य आनन्द की सिफारिश पर, उन्हें बौद्ध संघ में प्रवेश की अनुमति तो दी, पर साथ ही साथ आठ ऐसे कठोर प्रतिबंध भी आरोपित कर दिये जिससे स्त्रियों का संघ जीवन काफी कष्टदायक हो गया और उनका स्थान भी निम्नतम हो गया। इस आठ नियमों में एक यह भी था कि - 'सौ वर्ष की भिक्षुणी को पहले भिक्षु की अभ्यर्थना' करनी पड़ती थी, उसके सम्मुख आसन रिक्त करके खड़ा हो जाना पड़ता था, और करबद्ध प्रार्थना करनी पड़ती थी, चाहे भिक्षु केवल एक दिन का ही दीक्षित क्यों न हुआ हो । पुनः भिक्षुणियां, भिक्षुओं के पास जाकर वार्तालाप नहीं कर सकती थी। ये सभी दृष्टान्त हमारे समक्ष कई प्रश्न उत्पन्न कर देते हैं।
महिलाओं के प्रति भगवान बुद्ध का यह वक्तव्य भी कई भ्रान्तियों को जन्म देता है, उन्होंने अपने शिष्य आनन्द से कहा 'पर अब जब स्त्रियों का संघ में प्रवेश हो गया है, आनन्द ! धर्म चिरस्थायी नहीं रह सकेगा । जिस प्रकार ऐसे घरों में जिनमें अधिक स्त्रियां और कम पुरुष होते हैं, चोरी विशेष रूप से होती है, कुछ इसी प्रकार की अवस्था उस सूत्र और विनय की समझनी चाहिये जिसमें स्त्रियां घर का परित्याग करके गृह विहीन जीवन में प्रवेश करने लग जाती है। धर्म चिरस्थायी नहीं रह सकेगा .... .. फिर भी आनन्द ! मनुष्य जैसे भविष्य को छोड़कर जलाशय के लिए बांध बनवा देता है, जिससे जल बाहर न बहने लगे, उसी प्रकार आनन्द भावी (भविष्य) के लिए मैंने आठ नियम बना दिये हैं, जिनका पालन भिक्षुणियों के लिए अनिवार्य है, जबतक धर्म है, उन नियमों के पालन में प्रमाद नहीं होना चाहिये ।"
बुद्ध के प्रिय शिष्य बौद्ध संघ में स्त्रियों के प्रवेश के प्रबल समर्थक थे ।