Book Title: Shrutsagar Ank 2012 06 017
Author(s): Mukeshbhai N Shah and Others
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Catalog link: https://jainqq.org/explore/525267/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर १५ जून, २०१२ वि. सं. २०६८ ज्येष्ठ कृष्ण-११ अंक-१७ प्रकाशक आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर ३८२००७ फोन नं. (०७९) २३२७६२०४, २०५, २५२, फेक्स (०७९) २३२७६२४९ welsite : www.kobatirth.org, email: gyanmandir@kobatirth.org For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म-कला एवं श्रुतज्ञानमय त्रितीर्थिरूप तीर्थक्षेत्र श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में परमपूज्य राष्ट्रसंत युगप्रभावक आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहब के मंगलमय चातुर्मास प्रवेश प्रसंग पर श्री सकल संघ निमन्त्रण पत्र प. पू. जापमग्न आचार्य श्री अमृतसागरसूरीश्वरजी म. सा. प. पू. राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. प. पू. ज्योतिर्विद् आचार्य श्री अरुणोदयसागरसूरीश्वरजी म. सा. आपको यह जानकर अपार हर्ष होगा कि विगत ३ वर्षों के बाद परम पूज्य राष्ट्रसंत, श्रुतोद्धारक, व्याख्यानवाचस्पति, सुमधुरभाषी, आचार्यदेवेश श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. कोबा ट्रस्टबोर्ड का नम्र निवेदन स्वीकार कर अपने शिष्य परिवार सहित वि.सं.२०६८ के आषाढ शुक्ल द्वितीया गुरुवार दिनांक २१ जून, २०१२ को यहाँ पधार रहे हैं. निश्चय ही हमारे पुण्य के प्रबल योग से गुरुभगवंत की निश्रा में चातुर्मासिक आराधना के अवसर हमें प्राप्त हो रहे हैं. गुरुभगवंत का प्रत्येक चातुर्मास एक उल्लेखनीय, बहूद्देशीय, जिनशासनसेवा, मानवकल्याण, अद्भुत जिनभक्ति, अनेक जटिल समस्याओं के निराकरण के साथ पूर्ण होता है. यही कारण है कि श्रीसंघ के कल्याण हेतु, सुंदर मार्गदर्शन के लिये, तीर्थविकास के लिये, श्रुतसंरक्षण के लिये देश के विविध क्षेत्रों के श्रीसंघ अपने यहाँ चातुर्मास करने हेतु विनयावनत रहते हैं. गुरुदेव की दूरदर्शिता बड़ी ही अनोखी है.पद्मसदृश इनका मुखपद्म दर्शनार्थियों के हृदय को आह्लादित कर देता है. इनके दर्शन पाते ही अंतस्तल में निजत्व का भाव अंकुरित होता है. इनकी कृपादृष्टि बड़ी ही निराली है. भवभीतिग्रस्त अनेक आत्माओं को आत्मकल्याण का मार्ग दिखाकर संयमानरागी बनाते रहे हैं. इनके शिष्य-प्रशिष्य भी इनसे गहसदश ही स्नेह प्राप्त करते हैं. यही कारण है कि इनके चरणानुगामी शिष्य बहुमुखी प्रतिभा के धनी बनकर अलग-अलग क्षेत्रों में इनके उज्ज्वल यश में चार चाँद लगा रहे है. - तो आइए! ऐसे गुरुवर के सान्निध्य का महत्तम लाभ उठाकर अपने भाग्य को सराहें तथा चातुर्मास पर्यन्त मानवकल्याणनिहित आचार्यश्री के सुमधुर रविवारीय व्याख्यानश्रवण का पावन लाभ लें. विनयावनत प्रमुखश्री एवं ट्रस्टीगण 0 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा, गांधीनगर LOO For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर का मुखपत्र * आशीर्वाद राष्ट्रसंत प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. * संपादक मंडल मुकेशभाई एन. शाह बी. विजय जैन कनुभाई एल. शाह डॉ. हेमंत कुमार केतन डी. शाह सहायक विनय महेता हिरेन दोशी * प्रकाशक * आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा, गांधीनगर-३८२००७ फोन नं. (०७९) २३२७६२०४, २०५, २५२ फेक्स : (०७९) २३२७६२४९ website : www.kobatirth.org - email: gyanmandir@kobatirth.org अंक नं. : १७, १७ जून, २०११, वि. सं. २०६८, ज्येष्ठ कृष्ण " * अंक-प्रकाशन सौजन्य * संघवी श्री प्रकाशभाई मिश्रीमलजी नथमलजी परिवार (नैनावा निवासी) रत्नमणी मेटल्स एन्ड ट्युब्स लि. - अहमदाबाद. For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जून २०१२ (संपादक गण के श्रद्धा सुमन जिनशासन के समर्थ उन्नायक राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज का आगामी चातुर्मास कोबातीर्थ पर होना तय हुआ है, जो कोबातीर्थ ट्रस्टमंडल, संचालक एवं समस्त जैन समाज के लिये आनन्द और गौरव की बात है. तीन वर्ष के बाद पूज्य आचार्यश्री का कोबातीर्थ पर आगमन होने से यहाँ का कण-कण रोमांचित हो रहा है. विक्रम संवत २०६८, आषाद शुक्ल द्वितीया, दिनांक २१/०६/२०१२ गुरुवार के दिन पूज्यश्री का चातुर्मास || प्रवेशोत्सव होगा, इस अवसर पर पूज्य श्री के स्वागतार्थ विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है. मुम्बई महानगरी स्थित श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जैन मंदिर की ऐतिहासिक द्विशताब्दी महोत्सव के प्रसंग पर पूज्य आचार्य भगवंत ने शासन प्रभावना पूर्ण चातुर्मास किया एवं समग्र महोत्सव के आयोजन में निश्रा प्रदान की. द्विशताब्दी महोत्सव के स्मृतिरूप श्री गोडीजी मंदिर के द्वितीय तल पर प्रतिष्ठित मरकत रत्न की नीलवर्णी नवग्रह पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा की अंजनशलाका व प्रतिष्ठाविधि पूज्यश्री के करकमलों द्वारा सम्पन्न हुई. पूज्यश्री की प्रेरणा से ध्वजारोहण के दिन मुम्बई महानगर के तमाम साधर्मिक बन्धुओं के लिये स्वामीवात्सल्य का भव्य आयोजन किया गया था. श्री गोडीजी पार्श्वनाथ जैन मंदिर के द्विशताब्दी महोत्सव के ऐतिहासिक प्रसंग पर पूज्यश्री की निश्रा में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा की ओर से श्रुतभक्ति का कार्यक्रम आयोजित किया गया था. इस मंगलमय अवसर पर ज्ञानमंदिर कोबा द्वारा प्रकाशित कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची खंड ९ से १२ श्रीसंघ को समर्पित किया गया. श्रुतभक्ति के महामहोत्सव में श्रेष्ठियो, विद्वानों, संशोधकों, श्रुतभक्तों एवं नगरजनों का विशाल समुह उपस्थित रहा. पूज्य आचार्य भगवंत की प्रेरणा से अनेक जिनालयों, आराधना भवनों, धर्मशालाओं का निर्माण हो चुका है और हो रहा है, इन सब के बीच पूज्यश्री का जो स्वप्नशील्प है उस भूमि पर उनका आगमन यानी श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र में नवउत्साह का संचरण! इस केन्द्र के द्वारा संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा में विवध बेशकिमती एवं अतिप्राचीन, समृद्ध हस्तप्रतों एवं मुद्रित पुस्तकों का विशाल संग्रह है. पूज्य श्रमणश्रमणी भगवंत, भारतीय धर्म-दर्शन एवं साहित्य कि परंपरा के आरूढ विद्वान, संशोधक, विद्यार्थी या सामान्य वाचकों की मुक्त कंठ से हो रही प्रशंसा ही इस संग्रह की अपने आप में अनुपम उपलब्धि है. इस संस्था के सर्जन एवं बहुमुखी विकास यात्रा में पूज्य आचार्य भगवंत की दीर्घदृष्टि है एवं उनके अनेक विद्वान व समर्पित शिष्यगण का अविस्मरणीय योगदान है. इस समग्र आयोजन में अत्यंत पैनी दृष्टी एवं बहुग्राही प्रतिभा का श्रेय पूज्य पंन्यास श्री अजयसागरजी म. सा. को है. समग्र चतुर्विध संघ के लिए यह संस्था सदैव सेवारत है. यह और ही महत्वपूर्ण समय है जब हम सबको इस संस्था के स्वप्नशिल्पी आचार्य भगवंत का पुनः दीर्घ संन्निधान प्राप्त हो रहा है. हम आप सभी को भी इस पुनित वेला में हर प्रसंग, हर आयोजन एवं हर कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए अंतःकरण से आमंत्रित करते हैं. पूज्य झानी आचार्य भगवंत का सानिध्य यानी अपने-आप में उजालों का एक ऐसा संचार जो तन-मन और समग्र जीवन को पुलकित करता है... अनुक्रम लेख लेखक १. संपादक गण के श्रद्धा सुमन २. भगवान महावीर के भक्त १० श्रावक रामप्रकाश झा ૩. શ્રી હેમચંદ્રાચાર્ય જૈન જ્ઞાનભંડાર પાટણનો આછો પરિચય સંકલિત ४. संवेदनासभर प्रार्थनाएँ भद्रबाहु विजय ५. पद्मावती स्तोत्र नवीनभाई वी. जैन ६. समाचार सार संकलित و به سه م م ه ما For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वि.