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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वि.सं. २०६८ - ज्येष्ठ www.kobatirth.org संवेदनासभर प्रार्थनाएँ पत्थर सा दिल मेरा प्रभुवर कोमल फूल बना दो सूने सूने मनमंदिर में स्वस्तिक आप रचा दो स्नेह रहित जीवन ना बने यह ऐसे सुर सजा दो जनम जनम की प्रार्थना मेरी मन का दीप जला दो इस दिल की धरती पे स्वामी प्रेम के फूल खिला दो प्यार की थपकी देकर मुझको हल्के हल्के सुला दो सब से स्नेह मैं बांधू अपना ऐसी कृपा बरसाना भक्ति के सागर में डूब के पाऊं प्रेम खजाना I इस संसार में अटक न जाऊं वैसी राह दिखाओ जीवन पथ पर भटक न जाऊं साथी बनकर आओ करुणा छलकते नयन आपके देना ऐसे वारि तपते हुए तन-मन को बना दो शीतल-स्नेह की क्यारी मेरा जीवन है सरोवर सा स्नेह के कमल खिला दो शंका और संदेह के जाले प्रभुवर आप जला दो धन्य हो उठे यह जिन्दगानी ऐसी करुणा करना अस्तित्व मेरा विलीन हो उठे, देना प्यार का झरना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९ प्रेम के फूल बिछाये मैंनें अब तो प्रभुजी पधारें मधुर स्पर्श और मृदु वचन से जोड दो मन की दरारे जलती जिन्दगानी की धरा पर बरसो बादल बन के, रोम रोम पुलकित हो मेरा ताप मिटे तन-मन के प्यासी इन आँखों में रचा दो करुणा का कुछ काजल मन की प्यासी धरती चाहे तेरे स्नेह का बादल अधरों में कंपन है स्वामी गीत तुम्हारा है गाना तुतलाते शब्दों में भी जो कुछ है तुम्हें सुनाना - भद्रबाहुविजय For Private and Personal Use Only मनमंदिर में बजने लगी है स्नेह की यह शहनाई याद तुम्हारी मन के गगन में बन के बादल छाई पर मेरा अपराध है क्या जो तुमने मुझे भुलाया करो कबूल प्रार्थना मेरी द्वार तुम्हारे आया ।
SR No.525267
Book TitleShrutsagar Ank 2012 06 017
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages20
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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