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बौद्ध धर्म में चार आर्य सत्यों का चिकित्सा विज्ञान से सम्बन्ध
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कारणों क्रमश: अविद्या, तृष्णा और कर्म का निरोध मार्ग इन्हीं के अनुसार होना चाहिये । शील अर्थात् अहिंसा, मैत्री, करुणा और नैतिक आचरणों से कर्म नियन्त्रित होता है, समाधि अर्थात् मन की एकाग्रता से चित्त एकाग्र होता है और इसका परिणाम यह होता है कि तृष्णा समाप्त हो जाती है। एकाग्रचित्त में प्रज्ञा अथवा अलौकिक ज्ञान की आभा प्रस्फुटि होती है। जिससे अन्धकार स्वरूपा अविद्या तिरोहित हो जाती है और तत्पश्चात् चरम लक्ष्य निर्वाण की प्राप्ति होती है।
सन्दर्भ
1. डॉ० ए० के० कुमारस्वामी, बुद्धा एण्ड दि गास्पल ऑफ बुद्धिज्म, पृ० 81 ।
2. संयुक्तनिकाय, धम्म चक्कपवत्तन सुत्त 2/91
3. दि स्टडी इन दि ओरिजिन ऑफ बुद्धिज्म, पृ० 400 1
4. दि स्टडी इन दि ओरिजिन ऑफ बुद्धिज्म, पृ० 434-35।
5. संयुक्तनिकाय, धम्म चक्कप्रवतन सुत्त |
6. प्राचीन भारतीय धर्मः (अभिनव सत्यदेव, डॉ० बांके बिहारीमणि त्रिपाठी), पृ० 80 धम्मचक्कपत्तन सुत्त ।
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