सं.२०६८-ज्येष्ठ भगवान महावीर के भक्त १० श्रावक संकलन: रामप्रकाश झा शासननायक श्री महावीरस्वामी के श्रावक समुदाय में आणंद, कामदेव, चुलणीपिता, सुरादेव, चुल्लगशतक, कुंडसोलिक, सद्दालपुत्र, महाशतक, नंदिनीप्रिय एवं तेतलीपिता इन दस श्रावकों को मुख्य गिना गया है. श्रमण भगवान महावीरस्वामी ने स्वयं इनकी धर्मभावना और अटूट श्रद्धाभक्ति की खूब अनुमोदना की है. इन श्रावकों ने अपनी मेहनत से संपत्ति बढ़ाई थी तथा खेती, व्यवसाय, उद्योग आदि कार्य करते हए अपना जीवन यापन करते थे. समय आने पर इन श्रावकों ने धन-दौलत का मोह छोड़ दिया और आत्मकल्याण में लग गए. अनेक संकट उपस्थित होने पर भी वे धर्ममार्ग से विचलित नहीं हुए और यत्किंचित् विचलित हुए भी तो उन्होंने प्रायश्चित करके अपने पाप को भस्म कर दिया. वैभवशाली होते हुए भी कमल की भाँति उससे यथाशक्य निर्लिप्त होकर धर्मानुरागी बनकर यथाशक्ति संयमी जीवन व्यतीत करते हुए अंत काल तक पवित्र जीवन निर्वाह किया. शास्त्रों में आत्मोत्थान के लिये प्रशस्त दो मार्ग बतलाया गया है. १ श्रमणमार्ग व २ श्रावकमार्ग, जो श्रमणमार्ग पर नहीं चल सकते उन्हें इन श्रावकों की तरह पवित्र जीवन निर्वाह करने का प्रयत्न अवश्य करना चाहिए. विभु वीर के ये दस श्रावक इतिहास में अपना अमिट छाप छोड़ गये एवं श्रावकों के लिये आदर्शपात्र बने. हमें भी इन दस श्रावकों के जीवन से अवश्य कुछ सीख लेनी चाहिये इस हेतु इस लेख का अवलोकन एक बार जरूर करना चाहिये. १. श्री आनंद - आनंद वैशाली नगर के निकट वाणिज्यग्राम के निवासी थे. वाणिज्य व कृषिकार्य करते थे. उनके संचित कोष में करोड़ो स्वर्णमुद्राएँ थीं. हजारों गायों के गोकुल थे. अपने मानवीय गुणों के कारण वह अपनी प्रजा के लिए एक आदर्शपरुष थे. उनकी धर्मपत्नी शिवानन्दा उनके प्रति अगाध श्रद्धा रखती थी. भगवान महावीर में अत्यधिक श्रद्धा-भक्ति होने के कारण वे राजमहल से पैदल चलकर भगवान के समवसरण में पहुँचे तथा भगवान की देशना सुनकर श्रावक के करने योग्य पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत तथा चार शिक्षाव्रत इस प्रकार बारह व्रत धारण किया. स्वयं धर्म करते हुए दूसरों को भी धर्म के प्रति प्रेरित करना उनका परम कर्त्तव्य था. जीवन के अन्तिम समय में परिवारजनों से आज्ञा लेकर कोल्लाग-सन्निवेश में स्थित पौषधशाला में रहने लगे. वहाँ सूत्र, कल्प, मार्ग तथा तत्त्व के अनुसार श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं की साधना करने लगे. इस साधना के कारण उनका शरीर अत्यन्त कृश हो गया. अन्त में उन्होंने संथारा-संलेखना व्रत धारण किया. इन्हीं दिनों उन्हें अवधिज्ञान की प्राप्ति हुई.गणधर गौतम को जब यह पता चला तो उन्हें विश्वास नहीं हआ कि उन्हें अवधिज्ञान प्राप्त हआ है. उन्होंने अपनी जिज्ञासा भगवान महावीर के समक्ष प्रस्तत की. परन्त उनकी ओर से समाधान हो जाने से उन्हें अपनी भूल के प्रति पश्चाताप हुआ. उन्होंने आनन्द से अपने कृत्य के लिए क्षमायाचना की. निरहंकारी आनन्द ने शुद्ध भावों में रमण करते हुए देह त्याग दिया तथा प्रथम देवलोक में महान ऋद्धिवाला देव बने. २. श्री कामदेव - कामदेव श्रावक चंपा नगरी के निवासी थे. उनकी स्त्री का नाम भद्रा था. वे भी आनंद श्रावक के समान अपने निजी उद्योग से उन्नति प्राप्त किये थे. उनका वैभव आनंद से भी अधिक था. उन्होंने भी आनंद के समान ही महावीर प्रभु के उपदेश से व्रत ग्रहण किया था और वर्षों तक सच्चे हृदय से उसका पालन किया था. उनकी स्त्री भद्रा ने भी व्रत ग्रहण किया था और वह भी भली भांति उसका पालन करती थी. उन्होंने भी कुछ वर्ष पश्चात् एकान्त जीवन बिताना आरंभ किया था. उस समय उनकी एक कठिन परीक्षा हुई. वे एक दिन रात को ध्यान लगाए खड़े थे कि उनके पास एक देव, पिशाच का रूप धारण करके आया. उसके कान सूप के समान, दाँत दांती के समान, जिह्वा तलवार जैसी, नथुने बड़े चूल्हे के समान, सिर हाथी जैसा बड़ा, आँखें विकराल और शरीर के बाल तलवार के समान थे. For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४ www.kobatirth.org जून २०१२ उसने आकर बड़े भयंकर स्वर में कहा 'कामदेव ! किस धुन में है. यह व्रत और प्रतिज्ञाएं छोड़ दे, इस एकान्त जीवन से दूर हट, नहीं तो याद रख, बस तेरे जीवन का अन्त ही आ गया है. परंतु कामदेव पर उसकी धमकी का तनिक भी प्रभाव न पड़ा. वह तो अपने ध्यान में मग्न रहा. उस देव ने और भी अनेक भयंकर रूप धारण करके कामदेव को डराया. परंतु वह कहाँ डिगने वाला था ? अन्ततः देव ने हार मान ली और कामदेव की प्रशंसा करके क्षमा मांगी. प्रभु महावीर ने भी कामदेव के धैर्य की प्रशंसा की और अन्य को भी उससे शिक्षा लेने का उपदेश दिया. जिसकी प्रशंसा स्वयं प्रभु ने की हो उसका चारित्र कितना उत्तम होगा ? ३. चुल्लणी पिता चुल्लणी पिता वाराणसी के निवासी थे. दे कामदेव से भी अधिक सम्पत्तिशाली थे. प्रभु महावीर का उपदेश सुनकर वे और उनकी स्त्री श्यामा आनंद श्रावक के समान व्रतधारी होकर पवित्र जीवन बिताते थे. अंतिम अवस्था में वे एकान्त जीवन व्यतीत करते थे. धर्म ध्यान करते हुए कामदेव के समान उन्हें भी कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ा था. वे एक दिन ध्यानावस्थित खड़े थे. उसी समय एक भयंकर मूर्ति उनके सामने आकर खड़ी हुई और नंगी तलवार हाथ में लेकर भयानक आवाज में बोली- बस रहने दे इस धर्म के ढोंग को. मूर्ख, यह ढोंग छोड़, नहीं तो तेरे बड़े पुत्र को मारकर उसका खून तुझ पर छिड़कूंगा. यह धमकी पत्थर हृदय को भी पिघला देनेवाली थी. परंतु चुल्लणी पिता उससे नहीं डरे, ये अडिग रहे. यह देखकर उस मूर्ति ने फिर दाँत पीसकर कहा- 'अच्छा, मेरा कहा नहीं माना? तब देख, अभी तेरे पुत्र का खून करता हूँ. यह कहकर उसने चुल्लणी पिता के बड़े पुत्र को उसके सामने लाकर मार डाला. इसके बाद दूसरे पुत्र को भी मारने की धमकी दी. परंतु चुल्लणी पिता अब भी न डिगे. तब उसने दूसरे पुत्र को भी मार दिया. इसी प्रकार उसने चार पुत्रों का खून किया और अन्त में कहा- 'अच्छा, अब भी नहीं मानता तो तेरी माता का भी यही हाल होगा.' यह सुनकर चुल्लणी पिता का धैर्य टूट गया. अब उनसे न रहा गया. उन्होंने सोचा- 'यह कितना दुष्ट है! मेरे चार पुत्रों का तो खून कर दिया अब पूज्य माताजी को भी मारना चाहता है. यह तो मैं नहीं देख सकता. यह सोचकर वे उसे पकड़ने दौड़े. परन्तु वहाँ न कोई मारने वाला था. न पुत्र. वे एक खम्भे से टकरा गए. उनकी माता की आँखें खुल गई. उन्होंने उनके पास आकर कहा- 'क्यों, बेटा ! इतनी रात गए यहाँ क्या करते हो ?' उन्होंने