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वि.सं. २०६८ - ज्येष्ठ
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संवेदनासभर प्रार्थनाएँ
पत्थर सा दिल मेरा प्रभुवर कोमल फूल बना दो सूने सूने मनमंदिर में स्वस्तिक आप रचा दो स्नेह रहित जीवन ना बने यह ऐसे सुर सजा दो जनम जनम की प्रार्थना मेरी मन का दीप जला दो
इस दिल की धरती पे स्वामी प्रेम के फूल खिला दो प्यार की थपकी देकर मुझको हल्के हल्के सुला दो सब से स्नेह मैं बांधू अपना ऐसी कृपा बरसाना भक्ति के सागर में डूब के पाऊं प्रेम खजाना I
इस संसार में अटक न जाऊं वैसी राह दिखाओ जीवन पथ पर भटक न जाऊं साथी बनकर आओ करुणा छलकते नयन आपके देना ऐसे वारि तपते हुए तन-मन को बना दो शीतल-स्नेह की क्यारी
मेरा जीवन है सरोवर सा स्नेह के कमल खिला दो शंका और संदेह के जाले प्रभुवर आप जला दो धन्य हो उठे यह जिन्दगानी ऐसी करुणा करना अस्तित्व मेरा विलीन हो उठे, देना प्यार का झरना
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प्रेम के फूल बिछाये मैंनें अब तो प्रभुजी पधारें मधुर स्पर्श और मृदु वचन से जोड दो मन की दरारे जलती जिन्दगानी की धरा पर बरसो बादल बन के, रोम रोम पुलकित हो मेरा ताप मिटे तन-मन के
प्यासी इन आँखों में रचा दो करुणा का कुछ काजल मन की प्यासी धरती चाहे तेरे स्नेह का बादल अधरों में कंपन है स्वामी गीत तुम्हारा है गाना तुतलाते शब्दों में भी जो कुछ है तुम्हें सुनाना
- भद्रबाहुविजय
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मनमंदिर में बजने लगी है स्नेह की यह शहनाई याद तुम्हारी मन के गगन में बन के बादल छाई पर मेरा अपराध है क्या जो तुमने मुझे भुलाया करो कबूल प्रार्थना मेरी द्वार तुम्हारे आया ।