अपनी माता से सब हाल कह सुनाया. माता ने उन्हें विश्वास दिलाया कि यह निस्सन्देह देव-माया ही थी. घर में सब कुशलपूर्वक सो रहे हैं. उन्होंने कहा 'बेटा, चाहे जो हो धर्म से विचलित न होना चाहिए. यह तुम्हारी निर्बलता ही है. उसका प्रायश्चित करना चाहिए: · - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चुल्लणी पिता ने अपनी भूल का प्रायश्चित्त किया और भविष्य में ऐसी भूल न करने की प्रतिज्ञा कर अत्यन्त पवित्र जीवन बिताने लगे. अन्त में अनशन करके देवगति को प्राप्त हुए. धन्य है ऐसी महान आत्मा. ४. सुरादेव सुरादेव वाराणसी निवासी एक धनाढ्य पुरुष थे. उनकी स्त्री का नाम धन्ना था. उन्होंने अपने परिश्रम से उन्नति की थी और कामदेव के समान धनाढ्य हो गए थे. वे बड़ी उदारतापूर्वक दान देते थे, इससे उनकी कीर्ति सर्वत्र फैल गई थी. ये और उनकी स्त्री आनंद श्रावक की भाँति प्रभु महावीर के सत्संग से व्रतधारी हुए थे और यथाशक्ति पवित्र जीवन विताते थे. जब व्रत ग्रहण किये उन्हें एक वर्ष हो गए तो वे अपना अधिकांश समय धर्म-ध्यान में बिताने लगे. चुल्लणी पिता के समान ही सुरादेव को भी कठिन परीक्षा का सामना करना पड़ा था. एक रात जब वे ध्यानमग्न थे, तो एक भयंकर मूर्ति आई और उन्हें धर्म ध्यान छोड़ने की धमकी दिया, उनके पुत्रों को मार डालने का भय दिखलाया. परन्तु सुरादेव अचल रहे. तब उसने उनके चारों पुत्रों को मार डाला. इस पर भी वे न डिगे तो उसने उन्हें भयंकर रोग से पीड़ित करने की धमकी दी. अब सुरादेव से अधिक सहन न हो सका. वे उस दुष्ट को अधिक उत्पात करने से रोकने के लिए उसे पकड़ने को दौड़े. परंतु वह तो देवमाया थी. कोलाहल सुनकर उनकी स्त्री जाग उठी जब उसने सब हाल सुना तो कहा- 'नाथ! पुत्र तो सब गहरी नींद में सो रहे हैं. आप देवमाया की जाल में आ गए. आपको इसका प्रायश्चित्त करना चाहिए.' सुरादेव ने प्रायश्चित For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org वि.सं. २०६८ - ज्येष्ठ ५ किया और फिर पवित्र जीवन बिताने लगे. अन्त में अनशन करके देहत्याग किया. इतने वैभव में भी इतनी पवित्रता ! यह कोई साधारण बात नहीं है. . ५. चुल्लग शतक आलंभिका नामक नगर में एक चुल्लग शतक नामक सेठ रहते थे जो अठारह करोड़ स्वर्णमुद्राओं के मालिक थे तथा आठ हजार गायों के स्वामी थे. उनकी स्त्री का नाम बहुला था. आनंद और कामदेव के समान उन्हें भी प्रभु महावीर का पवित्र उपदेश सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. उन्होंने भी पवित्र जीवन बिताने का व्रत लिया था और वे अपनी प्रतिज्ञा का पालन सावधानीपूर्वक करते थे. अंतिम अवस्था में उन्हें भी सुरादेव के समान कड़ी परीक्षा देनी पड़ी थी. वे पुत्रों की मृत्यु को देखकर तो विचलित नहीं हुए, परंतु जब उन्हें धन नष्ट करके भिखारी बना देने की धमकी दी गई, तो वे डर गए. अन्त में जब पता चला कि यह सब देवमाया थी. इसके बाद भविष्य में अमय रहने का निश्चय किया अन्त समय तक उन्होंने पवित्र जीवन बिताकर आत्म-कल्याण किया. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६. कुंडकोलिक ये अत्यन्त सम्पत्तिशाली महापुरुष कांपिल्यपुर नगर के निवासी थे. उनकी पत्नी का नाम पूषा था. वह भी अत्यन्त दयावती और सद्गुण सम्पन्ना थी. उसने धर्मशिक्षा देनेवाली पाठशालाएँ स्थापित की थी और यथाशक्ति विद्या प्रचार के लिए प्रयत्न करती थी. इस दम्पति ने भी प्रभु महावीर के उपदेश से प्रभावित होकर आनंद के समान पवित्र जीवन बिताने का निश्चय किया था. एक बार मध्याहन के समय कुंडकोलिक उद्यान में गए वहाँ की प्राकृतिक शोभा देखकर उनका मन प्रफुल्लित और शांत हो गया. पास ही पड़ी हुई एक शिला पर उन्होंने अपना उत्तरासन रख दिया और हाथ में एक नामांकित अंगूठी थी वह भी निकालकर वहीं रख दी तथा आत्मध्यान में लीन हो गए. उस समय एक अद्भुत घटना घटित हुई. एक आकाश वाणी हुई कि कुंडकोलिक गोशालक की बात कितनी सच है. उसका सारांश यह है कि जो होना होता है वह होकर रहता है. अतएव जप-तप और परिश्रम करना व्यर्थ है. फिर तुम पुरुषार्थ क्यों करते हो ? क्यों तप में परिश्रम करते हो? इसकी क्या आवश्यकता है? इन सब बातों को छोड़कर गोशालक के मत को क्यों नहीं ग्रहण कर लेते? - यह सुनकर कुंडकोलिक ने कहा याह, यह भी कभी हो सकता है? तुम यह तो बतलाओ कि तुम देव कैसे बने, मेहनत करके या बिना मेहनत किए? संसार का कोई भी कार्य बिना परिश्रम के नहीं होता, प्रभु महावीर ने पुरुषार्थ का जो मार्ग बतलाया है वह बिलकुल ठीक है. इस प्रकार थोड़ी देर बाद विवाद होने के बाद पुनः आकाशवाणी हुई कि पुरुषार्थ में श्रद्धावान् कुंडकोलिक ! तुम धन्य हो यह कहकर आकाशवाणी पुना शान्त हो गई. स्वयं महावीर स्वामी ने भी कुंडकोलिक के अचल धर्मश्रद्धा की प्रशंसा की थी. अन्त में श्रावकों के समान उन्होंने भी अनशन करके प्राण त्याग किए थे. ७. सदालपुत्र प्रभु महावीर के उपदेश ने चारों वर्णों के मनुष्यों को संयमी जीवन बिताना सिखलाया था. राजा यह नहीं मानते थे कि कुछ विशिष्ट वर्ण के लोगों को ही धर्म पालन करने दिया जाय तथा शेष वर्ण के लोग उससे वंचित रहें, अथवा धर्मपालन का अधिकार पुरुषों को ही हो और स्त्रियाँ उससे अलग रहें. धर्म तो उसी का है जो उसका पालन करे संसार के सभी मनुष्यों को आत्म-कल्याण करने का अधिकार है. सद्दालपुत्र एक धनवान कुम्हार था. उसकी बर्तनों की पाँच सौ दुकाने थी और वह तीन करोड़ रुपये की सम्पत्ति का मालिक था. वह गोशालक के मत को मानता था. गोशालक का पक्का भक्त था, गोशालक का यह मत था कि संसार में सब कुछ स्वभाव से ही होता है, किसी कार्य के लिए भी परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है. एक बार सदालपुत्र को समाचार मिला कि कल अरिहंत भगवान् पधारेंगे. उसने समझा कि उसके गुरुदेव आनेवाले हैं, उसे इस समाचार से अत्यन्त हर्ष हुआ उसने गुरुदेव की प्रतीक्षा में रात बिता दी. दूसरे दिन प्रातःकाल ही प्रभु महावीर उस नगर में पधारे. सद्दाल वहाँ गया. वंदना करके उसने प्रभु का For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir m जून २०१२ उपदेश सुना. प्रभु महावीर ने समझा कि यह पुरुष उपदेश का अधिकारी है. एक दिन सद्दालपुत्र कच्चे बरतन धूप में सुखा रहा था. यह देखकर प्रभु ने उससे पूछा : 'सद्दाल पुत्र! ऐसे सुंदर बर्तन तुमने कैसे बना लिए?' उसने उत्तर दिया : "भगवन् ! जंगल से मिट्टी लाकर उसे पानी में भिंगोया और फिर अच्छी तरह गूंधकर इसका पिंड बनाया एवं उसे चाक पर चढ़ाकर ये बर्तन बनाए.' प्रभुने कहा- तब तो यह सब कुछ मेहनत से ही हुआ है ना? सद्दालपुत्र गोशाला वादी था. अतएव उसने उत्तर दिया : 'भगवान् यह तो जो होना था वहे हुआ है.' ___ प्रभुने फिर पूछा : ‘क्यों, सद्दालपुत्र, कोई तेरे बरतन फोड़ दे या तेरी स्त्री को परेशान करे तो तू क्या करेगा?' उसने जवाब दिया : 'मैं उसे दंड दूंगा. प्रभु कहने लगे- इसकी क्या आवश्यकता है? होगा तो वही जो होना होगा.' सद्दालपुत्र समझ गया कि मेहनत के बिना कुछ नहीं हो सकता. महावीर प्रभुका कथन सर्वथा सत्य है. वह उसी समय से महावीर स्वामी का भक्त बन गया और आनंद के समान उसने भी व्रत ग्रहण किया. जब गोशालक को यह सब हाल मालुम हुआ तो वह सद्दालपुत्र के पास जाकर उसे अनेक प्रकार से समझाया, परंतु वह तो पुरुषार्थ की महिमा समझ चुका था, उसे किसी निकम्मे मत की आवश्यकता न थी, गोशालक को निराश होना पड़ा. आनंद और कामदेव के समान सद्दालपुत्र ने भी पवित्र जीवन बिताया. एक बार उसे भी कसौटी पर कसा जाना पड़ा था. वह भी चुल्लणी पिता के समान अपने पुत्रों का वध देखकर तो न धबराया परंतु जब उसकी स्त्री अग्निमित्रा की बारी आई तो वह विचलित हो गया. अंत में जब उसे पता चला कि वह सब देवमाय अपनी भूल का प्रायश्चित किया और फिर वह पवित्र जीवन बिताते हुए कालगति को प्राप्त हुआ. ८. महाशतक - राजगृही के एक बड़े सेठ का नाम महाशतक था. उसके पास करोड़ स्वर्णमुद्राएँ और अस्सी हजार गायें थीं. उसकी रेवती आदि पत्नियाँ थीं. रेवती अपने पिता के यहाँ से दहेज में करोड़ स्वर्णमुद्राएँ और गोकुल लायी थी. प्रभु महावीर के उपदेश से महाशतक श्रावक बना था. उसने आनंद के समान ही व्रत ग्रहण किया था. उसे धर्मचर्चा बहुत प्रिय थी, अतः उसके जीवन का अधिकांश भाग उसी में व्यतीत होता था. रेवती को यह बात पसंद न थी. उसे धन का अभिमान था और उसका स्वभाव बडा ही कठोर था. उसका हृदय मानो जहर का कुंड था. अपनी अन्य सपत्नियों से वह बहुत जलती थी. उनके विनाश के लिए वह नित्य नए-नए प्रपंच रचा करती थी. धीरे-धीरे उसने छः को विष दिलाकर परले हुँचा दिया और शेष छः को भी उसने किसी न किसी बहाने से मृत्यु के घाट उतार ही दिया. अब वह निर्विघ्न आनंद करने लगी. उसकी स्वच्छन्दता में कोई बाधक न रहा. जब मनुष्य एक बार पथभ्रष्ट हो जाता है तो फिर वह नीचे गिरता ही जाता है. रेवती का भी पतन होने लगा. उसने छुप-छुप कर मदिरा को अपनाया और फिर मांसाहार का भी शरण लिया. उन्हीं दिनों नगरपति राजा श्रेणिक ने आदेश निकाला कि कोई पशु-हिंसा न करे. इससे उस नगर में मांस बिकना बंद हो गया. परंतु रेवती को मांसाहार की आदत पड़ चुकी थी. उससे उसके बिना न रहा गया. वह हर रोज गुप्त रीति से अपने गोकुल के दो बच्चों का वध कराती और अपनी लालसा को तृप्त करती थी. किसी को उसके इस दुष्कर्म का पता न चलता था. महाशतक श्रावक ने वर्षों तक व्रत का पालन किया और फिर एकान्तवास कर धर्मध्यान में जीवन बिताने का निश्चय किया. उसने घर का सब कार्यभार अपने बड़े पुत्र को सौंपकर एक पौषधशाला में रहना शुरु कर दिया. एक बार वे ध्यानमग्न थे कि उसी समय रेवती मद्य पीकर मत्त बनी हुई वहाँ आई और उनसे सहवास करने के लिए अनेक प्रकार से प्रार्थना की. परंतु महाशतक अपने ध्यान में तल्लीन रहे. रेवती ने बार-बार आग्रह किया पर वे न डिगे. उस समय उन्हें अवधिज्ञान हो चुका था. उन्हें रेवती के सब कुकृत्यों का पता था. उन्होंने क्रोधित For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वि.सं.२०६८-ज्येष्ठ होकर कहा : 'पापिष्ठा तू भयंकर पापकर्म करती है. आजसे सातवें दिन अतिसार रोगसे तेरी मृत्यु होगी, और तुझे नरकवास मिलेगा. परिभ्रमण करते हुए प्रभु महावीर भी वहाँ आ पहुँचे. उन्हें अपने ज्ञानबल से महाशतक का सब हाल ज्ञात हो गया. उन्होंने गौतम से कहा कि देखो, महाशतक ने क्रोध से पाप वचनों का उच्चारण किया है. श्रावक को ऐसा नहीं करना चाहिए. तुम जाकर उसे उसकी भूल समझाओ और उचित प्रायश्चित कराओ. गौतमस्वामी ने महाशतक को उनकी भूल का बोध कराया. उन्होंने उसे स्वीकार करके योग्य प्रायश्चित किया. प्रायश्चित से चाहे कैसा भी पाप क्यों न हो, वह भस्म हो जाता है. महाशतक भी प्रायश्चित करके पवित्र हो गए. और अंत में उन्होंने शुभ विचार करते हुए इस देह को छोड़ दिया. ९. नंदिनीप्रिय और १०. शालिनी पिता/तेतली पिता- इन दोनों पुरुषों का जन्म वाराणसी में हुआ था. दोनों अपने अपने उद्योग से धनवान बने थे. दोनो के पास करोड़ स्वर्णमुद्राएँ और गोकुल थे. आवश्यकतानुसार हल, गाड़ियाँ और अन्य वाहन भी थे. नंदिनीप्रिय की स्त्री अश्विनी अत्यन्त बुद्धिमती और गुणवती थी, शालिनीपिता की स्त्री फाल्गुनी भी अत्यन्त पतिपरायणा थी. वह पुण्यकर्मों में कभी आलस्य नहीं करती थी. क्रोध ने तो उसे छुआ भी नहीं था. इसलिए शालिनी पिता ने उसका नाम क्षमादेवी रख दिया था. इन दोनों महापुरुषों ने प्रभु महावीर के उपदेश से आनंद श्रावक के समान संयमी जीवन बिताने का निश्चय किया था. वे ऐश-आराम के अनेक साधन होने पर भी संयम की आराधना करते थे. उनकी पत्नियों ने भी उसी प्रकार के व्रत ग्रहण किये थे. वर्षों तक व्रतों का पालन करने के बाद उन्होंने अत्यन्त उन्नत धार्मिक जीवन बिताना शुरु किया और अन्त तक उसे निभाया. अन्त में अनशन करके शुभ विचार करते हुए देह त्याग किया. आर्षवाणी - आचार्य श्री कैलाससागरसूरिजी ० संसार में देखना हो तो तीर्थकर परमात्मा को देखो, दूसरा देखने जैसा है ही क्या. ० शरीर और कर्म अपना कार्य करते हैं तो आत्मा को अपना कर्तव्य करना चाहिए. एक दिन जिसकी मिटटी ___ होनेवाली है उस देह की किसलिए चिन्ता करे. ० जगत की भाषा में नहीं परन्तु जगत्पति की भाषा में बोलो. हाँ कभी जनसमुदाय की भाषा में तुच्छकार हो तो ___ वह क्षम्य है, किन्तु साधु की वाणी में कभी तुच्छकार नहीं होता. ० कोई व्यक्ति भूल या अपराध कर सकता है, परन्तु हमें तो उसके सद्गुण ही देखना, ग्रहण करना चाहिए, दुर्गुण नहीं. ० इस भव में जीभ का दुरूपयोग करेंगे तो जीभ, कान का दुरूपयोग करेंगे तो कान, यानि जिसका दुरुपयोग करेंगे वह परभव में नहीं मिलेगा. इस प्रकार परभव में ये चीजें दुर्लभ हो जाएँगी. ० यदि आपको गुण की आराधना करनी है, तो तीर्थंकर परमात्मा की करो, प्रभु की भक्ति करो, हम साधुओं की नहीं. साधु के लिए प्रशंसा ज़हर के समान है. ० ज्ञाता-द्रष्टा भाव जैसे-जैसे प्रकट करेंगे, वैसे-वैसे समभाव आएगा. राग द्वेष जीतने का उपाय, साक्षीभाव से रहना ही है. ० गुरू की सेवा जितनी हो सके, उतनी कम है. उनके आशीर्वाद और सेवा से ही विद्या फलवती होती है. ० सहन करना, क्षमा करना और सेवा करना: यही है जीवन मन्त्र. ० आत्मश्रेय के लिए हमेशा जागृत रहो. For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जून २०१२ શ્રી હેમચંદ્રાચાર્ય જૈન જ્ઞાનભંslણ પાટણનો એક આછો પરિચય (ગતાંકથી આગળ) હસ્તપ્રત જાળવણી અને ગોઠવણી આ જ્ઞાનભંડારમાં ભોજપત્ર, તાડપત્ર, કાગળ અને કાપડ ઉપર ઇ. સ. ૧૧મી થી ૧૯-૨૦મી સદી દરમ્યાન લખાયેલી હસ્તપ્રતો છે. પ્રાચીન હસ્તપ્રતોની સાચવણી એ એક સમસ્યા છે. આગ, ગરમી, ભેજવાળા હવામાનથી તથા ધૂળના રજકણોથી બચાવવાના હેતુસર ફાયરપ્રુફ ભવનમાં હવાચુસ્ત લોખંડના ૪૦ કબાટોમાં, લાકડાની પેટીઓમાં કાપડ યા કાગળથી વીંટાળીને મૂકવામાં આવે છે. આ ઉપરાંત જંતુનાશક દવાઓનો ઉપયોગ પણ કરવામાં આવે છે. આ બધી પ્રતો ભંડાર મુજબ અનુક્રમ નંબરથી ગોઠવવામાં આવી છે. મુલાકાતીઓ અને સૂચિપત્રો આ ગ્રંથભંડારોની સમૃદ્ધિને લીધે દેશવિદેશના અનેક સંશોધકો અહીં આવી જ્ઞાનસાધના કરે છે. આ પૈકી કર્નલ જેમ્સ ટૉડ (૧૯૩૨), એલેક્ઝાન્ડર કિન્લોક ફોર્બસ (૧૮૫૩), જી, બુલ્હણ (૧૮૭૩), એફ. ક્લિફોર્ન (૧૮૮૦૮૧), ડૉ. આર. જી. ભાંડારકર, પ્રો. કાથવટે (૧૮૮૩-૮૪), પ્રો. મણિલાલ નભુભાઈ દ્વિવેદી (૧૮૯૨), પી. પીટર્સન (૧૮૯૩), સી.ડી. દલાલ (૧૯૧૪), મુનિ પુણ્યવિજયજી (૧૯૩૯), મુનિ જમ્બવિજયજી વગેરે ઉલ્લેખનીય છે. આ બધા જ વિદ્વાનોએ તૈયાર કરેલા (ટૉડ અને ફોર્બસ સિવાય) રિપોર્ટ્સ, કેટલોગ્સ વગેરે પ્રકાશિત થયેલ છે. સમાપન ગુજરાતમાં અમદાવાદ, કોબા (ગાંધીનગર), ખંભાત, છાણી, વડોદરા, સુરત, લીંબડી વગેરે સ્થળોએ જ્ઞાનભંડારો જોવા મળે છે. આ પૈકી કેટલાંક સ્થળોએ પાટણની સરખામણીમાં વિપુલ હસ્તપ્રતો સચવાયેલી છે. આમ છતાં ગ્રંથોની પ્રાચીનતા અને વિષયવૈવિધ્યની દૃષ્ટિએ પાટણના ભંડારો પોતાનું આગવું સ્થાન ધરાવે છે. આ ભંડારોનું સર્વેક્ષણ કરતાં પીટર્સને નોંધ્યું છે : “પાટણ જેવું ભારતભરમાં એક પણ બીજું નગર મેં જોયું નથી, તેમ જ એનાં જેવાં આખા જગતમાં માત્ર જૂજ નગરો છે કે જે આટલી ભવ્ય પ્રાચીનતાવાળી હસ્તપ્રતોનો સંગ્રહ અને સંગોપનનું ગૌરવ ધરાવી શકે. આ હસ્તપ્રતો યુરોપની કોઈ પણ વિદ્યાપીઠનો મગરૂબી લેવા લાયક અને ઈર્ષ્યા આવે એવી રીતે સાચવી રાખેલો ખજાનો થઈ શકે તેમ છે.” મુનિ પુણ્યવિજયજીના શબ્દોમાં “પાટણના જ્ઞાનભંડારની મહત્તા મુખ્યત્વે તેમાં રહેલા અલભ્ય-દુર્લભ પ્રાચીન સાહિત્યને લીધે જ છે. તે છતાં તે પ્રતોની અનેકવિધ લિપિઓનાં પલટાતાં સમયે, તાડપત્રો અને કાગળની વિવિધ જાતિઓ, ત્રિપાઠ, પંચપાઠ, સ્તબક આદિ અનેક પ્રકારની લેખનશૈલીએ હસ્તપ્રતોના વિવિધ આકારો, તેમાં લખાતા અક્ષરાંકો, પ્રતોમાં આલેખાતાં વિવિધ સુશોભનો અને ચિત્રો ઇત્યાદિ દૃષ્ટિએ પણ આ પ્રાચીન જ્ઞાનભંડારો વિદ્વાનોના અધ્યયનના સાધનરૂપ છે.' - જ્ઞાનમંદિરના ટ્રસ્ટીઓ હસ્તપ્રતોનો મહત્તમ ઉપયોગ થાય તે માટે સંશોધકોને યથાશક્ય સહાય કરવા તત્પર છે. ટ્રસ્ટીનું સ્વપ્ન છે કે આ જ્ઞાનમંદિર જ્ઞાનનું સતત વિતરણ અને નિર્માણ કરતું રહે તે માટે જૈન વિદ્યાકેન્દ્રમાં પરિવર્તિત પામે. આપણો શ્રદ્ધા રાખીએ કે આ સ્વપ્ન સાકાર થાય અને પાટણ પુનઃ જૈનવિદ્યાના એક પ્રખર કેન્દ્ર તરીકે પ્રસ્થાપિત થાય અને અગ્રણી શોધ-સંશોધન તરીકે ખ્યાતિ પામી પોતાની યશપતાકા વિશ્વમાં ફરકાવતું રહે. સ્થાપત્યકલા અને ગ્રંથસમૃદ્ધિની દૃષ્ટિએ પાટણનું આ એક દર્શનીય સ્થળ છે. પાટણની શોભા છે. પાટણના જૈન સમાજની આ એક અણમોલ સાંસ્કૃતિક વિરાસત છે જે, પટણીઓ માટે ગર્વરૂપ છે. ગ્રંથસંગ્રહની પ્રેરણા આપનાર મુનિ ભગવંતો અને તેમની આજ્ઞાને મૂર્તિમંત કરનાર શ્રેષ્ઠીઓને કોટિ કોટિ વંદન! આશા સેવીએ કે જ્ઞાનમંદિરની સ્થાપના મૂળભૂત હેતુઓની પરિપૂર્તિ માટે પાટણમાં જૈન વિદ્યાના કેન્દ્રની સ્થાપના થાય અને તેમાં જૈન વિદ્યાવિષયક સંશોધન, અધ્યયન અને અધ્યાપનની શ્રેષ્ઠ વ્યવસ્થા ગોઠવાય. ઉપરાંત જૈનવિદ્યાનું એક અનુપમ ગ્રંથાલય આકાર લે કે જેમાં જનવિઘા વિષયક તમામ પ્રકારનું સાહિત્ય પ્રિન્ટ અને ઇલેક્ટ્રોનિક માધ્યમમાં ઉપલબ્ધ હોય. વિશ્વના કોઈ પણ છેડેથી કોઈ પણ જિજ્ઞાસુ તેની યથેષ્ઠ ઉપયોગ કરી શકે તેટલું સશક્ત. બીજા શબ્દોમાં જૈન વિદ્યાના રાષ્ટ્રીય ગ્રંથાલયનો પર્યાય બની રહે તેટલું સમૃદ્ધ! શ્રદ્ધા રાખીએ કે પાટણના શ્રેષ્ઠીઓ આ દિશામાં અગ્રેસર થશે. (મિલેનિયમ હિસ્ટ્રી ઑફ પાટણ' ગ્રંથમાંથી સાભાર) For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वि.सं. २०६८ - ज्येष्ठ www.kobatirth.org संवेदनासभर प्रार्थनाएँ पत्थर सा दिल मेरा प्रभुवर कोमल फूल बना दो सूने सूने मनमंदिर में स्वस्तिक आप रचा दो स्नेह रहित जीवन ना बने यह ऐसे सुर सजा दो जनम जनम की प्रार्थना मेरी मन का दीप जला दो इस दिल की धरती पे स्वामी प्रेम के फूल खिला दो प्यार की थपकी देकर मुझको हल्के हल्के सुला दो सब से स्नेह मैं बांधू अपना ऐसी कृपा बरसाना भक्ति के सागर में डूब के पाऊं प्रेम खजाना I इस संसार में अटक न जाऊं वैसी राह दिखाओ जीवन पथ पर भटक न जाऊं साथी बनकर आओ करुणा छलकते नयन आपके देना ऐसे वारि तपते हुए तन-मन को बना दो शीतल-स्नेह की क्यारी मेरा जीवन है सरोवर सा स्नेह के कमल खिला दो शंका और संदेह के जाले प्रभुवर आप जला दो धन्य हो उठे यह जिन्दगानी ऐसी करुणा करना अस्तित्व मेरा विलीन हो उठे, देना प्यार का झरना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९ प्रेम के फूल बिछाये मैंनें अब तो प्रभुजी पधारें मधुर स्पर्श और मृदु वचन से जोड दो मन की दरारे जलती जिन्दगानी की धरा पर बरसो बादल बन के, रोम रोम पुलकित हो मेरा ताप मिटे तन-मन के प्यासी इन आँखों में रचा दो करुणा का कुछ काजल मन की प्यासी धरती चाहे तेरे स्नेह का बादल अधरों में कंपन है स्वामी गीत तुम्हारा है गाना तुतलाते शब्दों में भी जो कुछ है तुम्हें सुनाना - भद्रबाहुविजय For Private and Personal Use Only मनमंदिर में बजने लगी है स्नेह की यह शहनाई याद तुम्हारी मन के गगन में बन के बादल छाई पर मेरा अपराध है क्या जो तुमने मुझे भुलाया करो कबूल प्रार्थना मेरी द्वार तुम्हारे आया । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० जून २०१२ भावुकता से भीगी आँखें बाट तुम्हारी निहारे बिना तुम्हारे मन वीणा के तार रुठ गये सारे होंठ तरसते और तडपते पल पल तुम्हें पुकारे दर्द के मारे प्राण बेचारे बिना तुम्हारे हारे याद तुम्हारी आये और ये नैन हो उठे छलक छलक पलकों के साये में सिमटे आँसू रोके रहे कब तक तकते तकते राह तुम्हारी थक गयी ये जिन्दगानी किसे पता है कब सूखेगा इन आँखों का पानी बिना तुम्हारे और किसी को मन ना मेरा चाहे तेरी प्रतीक्षा के फूलों से खिली खिली है निगाहें, क्या तो उदासी, क्या मायूसी सब मुझको मंजूर है । लेना क्या दुनिया से मुझे जो एक तू मुझसे दूर है ? दुनिया के दरिये में न डूबे यह जीवन की नौका चारों ओर से घेरे मुझको पाप करम का झोंका गीतों को स्वर देना ऐसा मिले तुम्हारी झांकी स्नेहिल स्पर्श से खिले-खुले अब मेरी मन-बैशाखी भीतर मेरा आलोकित हो, ऐसी दे ना ज्योति दुःख के सागर में भी दूं दूं प्रसन्नता का मोती वैर और विषाद भूलाकर प्रेम की बीन बनाऊँ स्नेह सुमन से सुरभित मेरे तन-मन-नयन सजाऊँ चरम तीर्थंकर महावीरस्वामी शासन के उपकारी प्राणीमात्र के मंगलहे तु धर्म दिया सुखकारी सुख का सागर उछल रहा है प्रभु के चरणशरण में जो आये उसके टल जाए फेरे जनम मरण के तेरी प्रीत में लीन बनूं मैं यही है मेरी कामना रंग भरा है इस जीवन में मैंने तुम्हारे नामका इस जीवन का हर पल बीते करते तेरी आराधना तेरी भक्ति तेरी पूजा मेरे जीवन की साधना प्रभो तुम्हारे चरणों में आकर करते वंदन भाव से आधि-व्याधि और उपाधि मिटे आपके प्रभाव से सुख दुःख में समवृत्ति रखू मैं ऐसी देना शक्ति जनम जनम मुझे मिले तुम्हारी भक्ति और अनुरक्ति For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ वि.सं.२०६८-ज्येष्ठ मैत्री बांधू सब के साथ मैं ऐसी आशीष देना करुणा के झरने बहे मन में वैसी बातें कहना निंदा-विकथा करूं न किसी की समताभाव में नहाऊं राग द्वेष और तीव्र कषाय के मेल से मन को बचाऊं आषाढी आकाश सा मेरा मन बिल्कुल है अकेला व्यथा के बादल घिर घिर आये अंधियारा है फैला आँखों पर तो लगा है हरदम पलके का यह पहरा फिर भी आँसुओं से भीगा है मेरा उदास चेहरा प्राणी मात्र के प्रति मैं मन में मैत्री-दीप जलाऊं गुणी, सुखी, उपकारीजनों को श्रद्धासुमन चढाऊं दुःखी और संतप्त जीवों को करुणा से नहलाऊं पापी-अपराधी को दे खाकर उदासीनता लाऊं मंगल-मनोकामना क्षेम कुशल हो सब जीवों को सर्वत्र समुचित वृष्टि हो, धरती पर धन-धान्य बढे और धर्म सत्यमय सृष्टि हो, आधि-व्याधि और उपाधि दूर हो सबके जीवन से, प्रभु चरणों में-प्रभु की शरण में रहे समर्पित तन-मन से । सृष्टि के सब जीव सुखी हो, रहे नीरोगी सदा सभी सभी निहारें शुभ सर्वत्र, कोई दुःखी ना हो कभी । બાળક જેવું ઊછરે તેવું શીખે બાળક ટીકાઓ સાથે ઊછરે, તો તે નિંદા કરતાં શીખે. બાળક ધિક્કાર સાથે ઊછરે, તો તે ઝઘડા કરતાં શીખે. બાળક ઠેકડી સાથે ઊછરે, તો તે શરમાળ થતાં શીખે. બાળક અપમાન સાથે ઊછરે, તો તે અપરાધભાવ અનુભવવાનું શીખે. બાળક સહિષ્ણુતા સાથે ઊછરે, તો તે સહનશીલતાનો ગુણ કેળવશે. બાળક પ્રશંસા સાથે ઉછરે, તો તે કદર કરતાં શીખશે. બાળક ઉચિત વ્યવહાર સાથે ઊછરે, તો તે ન્યાયી વલણ અપનાવતાં શીખશે. બાળક સલામતી સાથે ઊછરે, તો તે શ્રદ્ધા કેળવતાં શીખશે. બાળક સ્વીકૃતિ સાથે ઊછરે, તો તે સ્વઆદર કેળવતાં શીખશે. બાળક મૈત્રીભરી રીતે ઊછરે, તો તે વિશ્વમાં પ્રેમની ખોજ કરતાં શીખશે. ('भूमिपुत्र'थी संकलित) - For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जून २०१२ श्री पद्मावती स्तोत्र नवीन वी. जैन वर्तमान चौबीसी के २३ वें तीर्थंकर पुरूषादानीय श्रीपार्श्वनाथ भगवान की अनन्य उपासिका अधिष्ठात्री मातेश्वरी पद्मावती देवी की जिनभक्ति अनुपम, अवर्णनीय तथा अद्भुत है। अहर्निश प्रभु पार्श्व को मस्तक पर धारण करनेवाली मातेश्वरी एकभवावतारी हैं। प्रभु की भक्ति करनेवालों पर माँ सदा प्रसन्न रहती हैं। उनके जीवन उपवन को सुखों के सुमन से भर देती हैं। कष्टों तथा पीड़ाओं का हरण करके भक्तजनों को जिनभक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ाने में सहयोग देती हैं। ऐसी करुणावत्सल, ममतामूर्ति मातेश्वरी की आराधना से रत्नत्रयी की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त हो जाता है। पदमावती माता स्वयं श्रीपार्श्वनाथ भगवान की सेवा-भक्ति करती हैं। उनको भगवान की भक्ति अत्यंत प्रिय है और पार्श्वनाथ की भक्ति करने वालों को अवश्य सहाय करती हैं। पद्मावती माता नागलोक में रहनेवाली हैं इसलिये उनका वाहन भी नाग (सर्प) है, शतदल-सहस्रदल कमल पर बैठती हैं. और चंद्र जैसे शीतल नेत्र हैं. लाल कमल के रंग जैसे वस्त्र को धारण करने वाली, कुर्कुट मुखवाला सर्प का वाहनवाली, संकट को नाश करती हैं और ऋद्धि सिद्धि-समृद्धि को देती हैं. माता पद्मावती को सदा नमन हो. कति परिचय:-श्री पदमावती स्तोत्र. जो भक्ति प्रधान कति है, जिसमें माताजी की अनेक उपमाओं द्वारा स्तुति-प्रार्थना की गई है. प्रति के अंतर्गत प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक क्रमशः नहीं लिखा है, परंतु बीच-बीच के १४,२४ व अंतिम २५ गाथांक लिखा है, जिससे यह मान सकते हैं कि कृति २५ गाथा की हैं। ___ कृति के कर्ताः- तपागच्छ के मुनि श्री चारित्रसागरजी के शिष्य मुनि श्री कल्याणसागरजी म. सा. ने इस कृति की रचना की है। जिनका समय १७वीं सदी होने का अनुमान है। भाषाः- कृति मारुगुर्जर भाषा में रची गई है। श्री पदमावती स्तोत्र Ilgo Il सक्ति सदा सांनिधरो सेवक जिन साधार पओमाओ प्रगट पणें प्रणमुं स्तव उदार. ||१|| आदि सक्ति आराधतां अधिक बधै आणंद देवी दोलत द्यो सदा ज्युं वाधै सुखकंद. ||२|| मात मया करि मोहसं क्रीपा करो नित्यमेव अरियण सैंहारो सकत्ति बिगती चित धरेव. ||३|| ध्यान धरूं धिखणा धरौ पउमावै प्रगट अरज करुं आइ अल्प करो सदा गह गट, ||४|| छंद. पउमां प्रेम धरे पाये लागु बचन बिलास सरसरस मांगु भारति भगवति धरी गुंण गावू अविहड अतिघण आणंद पांओ तुं लखमी तुं भाषादेवी तुं त्रिभुवन मै रंग रमेवि तुं ब्रहमांणी गवरी गंगा; तुं जगदंबा दीसै वंगा प्राण प्रीया नागंदै केरी छपन्नकोडि तुं नवी नवरी चोसठि पीढ़ चाचर वावी भावक जनमनि तुंहीज भावी तीन(भ)तीन भवननी तुं धणीयाणी रंभा तंहीज अपछर रांणी For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वि.सं. २०६८ - ज्येष्ठ www.kobatirth.org रुप अनुपमैं तुं हिं विराजे साहरा गुण कहीऐ ते छाजे तुं गजगमणी चंदावयणी पंकज नयणी कवि मन हरणी चंपक बरणी चतुर विचख्यण तुज तनसे हैं सयल सुलक्षण कंचण कछप चरयण बिराजै यावक रंग्यारंग्या राजै हीरा ज्यु योपे नवपलव तूं परि घूघरि सुभ रणरणव रंभा थंभ कदंब सुजंघा करि मेखल खलकै बहुं भंगा त्रिवली तीन नदीनो संगम जांगै पायो तीरथ जंगम कनक कलस समान पयोधर कांनै कुंडल दीपै शशिधर कर कंकण सोनाना वलीया आंगुलि ओप ज्युं मगफलीया वेणी बासिग तेजैं वसीयो राखडली मणि मध्ये हसीयो मुगताफलमाला गलि सोहं तेजें त्रिभुवन जम मन मोहे नकबे सरनी कीनी तु नांके सोहे मोहे मनमथा ताकै सिंहबाहनी सदा सुहाये सुरनर रंगें तुझ गुण गावै ध्यारभुजा सोहे चतुरंगी पासांकुरावर पहरण पंगी अमृत नयणी अमृत वयणी अमृत सम शीतल सुख देयणी ऋद्धि वृद्धि वर बुद्धि सुरंगी लक्ष्मी लीला दोलत चंगी विनय विवेक विचार सुलक्षण तुज तु वर भोजन भक्षण नांम जांप जपता जगदंबा लहीए सुख अभंग पलंगा नाम अनेक अछे तुझ माई जपुं जाप सतगुरु मुख पाई १४ छंद गीता इंद्री मांहेश्वरीन ब्रहमांणी भगवति भारथि माय चंडी चामुंडाने चकेश्वरी चक्रका सुभ काय एकानुं अनेका अति सरुपा बहू रुपा तुझ माय पदमनि पदमावति पदमवासनी अप्रतिचक्र काय सावत्री सरस्वतीनें सिद्धाइ माई महिमावंत सुमुखीने समुखा मतिमा मेधा हंसागमनी संत सातस्वीन राजेस्वीने तामस्वी बलदा भाषा बाई मेधासवि मांनस्वनै मातंगी महामांनसी आई गायत्री गंगाने गंधारी गौरी कालीकाय माहाज्याला बाला सदा सुकाला सुमुखा सुमुखी माय बहुदा बलदाई संता मनोरथ माई महिमावंत भवांनीने भगवत वत्सल मन धरि ध्याउं मनखंति ताराने त्रिपुरा तीतल तरुणी तुलजा तुर्हि भवांनी संता सुखदाइ तुं महिमाई तुं प्रगटा तुं छांनी आदि ईश्वर केसर कमला अमला आ जांणी असुरासुर किंनरवर बी (वि) द्याधर नर देवेंद्र बखांणी बीसहथी मुझ बीनति मानौं रांनो मोरी वात तुं इष्ट अनोपम सदा सहोपम तुंही पी (पिता तुं मात For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ery १३ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ www.kobatirth.org तुं सदा सहेजी तुझ तन तेजी दीपैं दीपक प्रकास जे अष्टमहाभय दुरिं टालो गालो वयरी वास खुवार करो खलखिण दाटौ बाटो वज्र सिलायें पोउत्र शूलै दक्षिण मुलें जिम मुलैथी जाय तस लजा पाडो वेग विगडो गाडी गर्तामाहिं तस नांम नसाडो दूरिं त्राडी फाडो पकडी वांह हिंवै नांम प्रकासो किस्युं कहीजै तुं जांणे सवि वात जे देखी द्वेष घरै निकारण द्वेषी महा श्रीजात ते वेग बिगाडो पारौं पाडो चाढो गर्धभ पुठि कर ग्रही कटारी घणुं अटारी मारिज जिग गुंठि मोह धरीजै सदा सुहाई माहि महिमावंत सुख संपति आपो चिंता कापो सुख थापी प्रसिधि आई पउमाई बहु रिधिदाई सदा सुहाई नित्य वर विभव बधारो दर्शन प्यारो तारो मुझ एकांति ऐं कांरी आणंदसुं आई क्लीं कारी बरदायीसू सोअंति नम जोड जयंता रिद्धि सिद्धि में पाई मुझ महियल मल्हे पालि नैं सके कोई जे तुझनें ध्यावै सदा आराहँ ते जिंग मोटा होय जे मोहन भुरति अदभूत सूरति सेवक पुरति आस बासवर वंदित सदा आंनिंदित सूरज तेज प्रकास चौसठ पीछे प्रगट प्रभावी बद्धावी नृप आप नमो नमी तुझ नांम अनेका जपुं सदाई जाप २४ कवित्ततुझ पाय पसाय बहु बुद्धि रिद्धि बरसिद्धि सदाई पाइजे परतख्य बरदख्य सदाई माइ महिमावंत आस पूरीजे पउमा ज्युं जुगि किर्त्ति निवास पसरइ बहु महिमा श्रीपारसनाथ सासणस्वरीश्री सेवक जीण साधारणी - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बुध चारित्रसागर गुरु सिख्य कल्याणन जय जय कारणी २५ प्रतिलेखन पुष्पिका इतिश्री भगवति श्रीपदमाउती स्तोत्र संपूर्ण लिखतं पं. धीरसागर संवत १७९४ वर्षे श्रीमकसूदायांद मध्ये श्रीरस्तु इति पद्मावती स्तोत्र प्रति परिचय प्रत संख्या ३०८३२. जिसमें ३ पन्ने हैं. जो सम्पूर्ण है. प्रत का नाप - प्रत की लंबाई-चौड़ाई२५.५०-११ से.मी. है. प्रति पृष्ठ पंक्ति संख्या ११ से १२ है. प्रति पंक्ति अक्षर ३७ से ४१ है. अक्षर सामान्य हैं. उपरोक्त प्रति कोबा गांधीनगर स्थित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में सुरक्षित है। अन्य प्रत संख्या ३७९०५. ३१२४०. ३१३२३. (३०४६७- खड़ी मि है अक्षर बेडौला है काल पानी प्रभावित है.) For Private and Personal Use Only जून २०१२ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वि.सं.२०६८-ज्येष्ठ परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. अहमदाबाद में! प. पू. आचार्य भगवंत दिनांक १८/०६/१२ को गुजरात की महानगरी अहमदाबाद में पधारेंगे जहाँ लावण्य सोसायटी जैनसंघ द्वारा भव्य सामैया के साथ नगर प्रवेश का कार्यक्रम आयोजित किया गया है. वहाँ मंगल प्रवचन के पश्चात नूतन उपाश्रय निर्माण करने हेतु वासक्षेप पूजन आदि का कार्यक्रम भी संपन्न किया जाएगा. वहाँ से पूज्यश्री कोबा की ओर विहार करेंगे. महावीर स्वामी को सूर्य ने किया किरणों से तिलक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा स्थित महावीरालय में मूलनायक चरम तीर्थकर महावीर स्वामी की भव्य प्रतिमा के ललाट पर २२ मई, २०१२ को दुपहर २.०७ बजे सूर्य किरणों ने तिलक किया. यह आह्लादक दृश्य देखने के लिये अहमदाबाद-गांधीनगर के हजारों लोगों के साथ देश के विभिन्न भागों से आये अनेक श्रद्धालु भी यहाँ उपस्थित थे. जैसे ही नियत समय पर सूर्य किरणें प्रभु महावीर स्वामी के ललाट पर आई वैसे ही सारा परिसर जय-जयकार से गूंज उठा. ऐसा दृश्य प्रतिवर्ष इस दिन देखने को मिलता है जो पूज्य आचार्य श्री कैलाससागरसूरिजी के पार्थिव शरीर के अग्नि संस्कार समय की स्मृति दिलाता है, मधुमती-महुवा में भट्टारक आचार्य श्री देवेन्द्रसूरि तथा आचार्य श्री विजयचंद्रसूरि के उपदेश से प्रभावित होकर श्रीश्रमण संघ के पठन-पाठन के लिये धोलका आदि के श्रेष्ठियों द्वारा मधुमती में वाग्देवता-श्रुतदेवता ज्ञानभंडार में संग्रहीत करने के उद्देश्य से अरिसिंह द्वारा विक्रम संवत १३०६ माघ शुक्ल १ गुरुवार के दिन लिखवायी गई प्रवचनसारोद्धारवृत्ति के तृतीयखंड के अंत में प्रतिलेखन पुष्पिका (प्रशस्ति) में उल्लिखित ज्ञान की महिमा : ज्ञानदानेन जानाति जंतु स्वस्य हिताहितं । वेत्ति जीवादितत्त्वानि विरतिं च समश्रुते।।१।। ज्ञानदानात्त्ववान्पोति केवलज्ञानमुज्जवलम् । अनुगृह्याखिललोकं लोकाग्रमधिगच्छति।।२।। न ज्ञानदानाधिकमत्र किंचिद् दानं भवेद् विश्वकृतोपकारम्। ततो विदध्याद् विबुधः स्वशक्त्या विज्ञानदाने सततप्रवृत्तिं ।।३।। 'सम्यग्ज्ञान का दान करने से जीवात्मा स्वयं का हित-अहित जानता है, जीव-अजीव आदि तत्त्वों को पहचानता है', विरति-वैराग्य को प्राप्त करता है. ज्ञान प्रदान करने से केवलज्ञान को प्राप्त करता है और समस्त लोक-संसार को अनुगृहीत करके लोक के अग्रभाग में सिद्धशिला मोक्ष में पहुँचता है. ज्ञान के दान से अधिक यहाँ दूसरा कोई दान नहीं है, जो विश्व के लिये उपकारी हो सके! इसलिये ज्ञानी और समझदार मनुष्य को अपनी शक्ति-सामर्थ्य तथा भक्तिभाव के अनुसार विशिष्ट ज्ञान प्रदान करने के लिये सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए.. (वर्तमान में यह प्रत पाटण के संघवी पाडा स्थित ज्ञानभंडार में संगृहीत है.) (संकलन - बी. विजय जैन)|| For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ जून २०१२ समाचार सार हीरेन दोशी एवं विनय महेता हीरक नगरी सुरत में राष्ट्रसंत आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. का भव्य नगर प्रवेश परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. एवं उनके शिष्य-प्रशिष्य गणिवर्य श्री प्रशांतसागरजी, मुनिश्री पद्मरत्नसागरजी, मुनिश्री पुनितपद्मसागरजी. मुनिश्री भुवनपद्मसागरजी आदि के साथ मुंबई महानगरी में चातुर्मास संपन्न कर एवं गोडीजी पार्श्वनाथ द्विशताब्दी समारोह का ऐतिहासिक कार्यक्रम में निश्श्रा प्रदान करने के पश्चात गुजरात की राजधानी गांधीनगर के समीप कोबा में चातुर्मास करने हेतु पधार रहें हैं. विहार के क्रम में अनेक गाँवों व नगरों में श्रीसंघ को धर्मदेशना देते हुए दिनांक २९/०५/१२ को गुजरात की हीरक नगरी सूरत में प्रवेश किया. सुरत शहर में सबसे पहले पूज्यश्री ने अरिहंत वासुपूज्य जैन संघ के नूतन उपाश्रय में मंगल प्रवेश किया जहाँ युवावर्ग द्वारा आयोजित भव्य कार्यक्रम में पूज्यश्री द्वारा उस नूतन उपाश्रय में सर्वप्रथम प्रवचन दिया गया. इस अवसर पर उपस्थित साधर्मिक बंधुओं हेतु नवकारशी की सुंदर व्यवस्था की गई थी. दिनांक ३०/०५/१२ को प्रातः ७ बजे पूज्य श्री का गज्जर वाडी जैन संध में मंगल प्रवेश हुआ तथा पूज्यश्री ने मांगलिक प्रवचन किया. वहाँ से विहार कर प्रातः ९ बजे हरीपुरा जैन संघ में मंगल प्रवेश किया तथा वहाँ उपस्थित श्रद्धालुओं को अपने प्रवचन से भावविभोर कर दिया. दिनांक ३१/०५/१२ को वडा चौटा जैन संघ ने पूज्यश्री के मंगलप्रवेश के समय भव्य सामैया का आयोजन किया था, वहाँ अति प्राचीन गोडी पार्श्वनाथ जिनालय में दर्शन के पश्चात नवकारसी की सुंदर व्यवस्था की गई थी. पूज्यश्री के प्रभावक प्रवचन के पश्चात् श्रीसंघ ने पूज्यश्री से प्राचीन जिनालय के जिर्णोद्धार कार्य में आशीर्वाद, सान्निध्य एवं मार्गदर्शन देने हेतु विनती की. पूज्यश्री ने श्रीसंघ की भावना को देखते हुए उनकी विनती स्वीकर कर आशीर्वाद दिया कि भगवान की कृपा से श्रीसंघ की भावना सफल होगी. पूज्यश्री द्वारा आशीर्वाद प्राप्त कर श्रीसंघ में चतुर्दिक हर्ष की लहर फैल गई. दिनांक ०१/०६/१२ को हरिपुरा से विहार कर एशियन स्टार कम्पनी में पधारे जहाँ मांगलिक प्रवचन के बाद नवकारशी की व्यवस्था की गई थी. वहाँ से विहार कर पूज्यश्री अरिहंत पार्क जैन संघ, स्टेशन रोड, सुमुल डेयरी रोड पधारे जहाँ श्रीसंघ ने भव्य सामैया का आयोजन कर पूज्यश्री का नगरप्रवेश कराया. मांगलिक के पश्चात् पूज्यश्री प्रवचन ने उपस्थित श्रद्धालुओं को भक्तिगंगा में डुबकियाँ लगवाकर पावन कर दिया. सुरत नगर के पुलिस कमीश्नर श्री राकेशभाई अस्थाना अपने पूरे परिवार के साथ पू. आचार्य भगवंत के दर्शनार्थ उपस्थित हुए एवं वंदनापूर्वक आशीर्वाद प्राप्त किये. बैंग्लोर में आयोजित मुमुक्षु रोनककुमार का दीक्षा महोत्सव कर्नाटक की राजधानी बेंगलूर नगर की पावन धरा पर श्री वासुपूज्यस्वामी जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ अक्कीपेट के आंगन में परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पदमसागरसूरीश्वरजी म. सा. के शिष्यरत्न सूरिमंत्र आराधक, पदमगौरव परमपूज्य आचार्य भगवंत श्री वर्धमानसागरसूरीश्वरजी म.सा., प्रवचनप्रदीप पंन्यासप्रवर श्री अजयसागरजी म.सा एवं ज्योतिर्विद पंन्यासप्रवर श्री अरविंदसागरजी म.सा. आदि ठाणा की पावन निश्रा में मुमुक्षु श्री रोनककुमार अशोककुमारजी महेता की भागवती प्रवज्या खूब हर्षोल्लास पूर्वक संपन्न हुई. श्रीसंघ द्वारा आयोजित दीक्षा महोत्सव के प्रथम दिन पूज्य गुरुभगवंतों का मंगल प्रवेश हुआ, श्रीपार्श्वनाथ पंचकल्याणक पूजा के आयोजन द्वारा जिन-भक्ति महोत्सव का शुभारंभ हुआ. परंपरागत रूप से मुमुक्षु के श्रमण योग्य वस्त्रों को केसर के छीटों से अभिमंत्रित किया गया, जबकि महोत्सव के दूसरे दिन प्रातःकाल में अक्कीपेट के मुख्य राजमार्गों पर मुमुक्षु रोनककुमार का भव्यातिभव्य वर्षीदान का वरघोड़ा एवं तत्पश्चात् श्रीसंघ ने मुमुक्षु का सन्मान समारोह अत्यंत भावोल्लास पूर्वक आयोजित किया. विक्रम संवत २०६८, ज्येष्ठ सुदि-१३, दिनांक ०२-०६-२०१२, शनिवार के शुभदिन यानी महोत्सव के तीसरे दिन प्रातःकाल में गुरूभगवंत द्वारा प्रदत्त शुभवेला एवं शुभ अवसर पर देव गुरू व श्रीसंघ की साक्षी में मुमुक्षु श्री रोनककुमार ने मुनिश्री हीरपद्मसागरजी म.सा. के पुनित चरणों में अपना जीवन समर्पित किया एवं श्रमण भगवान महावीर के पावन वेश को धारण किया और वे मुनिश्री चारित्रपद्मसागरजी के रूप में घोषित हुए. संस्था की तरफ से ट्रस्टी श्री मुकेशभाई एन. शाह इस पावन प्रसंग पर उपस्थित रहे. पद्मगौरव परमपूज्य आचार्य भगवंत श्री वर्धमानसागरसूरीश्वरजी म.सा के करकमलों से दीक्षित होकर रोनककुमार ने जहाँ एक ओर मुमुक्षुश्नी से मुनिश्री बनकर परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्रीमद् पद्मसागरसूरिजी के परिवार की रौनक बढाई, तो दूसरी ओर अपनी कुलपरंपरा एवं माता-पिता आदि परिवारजनों का नाम उज्ज्वल किया. दीक्षा प्रसंग पर श्री सुरेंद्रभाई गुरूजी ने मंच संचालन किया. दोपहर में विविध महापुरूषों द्वारा रचित श्री चारित्र पद पूजा का भव्य आयोजन नूतन मुनिश्री के संसारी परिवारजनो की ओर से किया गया था. For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रविवारीय शिक्षाप्रद मधुर प्रवचन शंखला प्रथम शिविर द्वितीय शिविर तृतीय शिविर प्रत्येक रविवार को बोधप्रद प्रवचन का समय -३.३०वले बजे तक विषय : अंतर्जगत की यात्रा दिनांक ०१-०७-२०१२, आषाढ शुक्ल द्वादशी शेठ श्री नविनभाई डी. महेता लाभार्थी श्रीमती कोकिलाबेन नवीनचंद्र महेता परिवार, पालनपुर/मुंबई, विषय : पुण्य का जन्म स्थान । दिनांक ०८-०७-२०१२, आषाढ कृष्ण पंचमी शेठ श्री अरविंदभाई टी. शाह लाभार्थी मातुश्री रेवाबेन ताराचंदभाई परिवार, पालनपुर/मुंबई विषय : बंधन और मुक्ति दिनांक १५-०७-२०१२ आषाढ कृष्ण द्वादशी शेठ श्री सेवंतिभाई मोरखिया लाभार्थी श्री मणिलाल प्रेमचन्द मोरखिया परिवार, थराद/मुंबई विषय : स्वयं पर स्वयं का अनुशासन दिनांक २२-०७-२०१२ श्रावण शुक्ल तृतीया शेठ श्री नगीनदास डुंगरशी शाह परिवार, अडपोदरा/मुंबई लाभार्थी हस्ते - श्रीमती मंजुलाबेन प्रवीणभाई शाह विषय : भावना एवम् भक्ति से भगवान तक की यात्रा। दिनांक २९-०७-२०१२ श्रावण शुक्ल एकादशी शेठ श्री सोहनलालजी चौधरी- सिवाणा (राज.) निवासी, लाभार्थी गौतमचंद महावीरचंद, सम्भव, सुमति, श्रेयांस, श्रीकांत. पुत्र-पौत्र-प्रपौत्र- श्री लालचंदजी चौधरी परिवार, विषय - कर्मश पर विजय प्राप्त करने का उपाय दिनांक ०५-०८-२०१२ श्रावण कृष्ण चतुर्थी चतुर्थ शिविर पंचम शिविर छठी शिविर सातवीं शिविर आंठवी शिविर लाभार्थी शेठ श्री प्रेमलभाई एवं श्रीमती सुजातावेन कापडीया परिवार विषय - अनादिकालीन जीवनयात्रा का इतिहास दिनांक १२-०८-२०१२ श्रावण कृष्ण दशमी शेठ श्री चीमनलाल पोपटलाल राणा शेठ परिवार, लाभार्थी हस्ते - बाबुभाई, हेमंतभाई, गौतमभाई, विक्रमभाई, उमेशभाई, अहमदाबाद. विषय - धर्म क्रियाओं का अनूठा रहस्य दिनांक १९-०८-२०१२ अधिक भाद्रपद शुक्ल द्वितीया श्रीमती सुमतीबेन हर्षवदनभाई शाह, स्व. श्री हर्षवदनभाई नवीनचंद्र शाह परिवार लाभाथी अंजनभाई, मुकेशभाई, लावण्यभाई, विनीतभाई, कमलेशभाई, स्व. पूर्णिमावेन, धराबेन, भारतीवेन, पूर्णावन, फाल्गुनीबेन विषय-संसार की समस्याओं का आध्यात्मिक समाधान दिनांक २६-०८-२०१२ अधिक भाद्रपद शुक्ल दशमी नवमी शिविर लाभार्थी संघवी श्री मिश्रीमल नथमलजी परिवार (नैनावा निवासी) दसमी शिविर दिनांक विषय - परिवार को प्रेम का मंदिर बनाये ०२-०९-२०१२ अधिक भाद्रपद कृष्ण द्वितीया, स्व. शेठ श्री जयंतिलाल केशवलाल शाह, (घनारी - राज.) हाल साबरमती-अहमदाबाद, पत्नी- श्रीमती निर्मलाबेन, पुत्र - कल्पेशभाई, परेशभाई, भाविनभाई, पुत्रवधु-हेमालीबेन, शीतलबेन, भाविकाबेन, पुत्री-दामाद - पीनाबेन-संजयकुमार, प्रपौत्र- ऋषभ, केवल, प्रपौत्री- आंगी, अवधि, निर्मोही. लाभार्थी For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्रीमद् पासागरसूरीश्वरजी की अमृतमयी वाणी (बोरीज, गांधीनगर- 24.07.05) जीवनयात्रा का राजमार्ग अनन्त उपकारी, अनन्त ज्ञानी, परम कृपालु जिनेश्वर परमात्मा ने संसार के समस्त आत्माओं के कल्याण हेतु, अपनी धर्मदेशना के माध्यम से दुनिया पर सबसे महान उपकार किया है. यदि परमात्मा अपने प्रवचन पीयूष का पान कराये न होते तो हम सभी अज्ञानता रूपी अन्धकार में भटकते होते. प्रवचन द्वारा प्रवृत्ति विकसित होती है, प्रवचन जीवन में परिवर्तन ला सकता है, संकट काल में मार्गदर्शन दे सकता है और परंपरा से प्रवचन पूर्णता प्रदान करता है. 'परमात्मा की वाणी में अखिल जगत का कल्याण सुरक्षित है. जीवन का सम्पूर्ण ज्ञान परमात्मा की वाणी से प्राप्त किया जा सकता है. परमात्मा की वाणी में ही सरस्वती का वास है. परमात्मा की वाणी का श्रवण भी पुण्य का कार्य है. परमात्मा की वाणी से एक प्रकार की तृप्ति मिलती है. भावपूर्वक श्रवण करना भी एक प्रकार की साधना है. इससे जन्म-मृत्यु की परम्परा पर पूर्णविराम लग जाता है. परमात्मवाणी का चमत्कार आपकी अन्तर्चेतना को जगाता है. अपने भावों में आप जागृति लाइए, इससे आत्मा पूर्णता प्राप्त करने में समर्थ होती है.' 'जीवनविकास का राजमार्ग जानने जैसा है.' वर्तमान जीवन तो विनाशोन्मुख है. आपकी बाह्य सभी पदार्थों की प्राप्ति के प्रति अटूट वृत्ति वह पतन का द्वार है. यह समझने जैसी बात है कि यह जीवन जगत को पाने के लिये नहीं बल्कि, स्वयं को प्राप्त करने के लिये मिला है. स्व एवं पर का भेद परख लें. इसका ज्ञान जब तक नहीं होगा तब तक सब निष्फल है. सभी साधनाएँ प्रायः दूषित बन गयी हैं. वर्तमान की प्रदूषित विचारधारा आपकी आत्मा को सर्वनाश करती है. परमात्मा की प्रार्थना करने में भी दरिद्रता देखी जाती है. संसार में से शून्य कैसे बनें उसके लिये विचारो. परमात्मा की प्रार्थनावेला में केवल परमात्मा ही दिखना चाहिये. इसके द्वारा खुद की आत्मानुभूति प्राप्त करनी ऐसा आपका लक्ष्य होना चाहिये.' 'जीवन में की हुई साधना व तपश्चर्या निरर्थक न जाए, उसके लिये जाग्रत रहो. प्रवचन केवल सुनने के लिये नहीं, अपितु आचरण के लिये है. अब तक तो बहुत कुछ सुना, परन्तु जीवन में आचरण करने से शून्य रहे. आप क्या जानते हैं उतने महत्व की बात नहीं जितने कि आप क्या करते हैं उसका महत्व है.' BOOK POST अंक प्रकाशन सौजन्य : संघवी श्री प्रकाशभाई मिश्रीमलजी नथमलजी परिवार (नैनावा निवासी रत्नमणी मेटल्स एन्ड ट्युन्स लि. - अहमदाबाद For Private and Personal Use Only